Class 12th Hindi Medium Economics Chapter 9 विदेश व्यापार foreign Busines Solution

 स्वाध्याय ( exercise )

प्रश्न 1. स्वाध्याय निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :


1. व्यापार द्वारा क्या होता है ?

(A) साधनों की गतिशीलता घटती है ।

(B) उद्योगों की संख्या घटती है ।

(C) उत्पादन खर्च घटता है ।

(D) उत्पादन में विविधता आता है ।

उत्तर :

(A) साधनों की गतिशीलता घटती है ।


2. विदेश व्यापार में कौन-सा साधन सबसे कम गतिशील है ?

(A) पूँजी

(B) श्रम

(C) नियोजन शक्ति

(D) जमीन

उत्तर :

(D) जमीन


3. 2005 के बाद भारत के विदेश व्यापार में कौन-सा उल्लेखनीय परिवर्तन आया है ?

(A) व्यापार का कद बढ़ा है और भारत का व्यापार के क्रम में आगे आया है ।

(B) व्यापार का कद बढ़ा है किन्तु भारत का विश्व व्यापार में क्रम पीछे गया है ।

(C) भारत में लेन-देन तुला में हमेशां पुरांत रही है ।

(D) व्यापार में परंपरागत निर्यात का हिस्सा बढ़ा है ।

उत्तर :

(A) व्यापार का कद बढ़ा है और भारत का व्यापार के क्रम में आगे आया है ।


4. भारत के व्यापार के परंपरागत साझेदार देशों में किन देशों का समावेश किया जा सकता हैं ?

(A) इंग्लैण्ड और रशिया

(B) जपान और चीन

(C) मध्य एशिया के देश

(D) ऑस्ट्रेलिया

उत्तर :

(A) इंग्लैण्ड और रशिया


5. व्यापारतुला अर्थात् क्या ?

(A) चालू खाते की तुला

(B) पूँजी खाते की तुला

(C) वस्तु व्यापार की तुला (दृश्य)

(D) सेवा (अदृश्य) व्यापार की तुला

उत्तर :

(C) वस्तु व्यापार की तुला (दृश्य )


6. लेन-देन की तुलना में कितने खाते होते हैं ?

(A) 2

(B) 1

(C) 3

(D) 4

उत्तर :

(A) 2


7. किसी भी देश की सीमा के अंदर होनेवाली व्यापार प्रवृत्ति को कौन-सा व्यापार कहते हैं ?

(A) आंतरिक व्यापार

(B) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

(C) प्रादेशिक व्यापार

(D) स्थानिक व्यापार

उत्तर :

(A) आंतरिक व्यापार



8. देश की सीमा के बाहर होनेवाली व्यापार प्रवृत्ति को कौन-सा व्यापार कहते हैं ?

(A) आंतरिक व्यापार

(B) विदेश व्यापार

(C) स्थानिक व्यापार

(D) स्थानिक व्यापार

उत्तर :

(B) विदेश व्यापार


9. जमीन की भौगोलिक गतिशीलता … होती है ।

(A) अधिक

(B) कम

(C) शून्य

(D) अनंत

उत्तर :

(C) शून्य


10. किस राज्य में व्यापार बढ़ाने के लिए Vibrant Gujarat Summit का आयोजन होता है ?

(A) दिल्ली

(B) पंजाब

(C) उत्तर प्रदेश

(D) गुजरात

उत्तर :

(D) गुजरात


प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए 


1. विदेश व्यापार अर्थात् क्या?


उत्तर : विदेश व्यापार वह व्यापारिक गतिविधि है जो देश की सीमाओं के बाहर होती है। इसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी कहा जाता है। इसमें विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान शामिल होता है। विदेश व्यापार से न केवल देशों को उनके आवश्यक संसाधन मिलते हैं, बल्कि यह आर्थिक विकास और वैश्विक बाजार में भागीदारी को भी प्रोत्साहित करता है।


2. विदेश व्यापार के कद से आप क्या समझते हैं?


उत्तर : विदेश व्यापार का कद आयात और निर्यात के माध्यम से होने वाले भौतिक वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को दर्शाता है। इसे सरल शब्दों में, आयात और निर्यात द्वारा होने वाली कुल राशि के रूप में समझा जा सकता है। विदेश व्यापार के कद में यह देखा जाता है कि एक देश ने आयात पर कितना खर्च किया है और निर्यात से कितनी आय प्राप्त की है। इस प्रकार, विदेश व्यापार का कद किसी देश के आर्थिक स्वास्थ्य और वैश्विक व्यापार में उसकी भागीदारी का सूचक होता है।


 3. विदेश व्यापार के स्वरूप का क्या अर्थ है?


उत्तर : विदेश व्यापार का स्वरूप उन वस्तुओं और सेवाओं की रचना या संरचना को दर्शाता है जो एक देश आयात और निर्यात करता है। इसका अर्थ है कि कौन-कौन सी वस्तुएं और सेवाएं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खरीदी और बेची जा रही हैं। उदाहरण के तौर पर, भारत के संदर्भ में, आयात में पेट्रोलियम, मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हो सकते हैं, जबकि निर्यात में कपास, चाय और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं शामिल हो सकती हैं। इस प्रकार, विदेश व्यापार का स्वरूप उन वस्तुओं और सेवाओं का समग्र रूप है जो व्यापार में शामिल हैं।


4. विदेश व्यापार की दिशा से आप क्या तात्पर्य है?


उत्तर : विदेश व्यापार की दिशा से तात्पर्य उस देश के व्यापारिक संबंधों की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति से है। यह दर्शाता है कि कोई देश किन-किन देशों के साथ व्यापार कर रहा है। उदाहरण के लिए, भारत का प्रमुख व्यापारिक साझेदार अमेरिका, चीन, जापान और यूरोपीय संघ के देश हो सकते हैं। विदेश व्यापार की दिशा यह बताती है कि किन देशों के साथ आयात और निर्यात की गतिविधियां हो रही हैं और यह किसी देश की वैश्विक व्यापारिक रणनीति और नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।


5. विनिमय दर का अर्थ बताइए।


उत्तर : विनिमय दर वह दर है जिस पर एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है। इसे विदेशी मुद्रा विनिमय दर भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि 1 अमेरिकी डॉलर 75 भारतीय रुपये के बराबर है, तो यह विनिमय दर कहलाएगी। विनिमय दरें वैश्विक वित्तीय बाजारों में मांग और आपूर्ति, आर्थिक स्थिरता, ब्याज दरों और अन्य कई आर्थिक कारकों के आधार पर निर्धारित होती हैं। विनिमय दरें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि वे देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य निर्धारण को प्रभावित करती हैं।


6. व्यापार अर्थात् क्या?


उत्तर : व्यापार एक ऐसी व्यावसायिक गतिविधि है जिसमें वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी, प्रौद्योगिकी, तकनीकी जानकारी और बौद्धिक संपत्ति का आदान-प्रदान शामिल होता है। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ कमाना और समाज की आवश्यकताओं को पूरा करना है। व्यापार विभिन्न स्तरों पर होता है, जैसे स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय। इसमें शामिल प्रक्रियाओं में विनिर्माण, वितरण, विपणन और बिक्री शामिल हैं।


7. आंतरिक व्यापार किसे कहते हैं?


उत्तर : आंतरिक व्यापार वह व्यापारिक गतिविधि है जो देश की सीमाओं के भीतर होती है। इसमें वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय एक ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। आंतरिक व्यापार में विदेशी मुद्रा विनिमय की आवश्यकता नहीं होती है और यह घरेलू बाजार की मांग और आपूर्ति को पूरा करने पर केंद्रित होता है। उदाहरण के रूप में, एक राज्य से दूसरे राज्य में कृषि उत्पादों का आदान-प्रदान आंतरिक व्यापार का हिस्सा है।


8. विदेश व्यापार का कद मर्यादित प्रमाण में क्यों होता है?


उत्तर : विदेश व्यापार का कद मर्यादित होता है क्योंकि साधनों की गतिशीलता सीमित होती है। विभिन्न देशों के बीच भौगोलिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अंतराल होते हैं जो व्यापारिक गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। इन बाधाओं के कारण विदेशी व्यापार का विस्तार सीमित रहता है। इसके अलावा, आयात और निर्यात पर लगाए गए शुल्क और प्रतिबंध भी विदेश व्यापार की मात्रा को नियंत्रित करते हैं।


9. वर्तमान समय में सबसे अधिक गतिशील साधन कौन-सा है?


उत्तर : वर्तमान समय में सबसे अधिक गतिशील साधन नियोजन शक्ति है। नियोजन शक्ति या मानव संसाधन किसी भी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण घटक है, क्योंकि यह नवीन विचारों, प्रौद्योगिकी और नवाचार को बढ़ावा देता है। यह उत्पादन की दक्षता को बढ़ाता है और विभिन्न उद्योगों में विकास को गति देता है।


10. विदेश व्यापार चुनौतीपूर्ण क्यों है?


उत्तर : विदेश व्यापार का स्वरूप चुनौतीपूर्ण है क्योंकि विभिन्न देशों में विभिन्न प्रकार की जलवायु, भाषा, संस्कृति, मान्यताएँ, रुचियाँ, आदतें और पसंद होती हैं। इन सभी कारकों के कारण व्यापारिक प्रक्रियाओं में जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं। व्यापारियों को इन बाधाओं को पार करने के लिए अपने उत्पादों और सेवाओं को स्थानीय बाजार के अनुसार अनुकूलित करना पड़ता है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, नियमों और व्यापारिक नीतियों का पालन भी आवश्यक होता है।


11. गुजरात में विदेश व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष किसका आयोजन किया जाता है?


उत्तर : गुजरात में विदेश व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष Vibrant Gujarat Summit का आयोजन किया जाता है। इस सम्मेलन का उद्देश्य निवेशकों को आकर्षित करना, व्यापारिक संबंध स्थापित करना और राज्य के आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है। इसमें विभिन्न देशों के व्यापारिक प्रतिनिधि, उद्योगपति और नीति निर्माता भाग लेते हैं।


12. W.T.O. का पूरा नाम क्या है?


उत्तर : W.T.O. का पूरा नाम World Trade Organization है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो वैश्विक व्यापार को नियमित और प्रोत्साहित करने के लिए कार्य करता है। W.T.O. का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित है और इसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों को सुलझाना और व्यापारिक नीतियों में सुधार करना है।


प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए :


1. व्यापारतुला का अर्थ


उत्तर : वर्ष के दौरान किसी देश के विदेशों के साथ किए गए लेन-देन का हिसाबी लेखा-जोखा व्यापारतुला कहलाता है। इसे तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:


संतुलित व्यापारतुला: जब किसी देश के निर्यात और आयात का मूल्य बराबर होता है, तो उस समय व्यापारतुला संतुलित मानी जाती है। इसका मतलब है कि देश का आयात और निर्यात संतुलित है, न तो देश को कोई लाभ हो रहा है और न ही घाटा।


प्रतिकूल व्यापारतुला: यदि किसी देश का निर्यात मूल्य आयात मूल्य की तुलना में कम हो, तो उस देश की व्यापारतुला प्रतिकूल कहलाती है। इसका अर्थ है कि देश अधिक आयात कर रहा है और कम निर्यात, जिससे देश की आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है।


अनुकूल व्यापारतुला:यदि किसी देश का निर्यात मूल्य आयात मूल्य की तुलना में अधिक हो, तो उस देश की व्यापारतुला अनुकूल कहलाती है। इसका मतलब है कि देश अधिक निर्यात कर रहा है और कम आयात, जिससे देश को आर्थिक लाभ हो रहा है।


2. ‘आंतरराष्ट्रीय व्यापार का कद’ की परिभाषा दीजिए। 


उत्तर : किसी देश में एक निश्चित समय अवधि के दौरान आयात और निर्यात होने वाली वस्तुओं के कुल मूल्य और कुल मात्रा को आंतरराष्ट्रीय व्यापार का कद कहते हैं। यदि प्रतिवर्ष आयात के लिए होने वाले भुगतान और निर्यात से होने वाली आय में वृद्धि होती है, और देश की राष्ट्रीय आय में व्यापार का मूल्य प्रतिशत बढ़ता है, तथा विश्व व्यापार में देश का हिस्सा बढ़ता है, तो इसे देश के व्यापार का कद बढ़ना कहा जाता है। 

 

3. लेनदेन की तुला का अर्थ क्या है? 


उत्तर : लेनदेन तुला किसी देश के एक वर्ष के दौरान किए गए भौतिक (दृश्य) और अभौतिक (अदृश्य) वस्तुओं के आयात-निर्यात के मूल्य का लेखा-जोखा है। यह विभिन्न प्रकार के व्यापारिक और वित्तीय लेनदेन को दर्शाता है, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार, साधनों की हेराफेरी का खर्च और पूँजी व्यापार शामिल होते हैं। 


लेनदेन तुला के मुख्य दो प्रकार हैं:


संतुलित लेनदेन तुला: जब आय (जमा) और व्यय (उधार) का योग समान होता है, तो इसे संतुलित लेनदेन तुला कहते हैं। इसका मतलब है कि देश का कुल आय और व्यय बराबर है।


असंतुलित लेनदेन तुला:जब आय और व्यय का योग समान नहीं होता है, तो इसे असंतुलित लेनदेन तुला कहते हैं। अगर जमा पहलू का योग उधार पहलू के योग से अधिक हो, तो लेनदेन में लाभ हुआ है। अगर उधार पहलू का योग जमा पहलू के योग से अधिक हो, तो लेनदेन तुला में घाटा हुआ है।


आय (जमा) और व्यय (उधार) के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए:आय (जमा): आय (जमा) का मतलब वह राशि है जो किसी देश को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, जैसे कि निर्यात, सेवाएं, विदेशी निवेश से प्राप्त ब्याज आदि। यह वह धन है जो देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।व्यय (उधार): व्यय (उधार) का मतलब वह राशि है जो किसी देश को खर्च करनी पड़ती है, जैसे कि आयात, विदेशी सेवाओं का उपयोग, विदेशों में निवेश पर ब्याज भुगतान आदि। यह वह धन है जो देश की अर्थव्यवस्था से बाहर जाता है।

आय (जमा) व्यय (उधार)
(1) भारत द्वारा आयात की गई खाद, यंत्र जैसी स्थूल वस्तुओं का मूल्य।
(2) भारत में बैंक, विमा, जहाजरानी, बीमा कम्पनी आदि की व्यवसायिक सेवाओं का विदेशियों ने जो उपभोग किया हो, उसका मूल्य। (2) भारत में बैंक, विमा, जहाजरानी, बीमा कम्पनी आदि की सेवाओं का भारत के लोगों ने जो उपभोग किया हो, उसका मूल्य।
(3) विदेशी पर्यटकों ने भारत में आकर जो खर्च किया। (3) भारतीय पर्यटकों ने विदेशों में जाकर जो खर्च किया।
(4) विदेशियों ने अग्रिम उधार ली गई पूँजी यदि वापस की हो, तो वह रकम। (4) भारत ने अग्रिम उधार ली गई पूँजी जो वापस की हो, तो वह रकम।
(5) भारत द्वारा विदेशों से उधार ली गई पूँजी। 5) भारत ने विदेशों को उधार दी हो, वह पूँजी।
(6) भारत द्वारा निर्यात किए गए स्वर्ण का मूल्य। (6) भारत द्वारा विदेशों से आयात किए गए स्वर्ण का मूल्य।
(7) भारत द्वारा विदेशों में किए गए पूँजीनिवेश की ब्याज प्राप्ति। (7) विदेशियों द्वारा भारत में किए गए पूँजीनिवेश के ब्याज का भुगतान।
(8) भारत को विदेशों से प्राप्त दान तथा भेंट।


उदाहरण:आय (जमा) उदाहरण: यदि भारत ने अमेरिका को 100 मिलियन डॉलर का कपड़ा निर्यात किया, तो यह राशि भारत की आय (जमा) में जोड़ी जाएगी।व्यय (उधार) उदाहरण: यदि भारत ने जर्मनी से 50 मिलियन डॉलर की मशीनरी आयात की, तो यह राशि भारत के व्यय (उधार) में जोड़ी जाएगी।इस प्रकार, किसी भी देश के आय और व्यय का लेखा-जोखा रखने से उस देश की आर्थिक स्थिति की सही समझ प्राप्त होती है। आय और व्यय के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है ताकि देश की आर्थिक स्थिरता बनी रहे।


भारत की व्यापारतुला में घाटा निरन्तर बढ़ता जा रहा है


स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत ने तेज़ औद्योगिकरण के लिए कई वस्तुओं की आपूर्ति बड़े पैमाने पर करनी पड़ी। इसके कारण, औद्योगिक विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारी मात्रा में आयात करना आवश्यक हो गया। इस समस्या को और बढ़ावा मिला भारतीय रुपये के अवमूल्यन के कारण, जिससे आयातित वस्तुएं महंगी हो गईं और आयात के भुगतान का भार बढ़ गया।


इसके अलावा, पेट्रोलियम उत्पादन करने वाले देशों के संगठन (OPEC) ने खनिज तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी की, जिससे भारत के खनिज तेलों के आयात का मूल्य काफी बढ़ गया। इस स्थिति में, भारत की निर्यात की वृद्धि अपेक्षाकृत कम रही, जिससे निर्यात से प्राप्त आय कम और आयात के लिए किया गया भुगतान अधिक हो गया।


पिछले तीन दशकों में, भारत पर विदेशी ऋण का बोझ भी लगातार बढ़ता रहा है। इस बढ़ते विदेशी ऋण के कारण, भारत की व्यापारतुला में घाटा लगातार बढ़ रहा है। निरंतर बढ़ते हुए आयात और घटते हुए निर्यात ने भारत की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे व्यापारतुला में घाटे की समस्या गंभीर हो गई है।


3. भारत में निर्यात बढ़ाना मुश्किल हो गया है इसे समझाइए 


उत्तर : भारत में निर्यात संवर्धन एक जटिल समस्या बन गई है, जिसका मुख्य कारण मुद्रास्फीति और भाववृद्धि है। मुद्रास्फीति के कारण, भारत में वस्तुओं के मूल्य तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे यहाँ की वस्तुएँ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में महंगी हो जाती हैं। इस कारण से, भारतीय वस्तुएँ विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हो पातीं।


इसके अलावा, आंतरिक बाजार में ही भारतीय निर्यातकों को अपनी वस्तुओं की अच्छी कीमतें मिल जाती हैं, जिससे उनके अंदर निर्यात करने का उत्साह कम हो जाता है। निर्यातकों को लगता है कि घरेलू बाजार में ही उनकी वस्तुएं अच्छे दामों पर बिक सकती हैं, इसलिए वे निर्यात करने के बजाए घरेलू बाजार पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इन सभी कारणों से, भारत में निर्यात बढ़ाना मुश्किल हो गया है। 


भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए अपनी आर्थिक नीतियों में सुधार करना होगा और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे। इसके लिए, उत्पादन लागत को कम करने, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और निर्यातकों को प्रोत्साहन देने की दिशा में ठोस प्रयास करने की जरूरत है।


प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर लिखिए :


उत्तर : विदेश व्यापार की प्रवर्तमान स्थिति पर चर्चा कीजिए। 


विदेश व्यापार को देश की सीमाओं के बाहर किए जाने वाले व्यापार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह व्यापार किसी देश की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। स्वतंत्रता से पहले, भारत का विदेश व्यापार मुख्य रूप से इंग्लैंड और अन्य पूर्वीय देशों के साथ होता था। लेकिन स्वतंत्रता के बाद, भारत ने अपनी योजनाओं और नीतियों में विदेश व्यापार को महत्वपूर्ण स्थान दिया, जिससे इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई।


1. ऐतिहासिक संदर्भ और वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट 2013:


ऐतिहासिक दृष्टिकोण: एग्नस मेडिसन नामक इतिहासकार ने अपनी खोजों में बताया है कि 1800वीं सदी के मध्यकाल से विश्व की जनसंख्या 6 गुना बढ़ी है। इस समय के दौरान, विश्व का उत्पादन 60 गुना बढ़ा है, जबकि विश्व व्यापार में 140 गुना वृद्धि हुई है। यह स्पष्ट करता है कि व्यापार का विकास उत्पादन और जनसंख्या से कहीं अधिक तेजी से हुआ है।

 वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट 2013: इस रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में परिवहन और संचार की लागत में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे व्यापार को प्रोत्साहन मिला है। इसके अलावा, प्रदेशों के बीच राजनीतिक संबंधों के विकास ने भी व्यापार में वृद्धि को प्रोत्साहित किया है।


2. व्यापार में वृद्धि और योगदान: 

व्यावसायिक सेवाओं में वृद्धि: पिछले 30 वर्षों में, व्यवसायिक सेवाओं के व्यापार में हर वर्ष औसत 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह सेवाओं के महत्व को दर्शाता है, जो कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

 विकासशील देशों का योगदान: 1980 से 2011 के बीच, विकासशील देशों का निर्यात में योगदान 20 प्रतिशत से बढ़कर 47 प्रतिशत हो गया है, जबकि आयात में उनका योगदान 29 प्रतिशत से बढ़कर 42 प्रतिशत हो गया है। यह दिखाता है कि विकासशील देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

एशियाई देशों का योगदान: एशिया के देश वर्तमान में विश्व व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इन देशों ने वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाया है, जिससे उनकी अर्थव्यवस्थाएं तेजी से विकसित हुई हैं।


3. व्यापार और उत्पादन के संबंध:


अंतिम कुछ दशकों में, विश्व व्यापार की वृद्धि दर विश्व उत्पादन की वृद्धि दर से दोगुनी रही है। इसका मतलब है कि विश्व में विक्रय व्यवस्था में विकास हुआ है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बढ़ते महत्व को दर्शाता है। यह प्रवृत्ति दिखाती है कि व्यापार न केवल देशों की अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ता है बल्कि उन्हें एक दूसरे पर निर्भर भी बनाता है।


निष्कर्ष


विदेश व्यापार की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट होता है कि विश्व व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसका श्रेय बेहतर परिवहन और संचार, राजनीतिक संबंधों के विकास, और व्यावसायिक सेवाओं के व्यापार में वृद्धि को दिया जा सकता है। विकासशील देशों और एशियाई देशों ने भी इस वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कुल मिलाकर, अंतरराष्ट्रीय व्यापार ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


2. रुपये का बाज़ार मूल्य और संबंधित अवधारणाओं का अंतर समझाइए।


उत्तर : विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये का मूल्य विभिन्न आर्थिक कारकों से प्रभावित होता है। इन कारकों को समझने के लिए हम चार मुख्य अवधारणाओं की चर्चा करेंगे: रुपये का बाज़ार मूल्य घटना, अवमूल्यन, रुपये का बाज़ार मूल्य बढ़ना, और अधिक मूल्य होना। 


1. रुपये का बाज़ार मूल्य: में रुपये का बाज़ार मूल्य वह दर होती है जिस पर भारतीय रुपया विदेशी मुद्रा (जैसे US डॉलर) के मुकाबले विनिमय किया जाता है। इसे विनिमय दर भी कहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि US $1 = ₹60 है, तो इसका अर्थ है कि एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए भारतीय नागरिक को 60 रुपये चुकाने होंगे।


2. रुपये का बाज़ार मूल्य घटना: जब भारत के लिए विनिमय दर अधिक हो जाती है, तो इसका मतलब है कि भारतीय रुपये का मूल्य घट रहा है। इसका कारण यह है कि विदेशी मुद्रा की एक इकाई खरीदने के लिए अधिक रुपये देने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए:


पहले: US $1 = ₹60

बाद में: US $1 = ₹65


इस स्थिति में, रुपये का मूल्य घटा है क्योंकि अब एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 60 रुपये के बजाय 65 रुपये देने पड़ रहे हैं। इसका मतलब है कि भारतीय रुपये की क्रय शक्ति कम हो गई है।


3. रुपये का अवमूल्यन:


अवमूल्यन एक सरकारी नीतिगत निर्णय होता है जिसमें सरकार विदेशी व्यापार को स्थिर करने के लिए अपने मुद्रा का मूल्य जानबूझकर कम करती है। यह कदम इसलिए उठाया जाता है ताकि निर्यात सस्ता हो जाए और आयात महंगा, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार हो सके। उदाहरण:


पहले: US $1 = ₹60

अवमूल्यन के बाद: US $1 = ₹75


यहां, सरकार ने रुपये का मूल्य जानबूझकर कम किया है ताकि निर्यातकों को लाभ हो और आयात कम हो सके।


4. रुपये का बाज़ार मूल्य बढ़ना:


जब भारत के लिए विनिमय दर नीची होती है, तो इसका मतलब है कि रुपये का मूल्य बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि विदेशी मुद्रा की एक इकाई खरीदने के लिए कम रुपये देने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए:


पहले: US $1 = ₹65

बाद में: US $1 = ₹60


इस स्थिति में, रुपये का मूल्य बढ़ा है क्योंकि अब एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 65 रुपये के बजाय 60 रुपये देने पड़ रहे हैं। इसका मतलब है कि भारतीय रुपये की क्रय शक्ति बढ़ गई है।


5. रुपये का अधिक मूल्य होना:


जब रुपये का मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक हो जाता है, तो इसे अधिक मूल्य होना कहते हैं। इसका मतलब है कि रुपये की क्रय शक्ति बढ़ गई है और अब कम रुपये में अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण:


पहले: US $1 = ₹70

 बाद में: US $1 = ₹60


यहां, रुपये का अधिक मूल्य हो गया है क्योंकि अब एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 70 रुपये के बजाय 60 रुपये देने पड़ रहे हैं। यह स्थिति रुपये के मजबूत होने का संकेत है।


निष्कर्ष


रुपये का बाज़ार मूल्य, रुपये का बाज़ार मूल्य घटना, अवमूल्यन, रुपये का बाज़ार मूल्य बढ़ना, और अधिक मूल्य होना – ये चारों अवधारणाएँ विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये के मूल्य परिवर्तन को दर्शाती हैं। बाज़ार मूल्य का घटना और अवमूल्यन रुपये के कमजोर होने के संकेत होते हैं, जबकि बाज़ार मूल्य का बढ़ना और अधिक मूल्य होना रुपये के मजबूत होने के संकेत होते हैं। ये परिवर्तन विभिन्न आर्थिक नीतियों, बाजार की स्थितियों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के चलते होते हैं।


विनिमय दर पर टिप्पणी


विनिमय दर का महत्व: विदेशी यात्रा, व्यापार, और अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन के संदर्भ में विनिमय दर का महत्वपूर्ण स्थान है। उदाहरण के लिए, जब भारतीय नागरिक विदेश यात्रा पर जाते हैं, तो वे भारतीय रुपये (INR) में सीधे खरीदारी नहीं कर सकते। उन्हें भारतीय रुपये को उस देश की मुद्रा में बदलना पड़ता है जहां वे जा रहे हैं। इसी प्रकार, जब कोई भारतीय आयातक विदेशी वस्तु का आयात करता है, तो उसे भुगतान उस देश की मुद्रा या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मुद्रा में करना होता है। यह विनिमय दर की मांग को दर्शाता है।


विनिमय दर की परिभाषा: विनिमय दर वह दर होती है जिस पर एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदला जा सकता है। इसे विदेशी विनिमय दर कहा जाता है। यह दर एक निश्चित मूल्य पर मुद्रा के विनिमय को सुनिश्चित करती है। उदाहरण के लिए, यदि US $1 = ₹60 है, तो इसका मतलब है कि एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए भारतीय नागरिक को 60 रुपये चुकाने होंगे।


विनिमय दर का वास्तविक जीवन में उपयोग: विनिमय दर का वास्तविक जीवन में बहुत उपयोग होता है। जब प्रवासी या व्यापारी विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है, तो वे बैंकों या अधिकृत मुद्रा विनिमय केंद्रों के पास जाते हैं। वहाँ वे अपनी मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदलवाते हैं। यह विनिमय एक निर्धारित दर पर होता है जिसे विनिमय दर कहते हैं।


विनिमय दर का प्रभाव: विनिमय दर विभिन्न आर्थिक कारकों से प्रभावित होती है, जैसे कि मुद्रास्फीति, ब्याज दरें, देश की आर्थिक स्थिति, और अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थितियाँ। जब विनिमय दर बढ़ती है, तो विदेशों से आयात महंगे हो जाते हैं और निर्यात सस्ते हो जाते हैं। इसके विपरीत, जब विनिमय दर घटती है, तो आयात सस्ते और निर्यात महंगे हो जाते हैं।


विनिमय दर का उदाहरण: अगर भारतीय रुपये की विनिमय दर घटती है और US $1 = ₹65 हो जाता है, तो इसका मतलब है कि अब एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए भारतीय नागरिक को 65 रुपये देने पड़ेंगे। यह भारतीय रुपये की मूल्यह्रास को दर्शाता है। इसके विपरीत, यदि विनिमय दर घटकर US $1 = ₹55 हो जाती है, तो इसका मतलब है कि अब एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 55 रुपये देने पड़ेंगे, जो भारतीय रुपये की मजबूती को दर्शाता है।


निष्कर्ष

विनिमय दर एक महत्वपूर्ण आर्थिक सूचकांक है जो मुद्रा विनिमय के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय व्यापार और यात्रा को संभव बनाता है। यह दर विभिन्न आर्थिक कारकों से प्रभावित होती है और इसका प्रभाव व्यापार संतुलन, मुद्रास्फीति और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर पड़ता है। विनिमय दर की समझ अंतरराष्ट्रीय आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने वालों के लिए अत्यंत आवश्यक है।


3. विदेशी व्यापार के कारणों का संक्षिप्त में बताइए। 


उत्तर : 1. संसाधनों में अंतर: विभिन्न देशों में संसाधनों की भिन्नता होने से, उत्पादन के साधनों का व्यापार आवश्यक होता है। हर देश के पास समान प्रकार के संसाधन नहीं होते और कुछ साधन सिर्फ कुछ देशों में ही उपलब्ध होते हैं। उदाहरण के लिए, जब एक देश में खनिज संसाधन ज्यादा होते हैं, तो वह खनिज संसाधन उन देशों में आयात किए जाते हैं जहां ये संसाधन कम होते हैं। इस प्रकार का विदेशी व्यापार संसाधनों के संदर्भ में आवश्यक होता है।


2. उत्पादन खर्च: विभिन्न देशों में उत्पादन की लागत भिन्न होती है। कुछ देशों में कामकाजी शुल्क कम होता है और कुछ देशों में अधिक होता है। इसलिए, उन देशों से वस्तुओं का आयात करना जरूरी होता है जहां उत्पादन की लागत अधिक होती है। यह विदेशी व्यापार के माध्यम से उत्पादन खर्च में कमी लाने में मदद करता है और उत्पादक देश को विदेशी वस्तुओं की आपूर्ति करने का आवस्यक विकल्प प्रदान करता है।


3. टेक्नोलॉजी की विभाजन: हर देश में टेक्नोलॉजी की स्तर अलग होती है। कुछ देश विशेष तकनीकी ज्ञान में प्रगति करते हैं और कुछ देशों में इसकी कमी रहती है। इसलिए, विदेशी व्यापार के माध्यम से टेक्नोलॉजी की अपूर्ति और उपयोग करना आवश्यक होता है। यह विभिन्न देशों के बीच विज्ञान, अनुसंधान और उत्पादन की सहायता करता है, जिससे अधिक उन्नत और कारगर प्रणालियों का विकास होता है।


4. श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण: प्रत्येक देश में श्रम की कौशल्य का स्तर भिन्न होता है और इसलिए श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण होता है। कुछ देशों में कुशल श्रम उपलब्ध होता है जो कि अन्य देशों में उपयोग के लिए प्राप्त किया जा सकता है। यह श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण के कारण विदेशी व्यापार में एक महत्वपूर्ण कारक है, जो विभिन्न देशों के बीच में अर्थव्यवस्था को सुधारने में मदद करता है।


इन कारणों से, विदेशी व्यापार अहम और आवश्यक है जो विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, संसाधनों और तकनीकी ज्ञान की आपूर्ति और संशोधन में सहायता प्रदान करता है।


4. भारत के विदेश व्यापार के स्वरूप में हुये परिवर्तनों को विस्तारपूर्वक समझाइए ।


उत्तर : भारत के विदेश व्यापार के स्वरूप में हुए परिवर्तनों को समझाने के लिए निम्नलिखित पहलुओं को विस्तारपूर्वक समझा जा सकता है:


1. व्यापार-प्रवृत्ति की विशिष्टता: भारतीय विदेश व्यापार का स्वरूप उन प्रवृत्तियों और बातों पर निर्भर करता है जो इसे अन्य प्रवृत्तियों से अलग करते हैं। यहां विशिष्ट पहलू शामिल हैं जैसे कि समय के फर्क, पूंजी समाधान, वस्तुओं की विविधता और विभिन्न व्यावसायिक नीतियां।


2. संसाधन और अवसरों का समुचित उपयोग: भारत ने अपने विदेश व्यापार में उत्पादन के लिए विभिन्न संसाधनों और अवसरों का समुचित उपयोग करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यह उसकी अर्थव्यवस्था को विविधता और विकास की दिशा में पुश्ति करने में मदद करता है।


3. व्यापारिक नीतियाँ और संरक्षण: भारत ने अपनी व्यापारिक नीतियों में सुधार किया है जिससे कि विदेशी निवेशकों को अधिक सुरक्षा और संरक्षण मिल सके। इसका परिणाम है कि भारतीय व्यापारिक संबंध अब अधिक अनुकूल और स्थिर हैं।


4. विदेशी निवेश और व्यापार संबंध: भारत ने विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रोत्साहनीय नीतियों को प्रगट किया है, जिससे कि विदेशी व्यापार और निवेश भारतीय अर्थव्यवस्था को सुस्ती से बाहर निकाल सकें।


5. अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग: भारत ने WTO और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सक्रिय सहयोग किया है जो व्यापार नीतियों को अनुकूलित करने में मदद करते हैं और अन्य देशों के साथ व्यापार संबंधों को सुधारते हैं।


इन पहलुओं के माध्यम से, भारतीय विदेश व्यापार का स्वरूप सुधारा गया है और विश्व बाजार में उसकी भूमिका मजबूती से बढ़ी है। यह सुधार भारत की अर्थव्यवस्था को ग्लोबल मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाने में मदद करता है।


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