अर्थशास्त्र पाठ 10 औद्योगिक क्षेत्र समाधान Hindi Medium कक्षा 12

 स्वाध्याय  (exercise ) 

प्रश्न 1. स्वाध्याय निम्नलिखित प्रश्नों के योग्य विकल्प चुनकर दीजिए ।

प्रश्न 1. भारत की राष्ट्रीय आय में उद्योगों का योगदान वर्ष 2013-’14 के अनुसार कितना था?

(A) 16.6%

(B) 27%

(C) 40%

(D) 60%


उत्तर: (B) 27%


विस्तार: वर्ष 2013-14 में भारत की कुल राष्ट्रीय आय में उद्योग क्षेत्र का योगदान 27% था। इसका अर्थ यह है कि देश की आर्थिक संरचना में उद्योग क्षेत्र का महत्वपूर्ण स्थान है, जो निर्माण, उत्पादन और सेवाओं के माध्यम से राष्ट्रीय आय का एक बड़ा हिस्सा उत्पन्न करता है। उदाहरण के लिए, भारतीय आईटी और सॉफ्टवेयर उद्योग ने इस अवधि में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की, जिससे न केवल उच्च आय का सृजन हुआ बल्कि रोजगार के भी अनेक अवसर प्रदान हुए। 


प्रश्न 2. वर्ष 2011-’12 में औद्योगिक क्षेत्र में रोजगारी का प्रमाण कितना था?

(A) 10%

(B) 24.3%

(C) 27%

(D) 49%


उत्तर: (B) 24.3%


विस्तार: वर्ष 2011-12 में भारत के औद्योगिक क्षेत्र में कुल रोजगार का 24.3% हिस्सा था। इसका मतलब यह है कि इस अवधि में देश के लगभग एक चौथाई श्रमिक औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत थे। इसमें विभिन्न उप-क्षेत्र शामिल थे जैसे कि विनिर्माण, खनन, और निर्माण। उदाहरण के लिए, भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग ने इस अवधि में तेजी से वृद्धि की, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिला।


प्रश्न 3. बड़े पैमाने के उद्योगों में कितना पूँजीनिवेश आवश्यक है?

(A) 2 करोड़

(B) 5 करोड़

(C) 10 करोड़ से अधिक

(D) 100 करोड़


उत्तर: (C) 10 करोड़ से अधिक


विस्तार: बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए आवश्यक पूँजीनिवेश 10 करोड़ रुपये से अधिक होता है। इसका अर्थ है कि ऐसे उद्योगों के स्थापन के लिए उच्च निवेश की आवश्यकता होती है जो बड़े पैमाने पर उत्पादन और संचालन को संभव बनाता है। उदाहरण के लिए, स्टील उत्पादन जैसे उद्योगों में भारी पूँजी निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे उच्च उत्पादकता और आर्थिक विकास होता है।


प्रश्न 4. सार्वजनिक क्षेत्र अर्थात् क्या?

A) लोगों द्वारा संचालित क्षेत्र

(B) सरकार द्वारा संचालित क्षेत्र

(C) सहकार वृत्तिवाले क्षेत्र

(D) अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र


उत्तर: (B) सरकार द्वारा संचालित क्षेत्र


विस्तार: सार्वजनिक क्षेत्र का तात्पर्य उन क्षेत्रों से है जिन्हें सरकार द्वारा संचालित और प्रबंधित किया जाता है। इसका उद्देश्य आम जनता की सेवा और सामाजिक कल्याण को सुनिश्चित करना होता है। उदाहरण के लिए, भारतीय रेलवे और भारतीय डाक सेवा जैसी प्रमुख सेवाएं सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं, जो सरकार द्वारा प्रबंधित होती हैं और समाज की भलाई के लिए कार्यरत होती हैं।


प्रश्न 5. विशिष्ट आर्थिक विस्तार का अमल भारत में कब हुआ?

(A) 1947

(B) 1991

(C) 2000

(D) 2011


उत्तर: (C) 2000


विस्तार: भारत में विशिष्ट आर्थिक विस्तार का अमल वर्ष 2000 में हुआ। इस दौरान सरकार ने विभिन्न आर्थिक सुधार लागू किए जो व्यापार, निवेश और उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से थे। इन सुधारों में नई औद्योगिक नीति, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना, और व्यापारिक नियमों का सरलीकरण शामिल था। उदाहरण के लिए, आईटी और सेवा क्षेत्र ने इस अवधि में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की, जिससे भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर सका।


प्रश्न 6. इनमें से कौन-सा देश कृषिप्रधान होते हुए भी विकसित देश है?

(A) ऑस्ट्रेलिया

(B) अमेरिका

(C) जापान

(D) ब्रिटेन


उत्तर:(A) ऑस्ट्रेलिया


विस्तार: ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जो कृषिप्रधान होते हुए भी विकसित देशों की श्रेणी में आता है। इसका मतलब है कि ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर आधारित है, फिर भी उसने अपनी आर्थिक संरचना, उच्च जीवन स्तर, और तकनीकी प्रगति के माध्यम से विकासशील देशों की श्रेणी में स्थान प्राप्त किया है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया का वाइन उद्योग विश्वभर में प्रसिद्ध है और इसके कृषि उत्पादों की वैश्विक बाजार में बड़ी मांग है।


प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन-सा देश उद्योगप्रधान हैं?

(A) भारत

(B) जापान

(C) बांग्लादेश

(D) न्यूजीलेन्ड


उत्तर: (B) जापान


विस्तार: जापान एक उद्योगप्रधान देश है, जिसका अर्थ है कि उसकी अर्थव्यवस्था का मुख्य हिस्सा उद्योगों पर आधारित है। जापान की प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स, और ऑटोमोबाइल उद्योग विश्वभर में अग्रणी माने जाते हैं। उदाहरण के लिए, टोयोटा और सोनी जैसी कंपनियाँ वैश्विक बाजार में अपने उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिए प्रसिद्ध हैं और जापान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


प्रश्न 8. वर्ष 1951 में भारत की राष्ट्रीय आय में उद्योगों का हिस्सा कितना था?

(A) 60%

(B) 40%

(C) 16.6%

(D) 27%


उत्तर: (C) 16.6%


विस्तार: वर्ष 1951 में भारत की राष्ट्रीय आय में उद्योगों का हिस्सा 16.6% था। यह समय भारत की स्वतंत्रता के बाद का था और देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर अधिक निर्भर थी। उस समय उद्योग क्षेत्र का योगदान कम था, लेकिन समय के साथ सरकार की नीतियों और योजनाओं के माध्यम से इसमें वृद्धि हुई। उदाहरण के लिए, इस अवधि में प्रमुख उद्योगों जैसे कि कपड़ा और जूट मिलों का विकास हुआ, जो औद्योगिक क्षेत्र के शुरुआती चरणों में महत्वपूर्ण थे।


प्रश्न 9. वर्ष 1951 में कितने प्रतिशत श्रमिक उद्योग क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करते थे?

(A) 40%

(B) 15%

(C) 24.3%

(D) 10.6%


उत्तर: (D) 10.6%


विस्तार: वर्ष 1951 में भारत के कुल श्रमिकों में से केवल 10.6% उद्योग क्षेत्र में कार्यरत थे। उस समय भारत की अधिकांश जनसंख्या कृषि में संलग्न थी और उद्योग क्षेत्र का विकास अभी शुरुआती चरण में था। उदाहरण के लिए, स्वतंत्रता के तुरंत बाद के वर्षों में सरकार ने औद्योगिक नीतियों को लागू करना शुरू किया, जिससे धीरे-धीरे रोजगार के अवसर बढ़े।


प्रश्न 10. वर्ष 2013-14 में देश की कुल निर्यात आय में कितना हिस्सा उद्योग क्षेत्र का था?

(A) 2/3

(B) 1/3

(C) 1/2

(D) 1/4

उत्तर: (A) 2/3


विस्तार: वर्ष 2013-14 में भारत की कुल निर्यात आय में उद्योग क्षेत्र का योगदान 2/3 था। इसका अर्थ है कि देश की निर्यात आय का बड़ा हिस्सा उद्योग क्षेत्र से आता है, जिसमें विनिर्माण और सेवाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। उदाहरण के लिए, इस अवधि में भारतीय आईटी सेवाओं और फार्मास्यूटिकल उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ा, जिससे निर्यात आय में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई


प्रश्न.2 निम्न प्रश्नों के उत्तर दो तीन वाक्यों में दीजिए । 


प्रश्न 1. छोटे पैमाने के उद्योग किस प्रकार की उत्पादन पद्धति का उपयोग करते हैं?


उत्तर: छोटे पैमाने के उद्योग श्रम प्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करते हैं। इसका मतलब है कि इन उद्योगों में मुख्य रूप से मानव श्रम का प्रयोग किया जाता है, मशीनों और प्रौद्योगिकी का उपयोग सीमित होता है। इस प्रकार की उत्पादन पद्धति में कारीगरों और मैनुअल कार्यशक्ति का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जैसे कि हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योगों में।


प्रश्न 2.  मध्यम कद के उद्योग किसे कहते हैं?


उत्तर: मध्यम कद के उद्योग वे होते हैं जिनमें रु. 5 करोड़ से अधिक और रु. 10 करोड़ से कम पूँजीनिवेश होता है, और ये श्रमप्रधान या पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग कर सकते हैं। इन उद्योगों में न केवल पर्याप्त पूंजी निवेश होता है बल्कि उत्पादन की प्रक्रिया में उन्नत तकनीकों और कुशल श्रमिकों का भी उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, फर्नीचर निर्माण और वस्त्र उत्पादन उद्योग इस श्रेणी में आते हैं।


प्रश्न 3. सार्वजनिक निगम का क्या अर्थ है?


उत्तर: सार्वजनिक निगम उन इकाइयों को कहते हैं जिनकी मालिकी केन्द्र या राज्य सरकार की होती है, परंतु उसका संचालन स्वतंत्र रूप से निगम (कोर्पोरेशन) द्वारा किया जाता है। यद्यपि निगम का संचालन और निर्णय प्रक्रिया में सरकार का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया जैसी कंपनियाँ सार्वजनिक निगम के अंतर्गत आती हैं, जहाँ सरकारी नियंत्रण के साथ-साथ स्वतंत्र परिचालन भी होता है।


प्रश्न 4. भारत में कितने विशिष्ट आर्थिक विस्तार हैं?


उत्तर: भारत में कुल 8 विशिष्ट आर्थिक विस्तार हैं। ये विशेष क्षेत्र आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और विकास की गति को तेज करने के उद्देश्य से स्थापित किए गए हैं। इन क्षेत्रों में निवेशकों को विभिन्न प्रकार की छूट और सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, जिससे व्यापार और उद्योगों का विकास हो सके।


प्रश्न. 5 विश्व में ऑस्ट्रेलिया किस प्रकार के देश के रूप में जाना जाता है?


उत्तर: विश्व में ऑस्ट्रेलिया एक कृषि पर आधारित विकसित देश के रूप में जाना जाता है। इसका मतलब है कि ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि गतिविधियों पर आधारित है, फिर भी यह एक विकसित देश है। ऑस्ट्रेलिया में कृषि उत्पादों का निर्यात महत्वपूर्ण होता है और इसके उच्च गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों की वैश्विक बाजार में बड़ी मांग है।


प्रश्न. 6 विश्व के देशों में किन तीन उत्पादकीय क्षेत्रों का समन्वय देखने को मिलता है?


उत्तर: विश्व के देशों में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र इन तीन उत्पादकीय क्षेत्रों का समन्वय देखने को मिलता है। यह समन्वय प्रत्येक देश की आर्थिक संरचना को संतुलित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कृषि क्षेत्र खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है, उद्योग क्षेत्र उत्पादन और रोजगार उत्पन्न करता है, और सेवा क्षेत्र विभिन्न सेवाएँ प्रदान करके अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है।


प्रश्न 7. भारत जैसे विकासशील देशों में औद्योगिकरण क्यों जरूरी है?


उत्तर: भारत जैसे विकासशील देशों में बेरोजगारी और गरीबी जैसी विकट समस्याओं को दूर करने के लिए औद्योगिकरण जरूरी है। औद्योगिकरण से रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, आर्थिक विकास को गति मिलती है, और सामाजिक सुधार भी संभव होते हैं। इसके अलावा, औद्योगिकरण से घरेलू उत्पादकता में वृद्धि होती है और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के अवसर बढ़ते हैं।


प्रश्न 8. औद्योगिक क्षेत्र का योगदान किस क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण है?


उत्तर: सेवा क्षेत्र के विकास में भी औद्योगिक क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण है। उद्योगों के विस्तार से सेवाओं की मांग बढ़ती है, जैसे कि बैंकिंग, वित्तीय सेवाएँ, परिवहन, और संचार सेवाएँ। उद्योगों में उत्पादन और व्यापारिक गतिविधियों के विस्तार से सेवा क्षेत्र में भी रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होते हैं, जिससे समग्र आर्थिक विकास होता है।


प्रश्न 9.  रोजगार की दृष्टि से कौन-से उद्योग महत्वपूर्ण होते हैं?


उत्तर: रोजगार की दृष्टि से छोटे पैमाने के उद्योग महत्वपूर्ण होते हैं। ये उद्योग सीमित संसाधनों के साथ अधिकतम मानव श्रम का उपयोग करते हैं, जिससे रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, हस्तशिल्प, खिलौना निर्माण, और छोटे स्तर के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर होते हैं।


प्रश्न 10. रोजगार की दृष्टि से कौन-सी उत्पादन पद्धति महत्वपूर्ण है?


उत्तर: रोजगार की दृष्टि से श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस पद्धति में मानव श्रम का प्रमुख उपयोग होता है और मशीनों का उपयोग सीमित होता है। इससे अधिक लोगों को रोजगार मिल सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ उच्च तकनीकी कौशल की आवश्यकता नहीं होती है। यह पद्धति ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है।


प्रश्न 11. उद्योग कृषि क्षेत्र को कौन-सी टेक्नोलॉजी उपलब्ध करवाता है?


उत्तर: उद्योग कृषि क्षेत्र को ट्रैक्टर, थ्रेशर, सबमर्सिबल पंप, और जंतुनाशक दवा छिड़कने के आधुनिक यंत्र उपलब्ध करवाते हैं। ये टेक्नोलॉजी कृषि उत्पादकता को बढ़ाने और श्रम की दक्षता को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए, ट्रैक्टर का उपयोग भूमि की जुताई और बीज बोने के लिए होता है, जिससे समय और श्रम की बचत होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है।


प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर को विस्तार में समझाइए । 


1. छोटे पैमाने के उद्योग अर्थात् क्या?

उत्तर: छोटे पैमाने के उद्योग वे होते हैं जिनमें रुपये 25 लाख से कम और 5 करोड़ से अधिक पूंजी निवेश किया जाता है। इन उद्योगों में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता है और वे बड़े उद्योगों के लिए सहायक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। उदाहरण: ओजार, वाहनों की मरम्मत, उपभोग वस्तुओं का उत्पादन आदि।


2. संयुक्त पूँजी कंपनी का उदाहरण दीजिए।

उत्तर: संयुक्त पूंजी कंपनी वे होती हैं जो सरकार निजी क्षेत्र के तरीके से संचालित होती हैं। इन कंपनियों द्वारा संचालित इकाइयाँ अपने मालिकी हक से सरकार संबंधित इकाई के शेयरों को जनता या संस्थाओं को बेचकर पूंजी जुटाती हैं। इन इकाइयों को सरकार का सीधा अंकुश नहीं होता और ये ईकाइयाँ सार्वजनिक निगमों और विभागीय इकाइयों से अलग होती हैं।


3. औद्योगिकीकरण से सामाजिक ढाँचे में कैसे परिवर्तन किया जा सकता है? 

उत्तर: औद्योगिकीकरण से नयी औद्योगिक संस्कृति का सर्जन होता है जिससे समाज में अनुशासन, कठोरता, परिश्रम, स्पर्धा, टीमवर्क, स्वनिर्भरता, साथ-सहकार, समझ, नवीन संशोधन वृत्ति, संस्थाकीय क्षमता जैसे गुणों का विकास होता है। इसके साथ ही अंधश्रद्धा, प्रारब्धवाद, संकुचित मानसिकता आदि कम होती है। ऐसे सामाजिक परिवर्तन अर्थतंत्र को विकास के लिए प्रेरित करते हैं।


4. कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण करने के लिए उद्योग किस प्रकार उपयोगी हैं?

उत्तर: कृषि क्षेत्र के तेजी से विकास के लिए और जमीन और श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से खेती का आधुनिकीकरण आवश्यक है। इसमें उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जैसे कि ट्रैक्टर, थ्रेशर, पंप, जंतुनाशक दवाइयां और अन्य उपकरणों का उत्पादन। इसके अलावा, रासायनिक खाद और जंतुनाशक दवाइयों का उत्पादन भी किया जाता है जो कृषि उत्पादन को सुधारने में मदद करते हैं।


5. विशिष्ट आर्थिक विस्तार अर्थात् क्या?

उत्तर: विशिष्ट आर्थिक विस्तार या SEZ (Special Economic Zone) एक ऐसा क्षेत्र है जो देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन क्षेत्रों का आविष्कार भारत ने 1 अप्रैल 2000 से किया था, जिनका मुख्य उद्देश्य विदेशी पूँजी को आकर्षित करना, उत्पादकता में वृद्धि करना, और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में स्थायी रूप से अंकुश मुक्त निर्यात सुनिश्चित करना है। इससे देश के उत्पादक क्षेत्र वैश्विक मानकों के साथ मिलान कर सकते हैं, जिससे विपणन और वित्तीय स्थिरता में सुधार हो।


6. अर्थतंत्र के मजबूत ढाँचे के लिए औद्योगिकीकरण जरूरी है? कैसे?

उत्तर: औद्योगिकीकरण अर्थतंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह विभिन्न उद्योगों के द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विकास में सहायक होता है। ये उत्पाद जैसे कि लोहा, स्टील, सीमेंट आदि सींचाई योजनाओं, सड़कों, पुलों और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में उपयोगी होते हैं। इसके अलावा, ये उद्योग वाहनों के विकास जैसे कि बस, ट्रक, रेलवे, हवाई जहाज, कारें, और द्विचक्रीय वाहन आदि की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इस प्रक्रिया से अर्थतंत्र के स्थिर और मजबूत ढांचे का निर्माण होता है।


7. विभागीय उद्योग किसे कहते हैं?

उत्तर: जब सरकार कुछ औद्योगिक इकाइयों की सीधी देखरेख करती है, तो वे इकाइयाँ एक विशेष खाते या विभाग के रूप में चलती हैं। इन इकाइयों की आय और खर्च का व्यवस्थित विवरण अंदाज़ा पत्र में शामिल होता है। इन्हें विभागीय उद्योग कहा जाता है, जैसे कि रेलवे, डाक सेवा आदि।


8. सहकारी क्षेत्र के उद्योग किसे कहते हैं?

उत्तर: सहकारी क्षेत्र के उद्योग वे होते हैं जो छोटे मालिकों के शोषण, श्रमिकों के शोषण और ग्राहकों के शोषण को रोकने के उद्देश्य से स्थापित किए जाते हैं। इनमें सभी सदस्यों को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जाता है, जैसे कि किसान सहकारी, सहकारी बैंक, उपभोक्ता सहकारी समिति आदि।


9. पूँजी वस्तु उद्योग किसे कहते हैं?

उत्तर: पूँजी वस्तु उद्योग वे होते हैं जो वस्तुओं के उत्पादन के बाद एक अतिरिक्त स्तर जोड़ते हैं। इनमें विभिन्न उत्पादों की वस्तुओं को शामिल किया जाता है, जैसे कि आधुनिक मशीनरी, संरक्षण सामग्री, और उपयुक्त औजार। इस प्रकार के उद्योग से अर्थतंत्र विदेशी देशों के प्रति अवलंबन को कम कर सकता है और अर्थतंत्र को मजबूत बना सकता


प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर को समझाते हुए बताइए ।  


प्रश्न 1. उद्योगों का महत्त्व दर्शानेवाले तीन मुद्दे समझाइए ।


1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि: उद्योगों का महत्त्व पहले से ही राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने में आया है. भारत के स्वतंत्रता के बाद, उद्योगों का विकास तेजी से हुआ है और इसके परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र का राष्ट्रीय आय में हिस्सा कम हो गया है। उद्योगों का राष्ट्रीय आय में हिस्सा 1950-51 में 16.6% था, जो बढ़कर 2013-14 में 27% हो गया है। इससे साफ होता है कि उद्योग क्षेत्र राष्ट्रीय आय के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह देश के आर्थिक विकास में मुख्य योगदान देता है।


2. रोजगार सृजन: उद्योगों का विकास रोजगार के अवसर सृजित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बेरोजगारी की समस्या को हल करने में उद्योगों ने बड़ी मदद की है। उद्योग क्षेत्र में रोजगारी के अवसरों का विस्तार होने से, 1951 में 10.6% श्रमिक उद्योग क्षेत्र में रोजगारी प्राप्त करते थे, जो 2011-12 में 24.3% तक बढ़ गया है। इससे स्पष्ट होता है कि उद्योग क्षेत्र अर्थव्यवस्था में नौकरी प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है।


3. निर्यात आय: अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उद्योगों की वस्तुओं की मांग और कीमत अधिक होती है, जिससे उद्योग क्षेत्र के विकास से निर्यात आय प्राप्त की जा सकती है। इसके जरिए, विदेशी मुद्रा प्राप्ति की संभावना होती है और आयात प्रतिस्थापन्न वस्तुओं का उत्पादन करके विदेशी मुद्रा की बचत भी होती है। 2013-14 में कुल निर्यात कमाई में उद्योगों का हिस्सा 2/3 है, जो उद्योग क्षेत्र के महत्त्व को दिखाता है जब बात विदेशी व्यापार और वित्तीय समर्थन की होती है। उद्योगों का अर्थशास्त्रिक और समाजिक महत्त्व काफी व्यापक है, जो एक देश की आर्थिक स्थिति और विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।


प्रश्न 2. पूंजीनिवेश के आधार पर औद्योगिक ढाँचे को समझाइए।

उत्तर: औद्योगिक ढाँचे का विचार पूंजीनिवेश के आधार पर किया जाता है। पूंजीनिवेश की दृष्टि से, उद्योगों को चार प्रमुख पैमानों में विभाजित किया जा सकता है:


1. गृह उद्योग: इसमें मुख्य रूप से परिवार के सदस्यों और सादा औजारों के बिना और निहील निवेश द्वारा चलाए जाने वाले उद्योग शामिल होते हैं। ये उद्योग छोटे होते हैं और उदाहरण में आप आदि दे सकते हैं।


2. छोटे पैमाने के उद्योग: इनमें वह उद्योग आते हैं जिनमें पूंजीनिवेश की सीमा रु. 25 लाख तक होती है और जिनका उत्पादन श्रमप्रधान होता है। इनमें औजार, वाहनों की मरम्मत, उपभोग वस्तुओं का उत्पादन शामिल हो सकता है। उदाहरण के लिए, धातु उद्योग, चमड़ा उद्योग आदि।


3. मध्यम पैमाने के उद्योग: इनमें वह उद्योग शामिल हैं जिनमें पूंजीनिवेश की सीमा रु. 5 करोड़ तक होती है और जिनका उत्पादन श्रमप्रधान या पूंजीप्रधान हो सकता है। उदाहरण के लिए, यंत्र, रसायन, इलेक्ट्रोनिक साधन आदि।


4. बड़े पैमाने के उद्योग: इनमें वह उद्योग शामिल हैं जिनमें पूंजीनिवेश की सीमा 10 करोड़ रुपये से अधिक होती है और जिनका उत्पादन मुख्य रूप से पूंजीप्रधान होता है। उदाहरण के रूप में, रेलवे के साधन, लोहा, सीमेंट उद्योग आदि। इस प्रकार, पूंजीनिवेश के आधार पर औद्योगिक ढाँचे को विभिन्न पैमानों में विभाजित किया जा सकता है, जिससे उद्योगों की विभिन्नता और उनका विकास समझा जा सकता है।


प्रश्न 3. मालिकी के आधार पर औद्योगिक ढाँचे को समझाइए।

उत्तर:औद्योगिक ढाँचे को मालिकी के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे:


1. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग: इन उद्योगों की मालिकी और संचालन सरकार के द्वारा किया जाता है। इनमें रेलवे, टेलीफोन, डाक विभाग आदि शामिल होते हैं। ये उद्योग सार्वजनिक निगम, विभागीय उद्योग, और संयुक्त पूँजी कंपनियों के रूप में भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय रेलवे, भारतीय टेलीकॉम।


2. निजी क्षेत्र के उद्योग: इन उद्योगों की मालिकी और संचालन व्यक्तिगत होती है। इनमें कार निर्माण, टीवी उत्पादन, बूट-चप्पल उत्पादन आदि शामिल हो सकते हैं। ये उद्योग व्यक्तिगत उद्यमों के रूप में संचालित होते हैं। उदाहरण के लिए, टाटा मोटर्स, सैमसंग, बजाज आटो।


3. संयुक्त क्षेत्र के उद्योग: इन उद्योगों में सरकार की अधिकांश मालिकी होती है, लेकिन यहां पर सार्वजनिक क्षेत्र की शारीरिक मालिकी की अनुपात में जनता या पेशेवरों को भागीदारी मिलती है। उदाहरण के लिए, गैस प्राक्तिक उपकेंद्र (GSPC) जैसे उदाहरण दिए जा सकते हैं।


4. सहकारी क्षेत्र के उद्योग: इन उद्योगों में उद्यमियों द्वारा शोषण की प्रवृत्तियों को रोकने के लिए संचालन किया जाता है। यहां पर सहकारी उपकेंद्र और संघों के माध्यम से उत्पादन और सेवाओं का प्रबंधन होता है।इस तरह, मालिकी के आधार पर औद्योगिक ढाँचे को चार प्रमुख सेक्टरों में विभाजित किया जा सकता है, जो समाज में उद्यमिता और विकास के लिए महत्वपूर्ण रूप से योगदान करते हैं।


प्रश्न 4. छोटे पैमाने के उद्योग का महत्त्व ? 

उत्तर: छोटे पैमाने के उद्योग का महत्व बहुत ही विस्तार है इन उद्योगों से निम्न देश को मिलते है :


1. रोजगारी का सर्जन: छोटे पैमाने के उद्योगों में श्रम प्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता है, जिससे रोजगार के अवसर अधिक सर्जित होते हैं। इससे नौकरियों का सर्जन होता है और अन्य समुदायों के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त होती है।


2. उत्पादन वृद्धि: छोटे पैमाने के उद्योगों में कम पूंजी निवेश के साथ अधिक उत्पादन किया जा सकता है। यह उत्पादन वृद्धि को बढ़ाता है और अर्थव्यवस्था में योगदान करता है।


3. निर्यात में वृद्धि: छोटे पैमाने के उद्योग भारतीय निर्यात में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं, जिससे विदेशी मुद्रा प्राप्ति होती है और विश्व बाजार में हमारे उत्पादों का स्थान बनता है।


4. श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति: ये उद्योग श्रमप्रधान होते हैं और उत्पादन की प्रक्रिया में मुख्य रूप से श्रम का उपयोग होता है। इससे श्रमिकों को रोजगार का अवसर प्राप्त होता है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।


5. संतुलित प्रादेशिक विकास: छोटे पैमाने के उद्योग समुदायों के बीच समान विकास को बढ़ावा देते हैं और असमानता को कम करते हैं। इन्हें स्थानीय संगठनों द्वारा संचालित किया जाता है जिससे विकसित और अल्पविकसित क्षेत्रों में संतुलित विकास होता है।


प्रश्न 5. विशिष्ट आर्थिक विस्तार का महत्त्व समझाइए । 

उत्तर: विशिष्ट आर्थिक विस्तार (SEZ) निम्नलिखित तरीकों से महत्त्वपूर्ण है:


- विदेशी पूंजी निवेश को आकर्षित करना: SEZ में निवेश करने पर विदेशी पूंजी को टेक्स और अन्य छूट प्राप्त होती है, जिससे उत्पादन और रोजगार के अवसर सृजित होते हैं।


- निर्यात के लिए प्रोत्साहन: SEZ निर्यात को बढ़ावा देते हैं और देश की अर्थव्यवस्था को विश्व स्तर पर मजबूत करने में मदद करते हैं।


- अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा में नियंत्रण: SEZ उत्पादों को विश्वस्तरीय मानकों के अनुसार तैयार करने में मदद करते हैं और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में पहुंचने में सहायक होते हैं।


- विशिष्ट कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्था: SEZ कानूनी और प्रशासनिक रूप से अन्य क्षेत्रों से भिन्न होते हैं, जिससे उद्योगों को अधिक सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। इन सभी कारकों से SEZ भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और देश की आर्थिक संरचना में सुधार प्राप्त करते हैं।


प्रश्न 6 . औद्योगिक क्षेत्र का महत्त्व विस्तारपूर्वक समझाइए।

उत्तर: देश के आर्थिक विकास के लिए, कृषि क्षेत्र के विकास के लिए, रोजगार के नए अवसर सर्जित करने के लिए अर्थतंत्र के आंतरिक साधनों के महत्त्वपूर्ण उपयोग के लिए औद्योगिकीकरण आवश्यक है। उद्योगों का महत्त्व निम्नलिखित है:


1. राष्ट्रीय आय में योगदान: भारत में स्वतंत्रता के समय कृषि क्षेत्र का अर्थतंत्र पर प्रभुत्व था, परंतु उद्योगों के विकास से उसका हिस्सा बढ़ा है। उदाहरण के लिए, 1951 में उद्योगों का राष्ट्रीय आय में अंश 16.6% था, जो 2013-14 में 27% हो गया है।


2. रोजगार में योगदान: भारत जनसंख्या में अत्यधिक होने के कारण रोजगार के अवसरों की कमी है। छोटे पैमाने के उद्योग श्रमप्रधान उत्पादन पद्धतियों से रोजगार सर्जित करते हैं। उदाहरण के लिए, 1951 में उद्योग क्षेत्र ने 10.6% श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया, जो 2011-12 में 24.3% हो गया है।


3. निर्यात द्वारा आय: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक वस्तुओं की मांग और कीमत अधिक होती है, जिससे विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है। उदाहरण के लिए, 2013-14 में देश की कुल निर्यात में उद्योगों का हिस्सा 2/3 है।


4. अर्थतंत्र का संतुलित विकास: उद्योगों के विकास से लोगों की आय का एक हिस्सा बचत होता है और उनकी मांग बढ़ती है। सरकार संरक्षण के साधनों के विस्तार के माध्यम से संतुलित विकास को संभालने में उद्योगों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।


5. कृषि का आधुनिकीकरण: उद्योगों द्वारा नई तकनीकी सुविधाएं जैसे ट्रैक्टर, थ्रेशर, सबमर्सिबल पंप उपलब्ध कराई जाती हैं, जो कृषि क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


6. अर्थतंत्र का मजबूत ढाँचा: उद्योगों का विकास अर्थतंत्र के मजबूत ढाँचे के संरचना में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है, जो सिंचाई योजनाओं, सड़कों, पुलों और अन्य अवस्थापन साधनों में उपयोगी होते हैं। इस प्रकार, औद्योगिकीकरण देश के विकास में एक महत्त्वपूर्ण क्रियावली है जो आर्थिक स्थिति को सुधारने में सक्षम होती है।


प्रश्न. 7 " पारस पाषाणस्य का प्रभाव स्पैर्शन लेहि सवर्ण भवति " को समझाइए । 

उत्तर: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह समझ में रहता है और समाज की व्यवस्था का पालन करता है जिससे उसकी आत्मिकता समाज से बन जाती है वह अच्छे के साथ रहता है तो  ही और बुरे के साथ रहता है तो बुराई सीखना है जिसके कारण उसके सम्मान और अपमान दोनों के बीच जीना पड़ता है और उसकी सफलता और सफलता उसके जीवन में आती है और जाती है जैसे एक बूंद चली बादलों से लगी पहचान उसे परिवार क्यों छोड़ा ? कहां जाएगी किस से मिलेगी उसे कुछ पता नहीं बूंद तेरे साथ सौभाग्य भी था और दुर्भाग्य भी था सीपी के मुख पर गिरी तो मोती बन गई जो किसी के गले का हर बन गई वही बूंद केले के फूल पर गिरी तो कपूर बन गई जो जलकर वातावरण को महकाया बूंद तेरा दुर्भाग्य वहा था जब तुम साप के मुख पर गिरी तो विष बन गई जो किसी के जीवन को समाप्त कर दिया ठीक इसी प्रकार विधार्थी संगत के संपर्क में आने पर अच्छा और बुरा बन जाता है इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है ! 

" पारस पाषाणस्य का प्रभाव स्पैर्शन लेहि सवर्ण भवति

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