Chapter 11 ग्राहक सुरक्षा customer Care वाणिज्यिक व्यवस्था और संचालन

 स्वाध्याय ( exercise ) 

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर सही कारण समझाइए । 

प्रश्न 1. ग्राहक सुरक्षा का कानून किस वर्ष पारित किया गया था ?

(A) 1956

(B) 1932

(C) 1986

(D) 2015  

उत्तर : (C) 1986

ग्राहक सुरक्षा कानून 1986 में पारित किया गया था। यह कानून ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाया गया था और इसमें ग्राहकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक करने के प्रावधान शामिल हैं।


प्रश्न 2. ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त किसने दिया है ?

(A) जवाहरलाल नेहरू

(B) सुभाषचन्द्र बोस

(C) इन्दिरा गांधी

(D) गाँधीजी  

उत्तर : (D) गाँधीजी

महात्मा गाँधीजी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धांत दिया था। यह सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि संपत्ति और संसाधनों के मालिक सिर्फ ट्रस्टी हैं और उन्हें समाज के हित में उनका उपयोग करना चाहिए।


प्रश्न 3. इनमें से कौन-सा अधिकार ग्राहक सुरक्षा कानून, 1986 के अनुसार नहीं है?

(A) सुरक्षा

(B) प्राथमिक आवश्यकताएँ

(C) जानकारी

(D) चयन  

उत्तर : (B) प्राथमिक आवश्यकताएँ

ग्राहक सुरक्षा कानून, 1986 के अनुसार 'प्राथमिक आवश्यकताएँ' ग्राहक अधिकारों में शामिल नहीं हैं। इस कानून में सुरक्षा, जानकारी, और चयन जैसे अधिकार शामिल हैं।


प्रश्न 4. इनमें से कौन-सा विकल्प ग्राहक सुरक्षा कानून अनुसार विवाद निवारण संस्थाओं में नहीं होता?

(A) लोक न्यायालय

(B) जिला कक्षा का स्तर

(C) राज्य कक्षा का आयोग

(D) राष्ट्रीय कक्षा का आयोग  

उत्तर : (A) लोक न्यायालय

ग्राहक सुरक्षा कानून के अनुसार विवाद निवारण संस्थाओं में लोक न्यायालय शामिल नहीं हैं। इसमें जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के आयोग होते हैं।


प्रश्न 5. जिला कक्षा के स्तर/फोरम में कितने सदस्य होते हैं?

(A) कुल तीन

(B) कम से कम तीन

(C) कम से कम चार

(D) कुल दो  

उत्तर : (A) कुल तीन

जिला कक्षा के स्तर/फोरम में कुल तीन सदस्य होते हैं। ये सदस्य उपभोक्ता विवादों को सुलझाने के लिए नियुक्त किए जाते हैं।


प्रश्न 6. किस प्रकार के फोरम/आयोग में सदस्यों की नियुक्ति केन्द्र सरकार करती है?

(A) जिला स्तर

(B) राज्य स्तर

(C) राष्ट्रीय स्तर

(D) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर  

उत्तर : (C) राष्ट्रीय स्तर


राष्ट्रीय स्तर के आयोग में सदस्यों की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है। यह आयोग उपभोक्ता मामलों की सुनवाई और निपटान करता है।


प्रश्न 7. सार्वजनिक हित का आवेदन कौन-सी अदालत (कोर्ट) में किया जाता है?

(A) फौजदारी अदालत

(B) दिवानी अदालत

(C) जिला अदालत

(D) सुप्रीम अदालत  

उत्तर : (D) सुप्रीम अदालत

सार्वजनिक हित का आवेदन सुप्रीम अदालत में किया जाता है। यह अदालत सार्वजनिक मामलों और अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायिक निकाय है।


प्रश्न 8. ग्राहक सुरक्षा की कौन-सी संस्था की स्थापना अहमदाबाद के साथ संकलित है?

(A) Consumer Education and Research Centre

(B) Consumer Guidance Society of India

(C) Consumer Unity and Trust Society

(D) Consumer Co-ordination Council  

उत्तर : (A) Consumer Education and Research Centre

Consumer Education and Research Centre (CERC) की स्थापना अहमदाबाद में की गई है। यह संस्था उपभोक्ता शिक्षा और शोध के क्षेत्र में काम करती है।


प्रश्न 9. ग्राहक सुरक्षा के लिये कौन-सी संस्था भारत में कार्य करने वाली संस्थाओं के संकलन का काम करती है?

(A) Consumer Protection Council

(B) Consumer Education and Research Centre

(C) Consumer Co-ordination Council

(D) Consumer Unity and Trust Society  

उत्तर : (C) Consumer Co-ordination Council

Consumer Co-ordination Council ग्राहक सुरक्षा के लिए भारत में कार्य करने वाली संस्थाओं के संकलन का काम करती है।


प्रश्न 10. इनमें से कौन-सा कार्य ग्राहक संगठन नहीं करते?

(A) ग्राहक अधिकारो के बारे में लोगों को शिक्षण देना

(B) ग्राहक हितवाली जानकारी का प्रकाशन करना

(C) ग्राहकों की सूची उद्योगों को प्रदान करना

(D) ग्राहकों के हितों का रक्षण करना  

उत्तर : (C) ग्राहकों की सूची उद्योगों को प्रदान करना


ग्राहक संगठन ग्राहकों की सूची उद्योगों को प्रदान नहीं करते हैं। उनका मुख्य कार्य ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें जागरूक करना होता है।


प्रश्न 11. 'जागो ग्राहक जागो' विज्ञापन कौन-से मंत्रालय द्वारा दिया जाता है?

(A) भारत सरकार का उपभोक्ता मंत्रालय

(B) राज्य सरकार का उपभोक्ता मंत्रालय

(C) भारत सरकार का कृषि मंत्रालय

(D) भारत सरकार का उद्योग मंत्रालय  

उत्तर : (A) भारत सरकार का उपभोक्ता मंत्रालय

'जागो ग्राहक जागो' विज्ञापन भारत सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा दिया जाता है। यह अभियान उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने के लिए चलाया जाता है।


2. निम्नलिखित प्रश्नों के दो तीन वाक्यों में दीजिए । 

प्रश्न 1. मुक्त अर्थतंत्र में किसे बाजार का राजा कहा जाता है ?

उत्तर: मुक्त अर्थतंत्र में ग्राहक को बाजार का राजा कहा जाता है। इसका कारण यह है कि मुक्त अर्थतंत्र में उत्पादन और सेवाओं की आपूर्ति मुख्य रूप से ग्राहकों की मांग पर निर्भर करती है। ग्राहक अपने क्रय निर्णयों और प्राथमिकताओं के माध्यम से यह निर्धारित करते हैं कि बाजार में कौन-सी वस्तुएं और सेवाएं सफल होंगी। उद्यमी और व्यवसायी ग्राहकों की आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उत्पाद और सेवाओं को अनुकूलित करते हैं, जिससे ग्राहकों की भूमिका बाजार में सर्वोपरि हो जाती है। इस प्रकार, ग्राहक की प्राथमिकता और संतुष्टि ही व्यापारिक सफलता की कुंजी होती है।


प्रश्न 2. ग्राहकों के होनेवाले शोषण को मुख्यत: कौन-से तीन विभागों में बाँटा गया है ?

उत्तर: ग्राहकों के होनेवाले शोषण को मुख्यतः निम्नलिखित तीन विभागों में बाँटा गया है:


I. शारीरिक और मानसिक शोषण: इसमें ऐसे प्रथाएं शामिल हैं जो ग्राहकों को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाती हैं। उदाहरण के लिए, असुरक्षित उत्पादों का विक्रय करना, जिससे स्वास्थ्य को खतरा होता है, या भ्रामक विज्ञापन के माध्यम से मानसिक तनाव और भ्रम उत्पन्न करना। यह शोषण ग्राहकों के स्वास्थ्य और मानसिक शांति को प्रभावित करता है।


II. आर्थिक शोषण: इसमें ऐसे तरीके शामिल हैं जिनसे ग्राहकों को वित्तीय हानि होती है। उदाहरण के लिए, नकली उत्पादों की बिक्री, वस्तुओं और सेवाओं के लिए अत्यधिक मूल्य वसूलना, वजन और माप में धांधली करना, आदि। यह शोषण ग्राहकों के आर्थिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाता है और उन्हें वित्तीय असुरक्षा की स्थिति में डालता है।


III. सार्वजनिक हितों को नुकसान: यह शोषण उस समय होता है जब किसी उत्पाद या सेवा का उपयोग समाज के व्यापक हितों को नुकसान पहुंचाता है। उदाहरण के लिए, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले उत्पादों का उपयोग, जो न केवल व्यक्तिगत ग्राहकों के लिए बल्कि पूरी समाज के लिए हानिकारक होते हैं। इससे सामुदायिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


प्रश्न 3. ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के अनुसार कौन-सा व्यक्ति, धन्धे के स्थान पर आने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति होता है ?

उत्तर: ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के अनुसार ग्राहक धन्धे के स्थान पर आने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति होता है। महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तुत इस सिद्धांत के अनुसार, व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों की सेवा करना है। यह मान्यता है कि व्यवसायी केवल ग्राहकों के लिए काम कर रहे हैं और उनके बिना व्यवसाय का कोई अस्तित्व नहीं होता। ग्राहक के प्रति सम्मान और सेवा की भावना को प्राथमिकता देते हुए, इस सिद्धांत में ग्राहक को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।


प्रश्न 4. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रस्तुत मार्गदर्शिका में कौन-से दो अधिकार ग्राहकों को प्राप्त हों, इसकी सिफारिश की है ?


उत्तर: संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रस्तुत मार्गदर्शिका के अनुसार ग्राहकों को निम्नलिखित दो अधिकार प्राप्त हों, इसकी सिफारिश की गई है:


I. प्राथमिक आवश्यकताएँ : यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि ग्राहकों को उनकी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हो। इसमें भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य सेवाएँ और शिक्षा शामिल हैं। इस अधिकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी उपभोक्ता एक सम्मानजनक जीवन जी सकें और उनके जीवन की बुनियादी जरूरतें पूरी हों।


II. आरोग्यप्रद वातावरण : यह अधिकार ग्राहकों को एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण प्रदान करने पर केंद्रित है। इसमें स्वच्छ जल, स्वच्छ हवा और स्वास्थ्यकर उत्पादों की उपलब्धता शामिल है। इस अधिकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उपभोक्ता उन उत्पादों और सेवाओं का उपयोग करें जो उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए हानिकारक नहीं हों।


प्रश्न 5. ग्राहक ने खरीदी की है, इनके प्रमाण के रूप में क्या प्रस्तुत करना अनिवार्य है ?

उत्तर: ग्राहक ने जो भी खरीदी की है, उसके प्रमाण के रूप में बिल (Bill) या बीजक (Invoice) प्रस्तुत करना अनिवार्य है। बिल या बीजक वह दस्तावेज है जो खरीदारी की पुष्टि करता है और उसमें वस्तुओं या सेवाओं के नाम, मात्रा, मूल्य, तिथि और विक्रेता की जानकारी होती है। यह दस्तावेज ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करता है और विवाद की स्थिति में कानूनी प्रमाण के रूप में कार्य करता है। बिल या बीजक प्रस्तुत करना न केवल उपभोक्ता के लिए आवश्यक है बल्कि विक्रेता के लिए भी महत्वपूर्ण है ताकि सभी लेन-देन का सही और पारदर्शी रिकॉर्ड हो।


प्रश्न 6. जिला कक्षा के फोरम के निर्णय से सन्तुष्ट न हो तो पक्षकार को कितने दिनों में, कहाँ पर पुनः विचार के लिये भेजना पड़ता है ?

उत्तर: जिला कक्षा के फोरम के निर्णय से सन्तुष्ट न हो तो पक्षकार को 30 दिनों के भीतर पुनः विचार के लिये राज्य कक्षा के आयोग में आवेदन करना पड़ता है। यह प्रक्रिया ग्राहकों को न्याय सुनिश्चित करने का एक तरीका है, जिससे वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं और यदि उन्हें लगता है कि जिला स्तर पर न्याय नहीं मिला है, तो वे उच्च स्तर पर अपील कर सकते हैं। राज्य कक्षा का आयोग जिला स्तर के निर्णय की समीक्षा करता है और मामले की विस्तृत जांच करके उचित निर्णय लेता है।


प्रश्न 7. राज्य कक्षा के आयोग के निर्णय से सन्तुष्ट न हो तो पक्षकार को कितने दिनों में, कहाँ पर पुनः विचार के लिये भेजना पड़ता है ?

उत्तर: राज्य कक्षा के आयोग के निर्णय से सन्तुष्ट न हो तो पक्षकार को 30 दिनों के भीतर पुनः विचार हेतु राष्ट्रीय कक्षा के आयोग के समक्ष आवेदन करना पड़ता है। यह अपील प्रक्रिया ग्राहकों को न्याय की एक और परत प्रदान करती है, जिससे वे अपने मामलों की निष्पक्ष और विस्तृत समीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्रीय कक्षा का आयोग राज्य स्तर के निर्णय की समीक्षा करता है और सुनिश्चित करता है कि सभी पक्षों को निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय मिले।


प्रश्न 8. राष्ट्रीय कक्षा के आयोग में किये गये आवेदन से प्राप्त निर्णय से सन्तुष्ट न हो तो कहाँ पर पुनः विचारणा हेतु आवेदन कर सकते हैं ?

उत्तर: राष्ट्रीय कक्षा के आयोग में किये गये आवेदन से प्राप्त निर्णय से सन्तुष्ट न होने पर पुनः विचारणा हेतु सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में आवेदन कर सकते हैं। यह न्याय प्रणाली का सबसे उच्च स्तर है, जहाँ ग्राहकों के मामले की अंतिम और निर्णायक समीक्षा की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को अंतिम माना जाता है और इससे उपभोक्ताओं को उच्चतम स्तर का न्याय प्राप्त होता है।


प्रश्न 9. सार्वजनिक हित का आवेदन कौन-से न्यायालय में कर सकते हैं ?

उत्तर: सार्वजनिक हित का आवेदन राज्य का उच्च न्यायालय (High Court) में अथवा देश का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में कर सकते हैं। सार्वजनिक हित याचिका (Public Interest Litigation) का उद्देश्य समाज के व्यापक हितों की रक्षा करना है, और यह न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो समाज के कमजोर और असुरक्षित वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है। यह प्रक्रिया नागरिकों को यह अधिकार देती है कि वे अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए न्यायालय की शरण ले सकें।


प्रश्न 10. निम्न के विस्तृत रूप लिखिए । 


I. CERC – Consumer Education and Research Centre (Ahmedabad): यह संस्था उपभोक्ताओं को शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से जागरूक बनाने का काम करती है। इसका मुख्यालय अहमदाबाद में स्थित है और यह उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और जागरूकता फैलाने के लिए काम करती है।


II. CWF – Consumer Welfare Fund: उपभोक्ता कल्याण निधि का उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और उनकी सहायता के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। यह निधि उपभोक्ताओं के हितों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं का समर्थन करती है।


III. NCH – National Consumer Helpline: राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन उपभोक्ताओं को उनकी समस्याओं और शिकायतों के समाधान के लिए एक केंद्रीकृत हेल्पलाइन सेवा प्रदान करती है। यह सेवा उपभोक्ताओं को विभिन्न मुद्दों पर मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करती है।


IV. CUTS – Consumer Unity and Trust Society (Jaipur): यह संस्था जयपुर में स्थित है और उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा और जागरूकता फैलाने के लिए काम करती है। यह संस्था उपभोक्ता जागरूकता, शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करती है।


V. CGSI – Consumer Guidance Society of India (Mumbai): यह संस्था मुंबई में स्थित है और उपभोक्ताओं को मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करती है। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना है।


VI. PIL – Public Interest Litigation: सार्वजनिक हित याचिका का उद्देश्य समाज के व्यापक हितों की रक्षा करना है। यह एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नागरिक न्यायालय में किसी भी सार्वजनिक मुद्दे पर याचिका दाखिल कर सकते हैं।


VII. EFP – Eco Friendly Products: इको फ्रेंडली प्रोडक्ट्स वे उत्पाद होते हैं जो पर्यावरण के अनुकूल होते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना उपयोग किए जा सकते हैं। इन उत्पादों का उद्देश्य पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करना है।


VIII. CPA – Consumer Protection Act: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया एक कानूनी प्रावधान है। यह अधिनियम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।


IX. BSNL – Bharat Sanchar Nigam Limited:

भारत संचार निगम लिमिटेड एक भारतीय सरकारी दूरसंचार कंपनी है। यह कंपनी विभिन्न दूरसंचार सेवाएँ प्रदान करती है और पूरे देश में संचार सेवाओं का संचालन करती है।


X. DLF – District Level Forum: जिला स्तर का फोरम उपभोक्ताओं की शिकायतों और समस्याओं का निवारण करने के लिए स्थापित किया गया एक स्थानीय निकाय है। इसका उद्देश्य स्थानीय स्तर पर उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करना है।


XI. NGOs – Non Government Organisations:

गैर सरकारी संगठन वे संगठन होते हैं जो सरकार के अधीन नहीं होते और स्वतंत्र रूप से समाज सेवा के कार्यों में लगे होते हैं। इन संगठनों का उद्देश्य समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार और विकास करना है।


XII. SLC – State Level Commission: राज्य स्तर का आयोग उपभोक्ताओं की शिकायतों और समस्याओं का निवारण करने के लिए राज्य स्तर पर स्थापित एक निकाय है। इसका उद्देश्य राज्य स्तर पर उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करना है।


XIII. NLC – National Level Commission: राष्ट्रीय स्तर का आयोग उपभोक्ताओं की शिकायतों और समस्याओं का निवारण करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित एक उच्चतम निकाय है। इसका उद्देश्य देश भर में उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है।


प्रश्न 11. ग्राहक सुरक्षा का अधिकार किसे कहते हैं?

उत्तर: ग्राहक सुरक्षा का अधिकार का मतलब उन वस्तुओं या सेवाओं से सुरक्षा है जो ग्राहक के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। इस अधिकार का उद्देश्य ग्राहकों को ऐसे उत्पादों और सेवाओं से सुरक्षित रखना है जो उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य, या जीवन को खतरे में डाल सकती हैं। इसके तहत निम्नलिखित पहलू शामिल होते हैं:


1. स्वास्थ्य और सुरक्षा: ग्राहकों को ऐसे उत्पादों और सेवाओं से सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी होती है जो उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को नुकसान पहुँचा सकती हैं। इसमें खाद्य उत्पाद, औषधियाँ, और अन्य रोज़मर्रा की उपयोगी वस्तुएं शामिल होती हैं।

  

2. गुणवत्ता मानक:  उत्पादों और सेवाओं को न्यूनतम गुणवत्ता मानकों का पालन करना चाहिए ताकि वे सुरक्षित और उपयोगी हो सकें। यदि कोई उत्पाद इन मानकों को पूरा नहीं करता, तो ग्राहक उसे खरीदने से बच सकता है।

  

3. विनियामक अनुपालन: सरकार और संबंधित एजेंसियों द्वारा निर्धारित नियम और विनियमों का पालन अनिवार्य है ताकि उत्पाद और सेवाएँ ग्राहकों के लिए सुरक्षित रहें।

  

4. जानकारी की पारदर्शिता: ग्राहकों को उत्पादों और सेवाओं के संभावित जोखिमों और सुरक्षा उपायों के बारे में स्पष्ट और सटीक जानकारी मिलनी चाहिए। इस प्रकार, ग्राहक सुरक्षा का अधिकार उन्हें सुरक्षित और जोखिम-मुक्त उत्पादों और सेवाओं की सुनिश्चितता प्रदान करता है, जिससे वे बिना किसी स्वास्थ्य जोखिम के सुरक्षित रूप से उनका उपयोग कर सकें।


प्रश्न 12. चयन का अधिकार अर्थात् क्या?

उत्तर: चयन का अधिकार का अर्थ है विभिन्न वस्तुओं या सेवाओं में से अपनी पसंद के आधार पर चयन करके प्रतियोगी मूल्य पर उन्हें खरीदने की स्वतंत्रता होना। यह अधिकार ग्राहकों को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि वे अपनी आवश्यकता और पसंद के अनुसार सबसे उपयुक्त और किफायती उत्पाद या सेवा का चुनाव कर सकें। इसमें निम्नलिखित पहलू शामिल होते हैं:


1. विविधता: बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों और सेवाओं की उपलब्धता होनी चाहिए ताकि ग्राहकों के पास चुनने के लिए कई विकल्प हों। यह विविधता उत्पाद की विशेषताओं, गुणवत्ता, और ब्रांड के आधार पर हो सकती है।

  

2. प्रतिस्पर्धी मूल्य: ग्राहकों को उन उत्पादों और सेवाओं को चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए जो उनके बजट में सबसे अच्छी तरह फिट हों। प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण से ग्राहकों को उनके पैसे का सर्वोत्तम मूल्य मिलता है।

  

3. निर्णय की स्वतंत्रता: ग्राहकों को किसी भी प्रकार के दबाव या प्रतिबंध के बिना अपने चयन का निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। उन्हें किसी एक उत्पाद या सेवा को चुनने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।

  

4. अधिकारों की सुरक्षा: चयन के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए ग्राहक सुरक्षा कानून और नीतियाँ होनी चाहिए जो ग्राहकों को अनुचित व्यापारिक प्रथाओं से बचाएं और उन्हें उनके चयन के अधिकार का पूरा लाभ उठाने दें।

इस प्रकार, चयन का अधिकार ग्राहकों को यह सुविधा और सुरक्षा प्रदान करता है कि वे अपने व्यक्तिगत और वित्तीय जरूरतों के अनुसार सबसे उपयुक्त उत्पाद या सेवा का चयन कर सकें।


3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दे अनुसार कारण समझाते हुए दीजिए । 


प्रश्न 1. निरन्तर बढ़ती स्पर्धा और कुल विक्रय में अपना हिस्सा बढ़ाने हेतु वस्तु या सेवा के उत्पादक ग्राहकों की किस तरह करते हैं?

उत्तर: निरन्तर बढ़ती स्पर्धा और कुल विक्रय में अपना हिस्सा बढ़ाने के लिए, वस्तु या सेवा के उत्पादक अक्सर अनैतिक, शोषणयुक्त और अनुचित प्रथाओं का सहारा लेते हैं। इन प्रथाओं के कारण ग्राहकों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं:


I. दोषयुक्त उत्पादों की बिक्री: उत्पादक कई बार ऐसी वस्तुएं बेचते हैं जो दोषपूर्ण होती हैं या निम्न गुणवत्ता की होती हैं। इन वस्तुओं का उपयोग करने पर ग्राहकों को स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।


II. मिश्रण और मिलावट: उत्पादक अपनी वस्तुओं में मिलावट कर देते हैं, जिससे ग्राहकों को गुणवत्ताहीन उत्पाद मिलते हैं। ऐसे उत्पाद ग्राहकों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं और उन्हें धोखा अनुभव होता है।


III. गलत और असत्य विज्ञापन: उत्पादक अपने उत्पादों की विशेषताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं या झूठे दावे करते हैं। ऐसे विज्ञापनों के कारण ग्राहक भ्रमित हो जाते हैं और उन्हें वास्तविकता से भिन्न उत्पाद मिलते हैं।


IV. काला बाजारी और अधिक मूल्य वसूलना: उत्पादक संग्रहखारी और काला बाजारी द्वारा वस्तुओं की कमी पैदा करते हैं और फिर उनसे अधिक मूल्य वसूलते हैं। इससे ग्राहकों को आर्थिक शोषण का सामना करना पड़ता है।


V. बनावटी वस्तुओं की बिक्री बाजार में नकली और बनावटी वस्तुओं की बिक्री बढ़ जाती है, जिससे ग्राहकों को अपने पैसे की सही कीमत नहीं मिलती और वे ठगा महसूस करते हैं।

इस प्रकार, निरन्तर बढ़ती स्पर्धा के दौर में उत्पादक ग्राहकों को विभिन्न तरीकों से छलते और शोषण करते हैं, जिससे ग्राहक असंतुष्ट और निराश हो जाते हैं।


प्रश्न 2. ग्राहक शोषण के बारे में समझाइए।

उत्तर: ग्राहक शोषण की स्थिति में, ग्राहकों के साथ विभिन्न प्रकार के अनुचित और अनैतिक व्यवहार किए जाते हैं। ग्राहक शोषण मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया है:


I. शारीरिक और मानसिक शोषण:


शारीरिक हानि: जब उत्पादक निम्न गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन करते हैं या उनमें हानिकारक सामग्री मिलाते हैं, तो इसका सीधा प्रभाव ग्राहकों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ऐसी वस्तुओं का उपयोग करने से शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि त्वचा पर एलर्जी, भोजन से विषाक्तता आदि।

  

मानसिक हानि: दोषपूर्ण या निम्न गुणवत्ता की वस्तुएं प्राप्त करने पर ग्राहकों में हताशा, क्रोध और निराशा की भावना उत्पन्न होती है। इसके साथ ही, ग्राहकों को यह अनुभव होता है कि उन्हें धोखा दिया गया है, जिससे उनका विश्वास टूटता है।


II. आर्थिक शोषण:


अधिक मूल्य वसूलना: उत्पादक संग्रहखोरी और काला बाजारी के माध्यम से वस्तुओं की कमी पैदा करते हैं और फिर उन वस्तुओं के लिए अत्यधिक मूल्य वसूलते हैं। इससे ग्राहकों को आर्थिक रूप से नुकसान होता है और वे अपनी आवश्यक वस्तुओं के लिए अधिक पैसा खर्च करने पर मजबूर हो जाते हैं।

  

मुद्रित मूल्य से अधिक लेना: कई बार विक्रेता वस्तुओं की मुद्रित कीमत से अधिक मूल्य वसूलते हैं, जिससे ग्राहकों को आर्थिक शोषण का सामना करना पड़ता है। यह एक सामान्य प्रथा है जो ग्राहकों के साथ वित्तीय अन्याय करती है।


III. सार्वजनिक हितों को नुकसान:

पर्यावरण को नुकसान: उत्पादकों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले हानिकारक पदार्थ और प्रदूषणकारी प्रक्रियाएं पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचाती हैं। इससे जल, वायु और मिट्टी प्रदूषित होती है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामूहिक हितों को प्रभावित करती है।

  

सामाजिक और आर्थिक असंतुलन: पर्यावरण को नुकसान के अलावा, शोषणकारी प्रथाएं सामाजिक और आर्थिक असंतुलन को भी बढ़ावा देती हैं। इससे समाज में असमानता और सामाजिक असंतोष फैलता है। इस प्रकार, ग्राहक शोषण का प्रभाव केवल व्यक्तिगत ग्राहकों पर ही नहीं, बल्कि पूरे समाज और पर्यावरण पर भी पड़ता है। इसे रोकने के लिए सरकार और उपभोक्ता संगठनों द्वारा कड़े कानून और नीतियों की आवश्यकता होती है।


प्रश्न 3. ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त और ग्राहक सुरक्षा पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर: ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त गाँधीजी द्वारा प्रस्तुत ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक विचारधारा है। इस सिद्धान्त के अनुसार, समाज ने जिसको सम्पत्ति प्रदान की है, उसे उसका उपयोग समाज के व्यक्तियों के हित में करना चाहिए। इस विचारधारा का मुख्य उद्देश्य यह है कि धनी और संपन्न व्यक्ति अपनी संपत्ति को केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए न इस्तेमाल करके समाज की भलाई के लिए प्रयोग करें। गाँधीजी ने ट्रस्टीशिप को एक नैतिक और आर्थिक सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया, जो न्याय और समानता पर आधारित है।


ग्राहक सुरक्षा पर टिप्पणी

गाँधीजी के ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त का मुख्य अंग यह है कि धन्धे का मुख्य उद्देश्य समाज की सेवा करना है। ग्राहकों के संदर्भ में गाँधीजी का दृष्टिकोण अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है। गाँधीजी कहते हैं कि "ग्राहक धन्धे के स्थल पर आने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मानव है। वह हम (धन्धार्थियों) पर आधारित नहीं है, बल्कि हम उस पर आधारित हैं।" इसका तात्पर्य यह है कि ग्राहक ही व्यापार का मूल आधार है और व्यापारियों का अस्तित्व और सफलता ग्राहकों की संतुष्टि और भलाई पर निर्भर करती है। गाँधीजी आगे कहते हैं कि ग्राहक हमारे कार्य में बाधारूप नहीं है, बल्कि वह हमारे कार्य का हेतु है। इसका अर्थ यह है कि ग्राहक व्यापार के केंद्र में होता है और उसे सेवा प्रदान करना व्यापार का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। ग्राहक हमारे धन्धे का बाह्य व्यक्ति नहीं है, बल्कि वह धन्धे का ही अभिन्न भाग है। इसलिए व्यापारियों को ग्राहकों की आवश्यकताओं और उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


ग्राहक सुरक्षा के संदर्भ में गाँधीजी का दृष्टिकोण:

I. ग्राहक की महत्ता: ग्राहक धन्धे का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। व्यापार का मुख्य उद्देश्य ग्राहक को सेवा प्रदान करना और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना है।


II. समर्पण और सेवा: व्यापारियों को ग्राहकों की सेवा को अपना मुख्य उद्देश्य बनाना चाहिए। यह सिद्धान्त व्यापार को एक नैतिक आधार प्रदान करता है।


III. संपत्ति का सही उपयोग: ट्रस्टीशिप सिद्धान्त के अनुसार, संपत्ति का उपयोग समाज के हित में होना चाहिए। व्यापारियों को अपनी संपत्ति का उपयोग ग्राहकों की भलाई और उनकी सुरक्षा के लिए करना चाहिए।


IV. नैतिक व्यापार: गाँधीजी के सिद्धान्त व्यापार को नैतिक और ईमानदार बनाने का संदेश देते हैं। व्यापारियों को ग्राहकों के साथ ईमानदारी और पारदर्शिता से व्यवहार करना चाहिए।


V. ग्राहक की सुरक्षा:  ग्राहकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना व्यापार का महत्वपूर्ण उद्देश्य होना चाहिए। इसमें उत्पाद की गुणवत्ता, सही मूल्य, और सुरक्षा के सभी मानकों का पालन शामिल है।


इस प्रकार, गाँधीजी का ट्रस्टीशिप सिद्धान्त और ग्राहक सुरक्षा पर उनका दृष्टिकोण व्यापार को एक नैतिक और समाजोपयोगी रूप देने का प्रयास है। व्यापारियों को इस सिद्धान्त को अपनाकर समाज की सेवा करने और ग्राहकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए। यह सिद्धान्त न केवल व्यापार की सफलता के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज की समग्र प्रगति और विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।


प्रश्न 4. ग्राहकों के दृष्टिकोण से ग्राहक सुरक्षा के बारे में समझाइए।

उत्तर: ग्राहकों के दृष्टिकोण से ग्राहक सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें शोषण और अनैतिक व्यापारिक प्रथाओं से बचाने का कार्य करती है। ग्राहकों के दृष्टिकोण से ग्राहक सुरक्षा का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है:


1. ग्राहकों का व्यापक शोषण: विभिन्न धन्धाकीय इकाइयाँ अपने मुनाफे को अधिकतम करने के लिए असुरक्षित उत्पाद, मिश्रण (मिलावट), असत्य और भ्रामक विज्ञापन, काला बाजार (ब्लैक मार्केटिंग), और संग्रहखोरी जैसी अनैतिक और शोषणयुक्त नीतियों का सहारा लेती हैं। ऐसे मामलों में ग्राहकों को गलत और हानिकारक उत्पाद बेचे जाते हैं जिससे उन्हें वित्तीय और शारीरिक हानि का सामना करना पड़ता है। 


असुरक्षित उत्पाद: कई बार उत्पाद की गुणवत्ता निम्न होती है या उसमें ऐसे हानिकारक तत्व होते हैं जो ग्राहक के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।


मिलावट: खाद्य उत्पादों या अन्य वस्तुओं में मिलावट करके उन्हें बेचना भी एक सामान्य शोषण का तरीका है।


भ्रामक विज्ञापन: विज्ञापन में झूठे या अतिरंजित दावे करना जिससे ग्राहक भ्रमित होकर वस्तु खरीद लेते हैं।

काला बाजार 

संग्रहखोरी: आवश्यक वस्तुओं को छुपाकर उनकी कृत्रिम कमी पैदा करना और फिर ऊंचे दामों पर बेचना। इस प्रकार के शोषण के विरुद्ध ग्राहकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है ताकि वे सुरक्षित और उचित मूल्य पर वस्तुएं और सेवाएं प्राप्त कर सकें।


2. ग्राहकों को जानकारी का अभाव: अधिकांश ग्राहक अपने अधिकारों और कानून द्वारा मिलने वाली छूट के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं रखते हैं। यह जानकारी का अभाव उन्हें असुरक्षित बना देता है और वे अपने अधिकारों का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाते हैं। 


अधिकारों की जानकारी: ग्राहक अपने अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं होते हैं, जैसे कि उन्हें कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हैं और किस प्रकार वे उनका लाभ उठा सकते हैं।

कानूनी प्रक्रिया का अभाव: कानूनी प्रक्रिया के बारे में जानकारी की कमी के कारण ग्राहक अपने शोषण के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने में हिचकिचाते हैं।

गलत जानकारी: कभी-कभी ग्राहकों के पास गलत या अधूरी जानकारी होती है जिससे वे सही निर्णय नहीं ले पाते हैं। ग्राहकों को उनके अधिकारों और कानूनी प्रक्रिया के बारे में जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे अपने हितों की रक्षा कर सकें और शोषण का शिकार न हों।


3. बिन-संगठित ग्राहक: व्यक्तिगत रूप से, ग्राहक अक्सर कमजोर और असहाय महसूस कर सकते हैं। परन्तु, संगठित होकर वे अपनी सामूहिक शक्ति का उपयोग कर सकते हैं और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। 


संगठन की महत्ता: संगठित ग्राहक अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए अधिक प्रभावी तरीके से काम कर सकते हैं। संगठित ग्राहक समूहों की आवाज अधिक शक्तिशाली होती है और वे बड़े पैमाने पर सुधार ला सकते हैं।

ग्राहक सुरक्षा संस्थाएँ: भारत में विभिन्न ग्राहक सुरक्षा संस्थाएँ कार्यरत हैं जो ग्राहकों के हितों की रक्षा करने का प्रयास करती हैं। हालांकि, इन संस्थाओं को और मजबूत बनाने की आवश्यकता है ताकि वे अधिक प्रभावी तरीके से काम कर सकें।

कानूनी सुरक्षा: संगठित ग्राहकों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना भी महत्वपूर्ण है ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें और शोषण के विरुद्ध खड़े हो सकें।

इसलिए  ग्राहक सुरक्षा न केवल ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, बल्कि यह बाजार में नैतिक और पारदर्शी व्यापारिक प्रथाओं को भी बढ़ावा देती है। यह ग्राहकों को सुरक्षा प्रदान करती है और उन्हें शोषण, अनैतिक प्रथाओं और भ्रामक विज्ञापनों से बचाने का कार्य करती है। ग्राहकों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना, उन्हें संगठित करना और कानूनी सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है ताकि वे आत्मविश्वास और सुरक्षित महसूस कर सकें और शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज उठा सकें।


प्रश्न 5. ग्राहक जागृति के कार्य में लोक न्यायालय किस तरह मददरूप होता है?

उत्तर: ग्राहक जागृति के कार्य में लोक न्यायालय का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ ग्राहकों की शिकायतों का त्वरित, कम खर्चीला और प्रभावी समाधान प्रदान किया जाता है। लोक न्यायालय ग्राहकों को न्याय दिलाने में निम्नलिखित तरीकों से मदद करता है:


1. योग्य शिकायतों का निराकरण:


शिकायतों की प्रस्तुति: बहुत सी औद्योगिक इकाइयाँ, जैसे भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) और भारतीय रेल विभाग, अपने ग्राहकों के योग्य शिकायतों के निराकरण के लिए लोक न्यायालय का आयोजन करती हैं। यहाँ ग्राहक अपनी समस्याओं को प्रस्तुत करते हैं और उनकी शिकायतों का समाधान ढूँढा जाता है।

समाधान की प्रभावशीलता: लोक न्यायालय द्वारा शिकायतों का निराकरण शीघ्रता से और असरकारक तरीके से किया जाता है। यह ग्राहकों को उनके मुद्दों का समाधान प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे उनकी संतुष्टि बढ़ती है।


2. कम खर्च पर न्याय:


कम खर्चीला समाधान: लोक न्यायालय द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा कम खर्चीली होती है, जिससे ग्राहक बिना अधिक वित्तीय बोझ के अपनी शिकायतों का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। यह विशेष रूप से उन ग्राहकों के लिए लाभकारी है जो उच्च कानूनी खर्च वहन नहीं कर सकते।

आसान पहुँच: लोक न्यायालय में न्याय प्राप्त करना आसान होता है और ग्राहकों को लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से नहीं गुजरना पड़ता है।


3. ग्राहक जागरूकता:


शिक्षा और जागरूकता: लोक न्यायालय के माध्यम से ग्राहकों को उनके अधिकारों और शिकायतों के निराकरण के तरीके के बारे में जानकारी दी जाती है। इससे ग्राहकों में जागरूकता बढ़ती है और वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत होते हैं।

सकारात्मक अनुभव: ग्राहकों को लोक न्यायालय में एक सकारात्मक अनुभव मिलता है जिससे उनका विश्वास सिस्टम में बढ़ता है और वे भविष्य में भी अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने को प्रेरित होते हैं। लोक न्यायालय ग्राहक जागरूकता और सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ग्राहकों को न्याय प्रदान करने का एक सुलभ और प्रभावी तरीका है जो उनकी शिकायतों का त्वरित और कम खर्च पर समाधान करता है। इसके माध्यम से ग्राहकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाता है और उन्हें एक सकारात्मक अनुभव मिलता है, जिससे वे आत्मविश्वास के साथ अपने अधिकारों के लिए खड़े हो सकते हैं।


प्रश्न 6. सार्वजनिक हित के आवेदन पर संक्षिप्त में समझाइए।

उत्तर: सार्वजनिक हित का आवेदन (Public Interest Litigation - PIL) एक महत्वपूर्ण कानूनी माध्यम है जिसके द्वारा समाज के किसी भी व्यक्ति या समूह द्वारा समाज के हितों की रक्षा की जा सकती है। इसका उद्देश्य समाज के उन वर्गों की रक्षा करना है जो स्वयं न्यायालय तक नहीं पहुंच सकते। इसके तहत, किसी भी महत्वपूर्ण सामाजिक, पर्यावरणीय, या सार्वजनिक मुद्दे पर न्यायालय में आवेदन किया जा सकता है। सार्वजनिक हित के आवेदन के बारे में निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:


1. समाज के व्यापक हितों की रक्षा:


समाज के हित में: PIL का उद्देश्य समाज के उन वर्गों की रक्षा करना है जो स्वयं न्यायालय तक नहीं पहुंच सकते। यह एक ऐसा माध्यम है जिससे समाज के व्यापक हितों की रक्षा की जा सकती है, न कि केवल व्यक्तिगत लाभ की। 

1. सामाजिक मुद्दों का समाधान: PIL के माध्यम से सामाजिक, पर्यावरणीय, और सार्वजनिक मुद्दों का समाधान न्यायालय के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण साधन है जो समाज के हितों की रक्षा करता है।


2. आवेदन की प्रक्रिया:

कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है: PIL का आवेदन कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे उसे व्यक्तिगत रूप से हानि हुई हो या न हो। यह एक विशेषता है जो इसे अन्य कानूनी माध्यमों से अलग बनाती है।

आवेदन की सरलता: PIL का आवेदन एक साधारण कागज पर लिखकर राज्य के उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) या सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में किया जा सकता है। इसके लिए किसी विशेष कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती, जिससे यह आम जनता के लिए सुलभ होता है।


3. न्यायालय की भूमिका:

न्यायालय की जाँच: न्यायालय आवेदन को पढ़कर यदि उसे योग्य पाता है तो केस (मुकदमा) दाखिल करता है और पक्षकारों को उपस्थित करवाकर सुनवाई करता है।

न्याय का निर्णय: न्यायालय आवेदन पर सुनवाई कर अपना निर्णय सुनाता है। यह निर्णय सार्वजनिक हित के अनुसार होता है और समाज के हितों की रक्षा करता है।


सार्वजनिक हित का आवेदन (PIL) एक महत्वपूर्ण कानूनी उपकरण है जो समाज के व्यापक हितों की रक्षा करता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो स्वयं न्यायालय तक नहीं पहुंच सकते। PIL के माध्यम से समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान न्यायालय के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जिससे समाज के हितों की रक्षा होती है और न्याय सुनिश्चित होता है।


4. निम्न प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए । 


प्रश्न 1. धन्धा के दृष्टिकोण से ग्राहक सुरक्षा का महत्त्व समझाइए ।


उत्तर: धंधा के दृष्टिकोण से ग्राहक सुरक्षा करें महत्व निम्नलिखित है 


(I) समाज के साधन-सम्पत्ति का उपयोग: धन्धा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समाज के साधन और सम्पत्ति का उपयोग किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि उत्पाद और सेवाएं समाज के लाभ के लिए उपयोगी हों और समाज की साधन-सम्पत्ति को वृद्धि दें।


(II) सामाजिक दायित्व: धन्धा में सक्रिय व्यक्तियों के प्रति सामाजिक दायित्व होता है। यह उनका दायित्व होता है कि वे अपने उत्पादों और सेवाओं को ग्राहकों के लिए उपयोगी और हितकारी बनाएं। ग्राहक भी धन्धा के एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं जिन्हें सुरक्षित रखना धन्धा का नैतिक दायित्व होता है।


(III) समाज का एक भाग: हर धन्धा समाज का एक महत्वपूर्ण घटक होता है। व्यापारियों के लिए ग्राहक अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे ही धन्धार्थियों के उत्पादों या सेवाओं का उपभोग करते हैं। इसलिए, धन्धार्थियों को ग्राहकों के विश्वास को बढ़ाने और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए नीतियाँ अपनानी चाहिए।


(IV) समाज पर प्रभाव: धन्धा समाज पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव डालता है। उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं के द्वारा विज्ञापन, आदतें, विचारधारा, खानपान, और वेशभूषा पर प्रभाव डाला जा सकता है। इसलिए, समाज के हितों के लिए धन्धे की नीतियाँ योग्य रखना एक नैतिक दायित्व होता है।


(V) ग्राहक का रक्षण धन्धा का हित: आज के युग में ग्राहक के पास जाना और उनकी आवश्यकताओं और इच्छाओं के अनुसार उत्पाद प्रदान करना धन्धे का मौलिक सिद्धांत है। उत्पादकों को इस बात को समझना चाहिए कि ग्राहक धन्धे के स्थान पर आने वाला सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। गांधीजी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत के अनुसार, धन्धा समाज के लिए होना चाहिए।


प्रश्न 2. ग्राहक अधिकारों के विषय में विस्तृत चर्चा कीजिए।

उत्तर: ग्राहकों के अधिकार समाज में महत्वपूर्ण हैं जो उन्हें बाजार में विभिन्न उत्पादों और सेवाओं की खरीदारी करते समय सुरक्षित रखते हैं। ये अधिकार ग्राहकों को बेहतर विकल्प चुनने में मदद करते हैं और उन्हें बाजार में उचित सेवाओं और उत्पादों की उम्मीद करने का अधिकार देते हैं। ये अधिकार भारतीय संविधान और विभिन्न ग्राहक संरक्षण कानूनों द्वारा सुनिश्चित किए जाते हैं।


I. सुरक्षा अधिकार: यह अधिकार ग्राहकों को उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा करने में मदद करता है। ग्राहकों को खराब या हानिकारक उत्पादों से बचने का अधिकार होता है, जैसे कीमत कम वस्तुओं को बिना अधिक वजन के खरीदने से बचना।


II. जानकारी अधिकार:  ग्राहकों को उनकी खरीदी के लिए सही और पूरी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। इससे वे स्वयंसेवक ढंग से उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उत्पादों और सेवाओं का चयन कर सकते हैं।


III. पसंदगी अधिकार: हर ग्राहक को अपनी पसंद के अनुसार उत्पादों और सेवाओं का चयन करने का अधिकार होता है। उन्हें किसी भी दबाव के बिना उत्पादों की चयन की स्वतंत्रता होती है।


IV. प्रस्तुतीकरण अधिकार: ग्राहकों को उनके क्रय के बाद भी अपने मत का व्यक्त करने का अधिकार होता है। यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि ग्राहक अपनी समस्याओं को हल करने के लिए सरकार या उत्पादकों से संपर्क कर सकते हैं।


V. निवारण अधिकार: ग्राहकों को अन्यायपूर्ण व्यवहार या शोषण से बचाने का अधिकार होता है। यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें उचित और विश्वसनीय सेवाएँ और उत्पादों की प्राप्ति होती है।


VI. शिक्षण अधिकार: ग्राहकों को अपनी वस्तुओं और सेवाओं के संदर्भ में योग्य जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होता है। इससे वे समझ सकते हैं कि उनकी खरीदारी का प्रभाव और उनके अधिकारों का सही उपयोग कैसे किया जा सकता है।


इन अधिकारों के माध्यम से, ग्राहकों को समर्थन मिलता है ताकि वे अपने व्यक्तिगत और व्यापारिक आवश्यकताओं को समाप्त कर सकें और सामाजिक और आर्थिक रूप से स्थिर रह सकें।


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