पाठ 3 आयोजन वाणिज्यिक व्यवस्था और संचालन कक्षा 12 समाधान

 स्वाध्याय ( excess ) 

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसन्द करके लिखिए :


प्रश्न 1.

संचालन का सर्वप्रथम कार्य कौन-सा है ?

(A) व्यवस्थातंत्र

(B) आयोजन

(C) मार्गदर्शन

(D) नियंत्रण

उत्तर :

(B) आयोजन


प्रश्न 2.

आयोजन का किसके साथ सम्बन्ध है ?

(A) भूतकाल

(B) वर्तमान

(C) उत्पादन

(D) भविष्य

उत्तर :

(D) भविष्य


प्रश्न 3.

आयोजन की विधि का प्रथम चरण/सोपान है ?

(A) लक्ष्य निर्धारण

(B) आधार स्पष्ट करना

(C) वैकल्पिक योजना बनाना

(D) गौण योजना बनाना

उत्तर :

(A) लक्ष्य निर्धारण


प्रश्न 4.

आयोजन का कार्य अर्थात् क्या ?

(A) दैनिक कार्य

(B) निश्चित कार्य

(C) चयन का कार्य

(D) कठिन कार्य

उत्तर :

(C) चयन का कार्य


प्रश्न 5.

आयोजन में निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचालक जो निर्णय और व्यूहरचना तय करे उसे क्या कहा जाता है ?

(A) कार्यक्रम

(B) नीति

(C) नियम

(D) अन्दाजपत्र

उत्तर :

(B) नीति


प्रश्न 6.

सफल आयोजन के लिए पूर्वशर्त क्या है ?

(A) समय की दीर्घ अवधि

(B) समय की अल्प अवधि

(C) व्यवस्थातंत्र

(D) परिवर्तनशीलता

उत्तर :

(D) परिवर्तनशीलता


प्रश्न 7.

आयोजन की प्रक्रिया का अन्तिम सोपान बताइए ।

(A) योजना का मूल्यांकन

(B) निश्चित योजना स्वीकार करना

(C) योजना की जाँच करना

(D) विकल्पों का विचार करना

उत्तर :

(A) योजना का मूल्यांकन


प्रश्न 8.

इनमें से आयोजन का घटक कौन-सा है ?

(A) सतत प्रक्रिया

(B) नियंत्रण

(C) मार्गदर्शन

(D) नियम

उत्तर :

(D) नियम


प्रश्न 9.

इकाई का जीवन-ध्येय तय करने वाली योजना कौन-सी है ?

(A) स्थायी योजना

(B) व्यूहात्मक योजना

(C) सुनियोजित योजना

(D) एक उपयोगी योजना

उत्तर :

(B) व्यूहात्मक योजना


प्रश्न 10.

‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।’ उपरोक्त परिभाषा इनमें से किसने दी है ?

(A) डॉ. बीली गोऐट्ज

(B) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी

(C) डॉ. उविक डेविड

(D) श्री हेनरी फेयोल

उत्तर :

(A) डॉ. बीली गोऐट्ज


2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए ।


प्रश्न 1. आयोजन कौन-कौन से क्षेत्र में देखने को मिलता है?  

उत्तर: 

आयोजन युद्ध का मैदान, खेलकूद का मैदान, धन्धाकीय इकाइयाँ, राजनैतिक, व्यापार, वाणिज्य, धार्मिक व सामाजिक इत्यादि क्षेत्रों में देखने को मिलता है।


प्रश्न 2. O.R. का विस्तृत रूप दीजिए। 

उत्तर:  

O.R. = Operation Research (कार्यात्मक संशोधन)


प्रश्न 3.  

संचालन का प्रथम और अन्तिम कार्य बताइए।

उत्तर:

संचालन का प्रथम कार्य आयोजन है और अन्तिम कार्य नियंत्रण है।


प्रश्न 4. 

‘विस्मृतीकरो और आगे बढ़ो’ का सिद्धांत कब अपनाया जाता है?

उत्तर:

जब अपने क्रमश: आगे बढ़ते हैं तब ‘विस्मृति करो और आगे बढ़ो’ (Look and Leap) का सिद्धांत अपनाया जाता है।


प्रश्न 5. अन्दाज-पत्र के प्रकार बताइए।  

उत्तर: अन्दाज-पत्र के प्रकार पूँजी खर्च अन्दाज-पत्र, उत्पादन अन्दाज-पत्र, उत्पादन खर्च अन्दाज-पत्र, विक्रय अन्दाज-पत्र और नकद अन्दाज-पत्र आदि होते हैं।


प्रश्न 6. आयोजन में किन कारणों से अनिश्चितताएँ उत्पन्न होती हैं?  

उत्तर:

आयोजन के मूल में धारणाएँ और पूर्वानुमान होता है, जिसका सम्बन्ध भविष्य के साथ होता है। परन्तु भविष्य अनिश्चित है, जिसके कारण ऐसे पूर्वानुमान सम्पूर्ण रूप से सही नहीं होते। इस तरह, आयोजन का सम्बन्ध भविष्य के साथ होने से इसमें अनिश्चितता रहती है।


प्रश्न 7. आयोजन के आधार बताइए।**  

उत्तर: आयोजन के आधार अनुमान अथवा पूर्वधारणाएँ हैं। इकाई को प्रभावित करने वाले आन्तरिक और बाह्य परिबलों को ध्यान में रखकर पूर्वधारणाएँ की जाती हैं।


प्रश्न 8.पद्धति किसे कहते हैं?

उत्तर: पद्धति अर्थात् इकाई के कार्यक्रम को पूर्ण करने की व्यवस्था दर्शाती है। यानि कि निर्धारित किए गए उद्देश्यों को किस तरह पूरा किया जाएगा इसका मार्ग दर्शाती है। संक्षेप में, पद्धति/विधि का अर्थ है किसी प्रवृत्ति को करने का तरीका ।


प्रश्न 9. आयोजन को चैतन्य (सभान) और बौद्धिक प्रक्रिया किसलिए कहा जाता है?

उत्तर:आयोजन को चैतन्य और बौद्धिक प्रक्रिया इसलिए कहा जाता है कि आयोजन में निर्णय चैतन्यपूर्वक तथा गणना के अंदाज के आधार पर लिए जाते हैं। जिससे आयोजन को सभान और बौद्धिक प्रक्रिया कहते हैं।


प्रश्न 10. कार्यक्रम किसे कहते हैं?

उत्तर: धन्धाकीय इकाई में किए जाने वाले कार्यों को जो क्रम दिया जाता है उसे कार्यक्रम कहते हैं।


3. निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए ।


प्रश्न 1. हेतु-निर्धारण किसे कहते हैं?

उत्तर: हेतु-निर्धारण अथवा हेतुओं का चयन योग्य रूप से हुआ हो तो ही आयोजन संचालकों को उपयोगी बना सकता है। हेतु व्यवहारिक होना चाहिए अर्थात् कि वह वास्तविक और बुद्धिगम्य होना चाहिए।  

अथवा  

हेतु निर्धारण अर्थात् हेतु को निश्चित करने की प्रक्रिया।


प्रश्न 2. आयोजन किसे कहते हैं?

उत्तर: धन्धे में जो प्रवृत्तियाँ करनी हो इसके बारे में जानकारी एकत्रित करना, पूर्व विचारणा करना और इन प्रवृत्तियों को किस तरह करना है इसके बारे में बनाई जाने वाली योजना अर्थात् आयोजन।


प्रश्न 3. व्यूहरचना किसलिए जरूरी है?  

उत्तर: व्यूहरचना का उपयोग सेना और खेल-कूद जैसे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किया जाता है। व्यूहरचना स्पर्धियों से गुप्त रहे यह भी जरूरी है। योग्य व्यूहरचना के कारण ही इकाई को अधिकतम सफलता का विश्वास मिलता है।


प्रश्न 4. आयोजन के घटक बताइए।

उत्तर: आयोजन के 7 घटक हैं:

1. उद्देश्य – हेतु (Objective)

2. व्यूहरचना (Strategy)

3. नीति (Policy)

4. पद्धति/विधि (Method/Procedure)

5. नियम (Rules)

6. अन्दाज-पत्र (Budget)

7. कार्यक्रम (Programme)


प्रश्न 5. गौण योजना किसे कहते हैं?  

उत्तर: मूल योजना के अनुरूप अथवा मूल योजना के सहायक बने इसके बारे में प्रकल्पों अथवा विकल्पों पर विचारणा की जाती है। जिन्हें गौण योजना के रूप में पहचाना जाता है। जैसे कार बनाने वाली कम्पनी टायर बनाना या बाहर से खरीदना इसके बारे में जो निर्णय करें तो उन्हें गौण योजना कहा जा सकता है। इस गौण योजना को तैयार करने के बाद उनकी सफलता के बारे में जाँच की जाती है जिससे भविष्य में मूल या मुख्य योजना को कोई समस्या उत्पन्न न हो।


प्रश्न 6. सर्वोच्च अन्दाज-पत्र किसे कहते हैं?उत्तर: धन्धाकीय इकाई का अन्दाज-पत्र बनाना हो तो सर्वप्रथम प्रत्येक विभाग का अन्दाज-पत्र बनाना पड़ता है। इन अन्दाज-पत्रों पर चर्चा-विचारणा करने के बाद इकाई का मुख्य अन्दाज-पत्र बनाया जाता है जिसे सर्वोच्च अन्दाज-पत्र या मुख्य अन्दाज-पत्र अथवा सर्वग्राही अन्दाज-पत्र कहते हैं। 


प्रश्न 7. आयोजन परिवर्तनशील होना चाहिए। किसलिए? उत्तर: आयोजन में अलग-अलग प्रकार की गणनाएँ और धारणाएँ होती हैं, लेकिन धन्धाकीय इकाइयों को प्रभावित करने वाले बाह्य तत्त्वों के कारण समय, संयोग और परिस्थिति अनुसार उसमें आवश्यक परिवर्तन करने पड़ते हैं। अत: आयोजन परिवर्तनशील होना चाहिए क्योंकि परिवर्तनशीलता आयोजन की पूर्वशर्त है।


प्रश्न 8. संचालन के कार्यों में आयोजन प्रथम स्थान रखता है। किसलिए?

उत्तर: संचालन के कार्यों में आयोजन प्रथम स्थान रखता है क्योंकि संचालन का आरम्भ ही आयोजन से होता है। इनके आधार पर ही संचालन के अन्य कार्य जैसे कि व्यवस्थातंत्र, कर्मचारी व्यवस्था, मार्गदर्शन और नियंत्रण जैसे कार्यों को अमल में लाया जाता है।


प्रश्न 9. नीति किसे कहते हैं?

उत्तर: नीति (Policy) अर्थात् आयोजन में निर्धारित किए गए उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचालक जो निर्णय और व्यूहरचना तय करें। नीति इकाई की छाप पैदा करती है। यह इकाई की कुशलता और कार्य पद्धति का परिचय देती है। जैसे "शान पर मान" का विक्रय करने की नीति।


प्रश्न 10. निम्नलिखित विधानों को समझाइए:


(1) आयोजन संचालकीय कार्यों का मुख्य कार्य है।


यह कथन सत्य है। संचालन के प्रमुख कार्यों में से आयोजन सबसे महत्वपूर्ण और प्राथमिक कार्य है। जब उद्देश्य निर्धारित हो जाता है, तो इसे पूरा करने के लिए योजना बनाई जाती है। योजना को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए एक उपयुक्त व्यवस्थात्मक ढांचा तैयार किया जाता है। इस ढांचे के तहत कर्मचारियों की नियुक्ति और प्रबंधन किया जाता है। कर्मचारियों के बीच सहयोग और स्पष्टता बनाए रखने के लिए सूचना का आदान-प्रदान और कार्यों की निगरानी की जाती है। इस प्रकार, आयोजन संचालन के कार्यों का मूल आधार है।


(2) अंदाजपत्र अंकों का माया जाल है।


यह कथन भी सत्य है। अंदाजपत्र में विभिन्न विभागों की भविष्य की गतिविधियों के लिए होने वाले खर्च का अनुमान अंकों में प्रस्तुत किया जाता है। इन विभागीय अंदाजपत्रों के आधार पर इकाई के कुल खर्च और आय का अनुमान लगाया जाता है। भविष्य में आंतरिक और बाह्य कारकों में बदलाव को ध्यान में रखते हुए, कुल खर्च का आकलन किया जाता है। इसलिए, अंदाजपत्र भविष्य के लिए एक वित्तीय अनुमान है, जिसमें विभिन्न संभावित खर्चों और आय का आकलन किया जाता है।


(3) आयोजन धंधे की सफलता की चाबी है।


यह कथन सत्य है। इकाई के निर्धारित उद्देश्यों को समय पर पूरा करने के लिए अतीत के अनुभवों और भविष्य की संभावनाओं के आधार पर बनाई गई योजनाएँ ही आयोजन कहलाती हैं। आयोजन के दौरान विभिन्न विकल्पों का विचार किया जाता है और उपयुक्त विकल्पों के आधार पर योजनाएँ तैयार की जाती हैं। इन योजनाओं के अनुसार इकाई की सभी गतिविधियाँ संचालित होती हैं, जिससे प्रत्येक विभाग की गतिविधियाँ समन्वित रहती हैं। इससे कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच सहयोग और स्पष्टता बनी रहती है, और इकाई के निर्धारित उद्देश्य सफल होते हैं।


(4) आयोजन परिवर्तनों को अंकुश में रखता है।


यह कथन सत्य है। इकाई में आंतरिक और बाह्य परिवर्तनों का प्रभाव रहता है, जैसे मूल्य वृद्धि, मांग में कमी, तालाबंदी, प्रतियोगिता, कर्मचारियों की हड़ताल आदि। आयोजन के दौरान इन संभावित परिवर्तनों का पूर्वानुमान किया जाता है और उनके निवारण के लिए योजनाएँ बनाई जाती हैं। इस प्रकार, आयोजन से भविष्य के परिवर्तनों का सामना करने के लिए वर्तमान में ही उपयुक्त विकल्प और व्यवस्था तैयार की जाती है, जिससे यह परिवर्तनों को नियंत्रित रखने में सहायक होता है।


(5) आयोजन सतत प्रक्रिया है 


यह कथन सत्य है। जब इकाई की स्थापना होती है, तो उद्देश्य निर्धारित किया जाता है। इन उद्देश्यों को समयानुसार पूरा करने के लिए योजना बनाई जाती है। एक बार उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद, पुनः आंतरिक और बाह्य कारकों को ध्यान में रखते हुए नए उद्देश्य निर्धारित किए जाते हैं और उनकी प्राप्ति के लिए पुनः योजनाएँ बनाई जाती हैं। इस प्रकार, आयोजन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।


(6) आयोजन से कर्मचारियों में सहकार की भावना बढ़ती है।


यह कथन सत्य है। किसी भी इकाई की सफलता का मुख्य आधार उसके कर्मचारी होते हैं। उच्च अधिकारियों द्वारा उचित और कुशल कर्मचारी व्यवस्था बनाई जाती है, लेकिन कर्मचारियों को उनके कार्यों के बारे में स्पष्ट जानकारी न होने पर असंतोष की भावना बढ़ सकती है। इसलिए, आयोजन के दौरान कार्य की योजनाएँ, पद्धतियाँ, और समय-सीमाएँ स्पष्ट रूप से निर्धारित की जाती हैं। इससे कर्मचारियों को उनके कार्य के प्रति स्पष्टता होती है और उनमें सहयोग और समर्पण की भावना उत्पन्न होती है। आयोजन के आधार पर ही कर्मचारी व्यवस्था सरल और प्रभावी बनती है।


4. निम्न प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर लिखिए :


प्रश्न 1. 'आयोजन से संचालकीय कार्यों में सरलता रहती है।' समझाइए।


उत्तर: आयोजन किसी भी धंधाकीय इकाई का एक आधारभूत कार्य है, जिससे संचालन के कार्यों में सहजता और स्पष्टता आती है। आयोजन के माध्यम से यह निश्चित किया जाता है कि क्या कार्य करना है, कैसे करना है, और कब करना है। इससे व्यवस्थात्मक ढांचे, मार्गदर्शन, और नियंत्रण जैसे कार्यक्रमों की योजना बनाई जाती है। इसके तहत प्रत्येक गतिविधि के लिए स्पष्ट मार्गदर्शन और दिशानिर्देश तैयार किए जाते हैं। आयोजन से प्राप्त स्पष्टता और पूर्वानुमान के आधार पर प्रबंधकीय कार्यों का निष्पादन सरल हो जाता है, जिससे समग्र संचालन में दक्षता बढ़ती है। इस तरह, आयोजन से प्रबंधकीय कार्यों में सुगमता और प्रभावशीलता बनी रहती है।


प्रश्न 2. आयोजन के कोई भी चार घटक समझाइए।


उत्तर:आयोजन के प्रमुख घटकों में निम्नलिखित शामिल हैं:


(1) उद्देश्य (Objective):

उद्देश्य ही आयोजन का मूल आधार होता है। इसके बिना कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती। उद्देश्य स्पष्ट और निश्चित होना चाहिए ताकि इसे प्राप्त करने के लिए सही दिशा में प्रयास किए जा सकें। उदाहरण के लिए, किसी धंधे का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना हो सकता है, जबकि सहायक उद्देश्य ग्राहकों को उत्तम सेवा प्रदान करना हो सकता है। स्पष्ट उद्देश्य के अभाव में, आयोजन की दिशा और प्रभावशीलता प्रभावित होती है।


(2) नीति (Policy):

नीति का निर्धारण आयोजन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होता है। नीति के माध्यम से यह तय किया जाता है कि कौन-सा कार्य किस प्रकार करना है। यह कर्मचारियों को कार्य करने में मार्गदर्शन प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, शाखा नीति, जिसमें कर्मचारियों को वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन देने की नीति शामिल हो सकती है। नीति एक प्रकार की योजना होती है जो कार्यों के लिए दिशा-निर्देश और मार्गदर्शन प्रदान करती है।


(3) पद्धतियाँ (Procedures):

पद्धतियाँ कार्यों को निष्पादित करने का एक क्रम निर्धारित करती हैं। जबकि नीतियाँ निर्णय लेने में मार्गदर्शन देती हैं, पद्धतियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि इन निर्णयों को किस प्रकार और किस क्रम में लागू किया जाए। उदाहरण के लिए, ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता का माल बेचना एक नीति हो सकती है, जबकि ऑर्डर के अनुसार माल कैसे भेजना पद्धति होगी। पद्धतियों के समावेश से विभागीय कार्य एकरूपता और समरूपता के साथ होते हैं।


(4) नियम (Rule):

नियमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि योजनाओं का पालन व्यवस्थित रूप से हो। यह नीतियों और पद्धतियों के अनुपालन को सरल और प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। उदाहरण के लिए, एक नियम हो सकता है कि कर्मचारी कार्य स्थल पर धूम्रपान नहीं करें। नियमों के माध्यम से कार्यों की अनुशासनता और व्यवस्थितता सुनिश्चित होती है।


(5) कार्यक्रम (Programmes):

कार्यक्रम आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह आयोजन के अमल के लिए विस्तृत योजनाएँ होती हैं, जिनमें नीतियाँ, पद्धतियाँ, और अंदाजपत्र शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, किसी वित्तीय वर्ष में 30% लाभ वृद्धि की योजना के लिए विस्तृत कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है।


(6) अंदाजपत्र (Budget):

अंदाजपत्र एक आयोजन और नियंत्रण का साधन होता है, जिसमें भविष्य के लक्ष्यों का अंकों में अनुमान लगाया जाता है। इसमें अनुमानित खर्च और आय का विवरण होता है। आयोजन का मुख्य साधन अंदाजपत्र है, जो समय-सीमा के भीतर लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक संसाधनों और खर्चों का आकलन करता है।


(7) व्यूहरचना (Strategy):

व्यूहरचना का उपयोग स्पर्धा का सामना करने और अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक साधनों और योजनाओं की व्यवस्था में होता है। यह आयोजन का मूल तत्व होता है, जिसमें स्पर्धात्मक परिस्थितियों में इकाई की गतिविधियों में आवश्यक परिवर्तनों की योजना बनाई जाती है। उदाहरण के लिए, यदि प्रतिस्पर्धी कीमतें घटा रहे हैं, तो विज्ञापन द्वारा उच्च गुणवत्ता की जानकारी ग्राहकों तक पहुंचाना एक व्यूहरचना हो सकती है।


आयोजन के ये घटक इकाई की सफलता और संचालन की प्रभावशीलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।


प्रश्न 3. आयोजन की चार सीमाएँ बताइए।


उत्तर: आयोजन की कुछ सीमाएँ होती हैं जो उसकी प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकती हैं:


1. भविष्य की अनिश्चितता: आयोजन के बावजूद भविष्य की अनिश्चितताओं के कारण सफलता सुनिश्चित नहीं होती। भविष्य के आर्थिक, राजनीतिक, और सामाजिक परिवर्तनों का सटीक अनुमान लगाना कठिन होता है, जिससे योजनाएँ अप्रभावी हो सकती हैं।


2. खर्चीली प्रक्रिया: आयोजन एक महंगी प्रक्रिया होती है। इसे तैयार करने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, जिनकी फीस काफी होती है। इसके अतिरिक्त, आयोजन में समय, ऊर्जा, और संसाधनों का भी महत्वपूर्ण निवेश होता है।


3. लंबी प्रक्रिया: आयोजन में समय लगता है। इसकी विस्तृत योजना और अनुमानों की तैयारी में काफी समय व्यतीत होता है, जिससे तात्कालिक निर्णय और कार्यान्वयन में देरी हो सकती है।


4. बाह्य परिबलों की अनिश्चितताएँ: बाहरी परिबलों, जैसे बाजार की स्थिति, सरकारी नीतियाँ, और प्राकृतिक आपदाएँ, हमेशा अप्रत्याशित होती हैं। ये बाहरी कारक योजनाओं को बदल सकते हैं और आयोजन को अप्रासंगिक बना सकते हैं।


प्रश्न 4. आयोजन के महत्त्व के मुद्दे बताइए।


उत्तर:

आयोजन का महत्व कई मुद्दों में निहित है, जो इसे धन्धाकीय इकाइयों के लिए आवश्यक बनाते हैं:


1. प्रवृत्तियों का व्यवस्थित होना: आयोजन से धन्धाकीय इकाइयों की सभी गतिविधियाँ व्यवस्थित होती हैं, जिससे कार्यों का सुव्यवस्थित और समन्वित निष्पादन होता है।


2. साधनों का अपव्यय रोकना: आयोजन के माध्यम से संसाधनों का सही उपयोग होता है, जिससे अपव्यय को रोका जा सकता है।


3. अनिश्चितता में कमी: आयोजन से भविष्य की अनिश्चितताएँ कम होती हैं, क्योंकि संभावित समस्याओं और उनके समाधान की योजना पहले से तैयार की जाती है।


4. सावधानी में वृद्धि: आयोजन से सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श और योजना बनाई जाती है, जिससे प्रबंधकीय निर्णय अधिक सटीक होते हैं।


5. ध्येय प्राप्ति में सहायता: आयोजन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपयोगी होता है, क्योंकि यह स्पष्ट दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करता है।


6. संचालकीय कार्यों में सरलता: आयोजन से प्रबंधकीय कार्यों में सुगमता आती है, क्योंकि इससे प्रक्रियाएँ और कार्य प्रवाह सुव्यवस्थित होते हैं।


7. कर्मचारियों का सहयोग: आयोजन के माध्यम से कर्मचारियों में समन्वय और सहयोग की भावना बढ़ती है, जिससे कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।


8. प्रवृत्तियों का संकलन: आयोजन विभिन्न गतिविधियों को समन्वित और एकीकृत करता है, जिससे इकाई में एकरूपता बनी रहती है।


9. प्रभावशाली नियंत्रण: आयोजन के माध्यम से प्रभावशाली नियंत्रण और निगरानी संभव होती है, जिससे प्रबंधन को योजना के अनुसार कार्यान्वयन की स्थिति का पता चलता है।


प्रश्न 5. कार्यकारी और आकस्मिक योजना समझाइए।


उत्तर: 

कार्यकारी योजना (Operational Plan):


धन्धाकीय इकाई के विभागों, कार्यसमूहों, और व्यक्तियों के बीच कार्य संबंधी परिणाम प्राप्त करने के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं को कार्यकारी योजनाएँ कहते हैं। ये योजनाएँ अक्सर अल्पकालिक होती हैं, जैसे एक या दो वर्षों के लिए। उदाहरण के लिए, वार्षिक उत्पादन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए मासिक या त्रैमासिक उत्पादन की योजना बनाई जा सकती है। विभागीय अधिकारियों द्वारा तैयार की गई इन योजनाओं का उद्देश्य दैनिक कार्यों का समुचित निष्पादन सुनिश्चित करना होता है। विभाग के कर्मचारियों के साथ विचार-विमर्श करके तैयार की गई कार्यकारी योजनाएँ अधिक प्रभावी और आसानी से लागू की जा सकती हैं।


आकस्मिक योजना (Contingency Plan):


धन्धाकीय इकाइयों को बदलती परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए आकस्मिक योजनाएँ बनानी पड़ती हैं। ये योजनाएँ आवश्यक होती हैं जब पूर्व निर्धारित योजनाओं में अप्रत्याशित घटनाओं या बाहरी कारकों, जैसे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, या प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण बदलाव की जरूरत होती है। आकस्मिक योजनाएँ अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार की जाती हैं और उन्हें समय-समय पर संशोधित या अद्यतन किया जा सकता है।


प्रश्न 6. एकल उपयोगी योजना (Single Use Plan) के बारे में समझाइए।


उत्तर:


एकल उपयोगी योजना उन विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए तैयार की जाती है, जिनका पुनरावर्तन नहीं होता। ऐसी योजनाएँ केवल एक बार प्रयोग की जाती हैं और विशिष्ट परियोजनाओं या गतिविधियों के लिए बनाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, जहाज निर्माण, भवन निर्माण, पैकेजिंग, या प्रिन्टिंग आदि के लिए बनाई गई योजनाएँ एकल उपयोगी योजनाओं के अंतर्गत आती हैं। इन योजनाओं को विशिष्ट परियोजनाओं की आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया जाता है और उनके पूरा होने के बाद इन्हें फिर से उपयोग में नहीं लाया जाता।


प्रश्न 7. निम्नलिखित विधान समझाइए:


1. आयोजन चैतन्य और बौद्धिक प्रक्रिया है।


उत्तर: आयोजन एक जागरूक और बौद्धिक प्रक्रिया होती है, जिसका उद्देश्य धन्धाकीय इकाई के लक्ष्यों को प्राप्त करना होता है। आयोजन करते समय, पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न कारकों, जैसे ग्राहक, कर्मचारी, मुद्रा, आदि पर विचार किया जाता है। यह प्रक्रिया विचारशील और पूर्वानुमानित होती है, जिसमें विभिन्न संभावित परिणामों और उनके प्रभावों का आकलन किया जाता है।


2. आयोजन अप्रस्तुत/अप्रचलित है। 


उत्तर: आयोजन में हमेशा अनिश्चितता का तत्व शामिल होता है। बाहरी परिस्थितियों, समय, और घटनाओं में बदलाव के कारण पहले से तैयार की गई योजनाएँ अप्रचलित या अप्रसंगिक हो सकती हैं। इससे योजना की प्रभावशीलता और सफलता प्रभावित हो सकती है। इसीलिए आयोजन को समय-समय पर अद्यतन और पुनरीक्षित करना आवश्यक होता है।


3. आयोजन का भविष्य के साथ सम्बन्ध है।

उत्तर: आयोजन का भविष्य के साथ गहरा सम्बन्ध होता है। आयोजन करते समय भविष्य की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न पूर्वानुमान और धारणाएँ बनाई जाती हैं। यह प्रक्रिया भविष्य के संभावित परिदृश्यों का आकलन और उनके अनुसार आवश्यक व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने में सहायक होती है। इस प्रकार, आयोजन भविष्य के साथ संबंधित होता है और इसे सफल बनाने के लिए वर्तमान में आवश्यक कदम उठाए जाते हैं।


5. निम्न प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :


प्रश्न 1. आयोजन (Planning) का अर्थ एवं इसके लक्षण समझाइए। 


उत्तर: आयोजन का अर्थ:


आयोजन का अर्थ है भविष्य में क्या सिद्ध करना है और किस तरह करना है, इसका विचार करना। इसके लिए विभिन्न विकल्पों की सूची में से श्रेष्ठ विकल्प को अपनाने के लिए योजना तैयार की जाती है। आयोजन का उद्देश्य धन्धाकीय इकाई के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक सटीक मार्गदर्शन प्रदान करना है।


लक्षण/विशेषताएँ (Characteristics):


आयोजन के निम्नलिखित लक्षण हैं:


1. आयोजन सर्वव्यापी है: प्रत्येक प्रकार की गतिविधि में आयोजन अनिवार्य होता है। चाहे वह राजकीय, धार्मिक, शैक्षणिक, या सामाजिक प्रवृत्ति हो, प्रत्येक इकाई के उच्च, मध्य, एवं निम्न स्तर पर आयोजन करना पड़ता है। इकाई का आकार छोटा हो या बड़ा, आयोजन आवश्यक होता है।


2. आयोजन संचालन का सर्वप्रथम कार्य है: संचालन प्रक्रिया का प्रारंभ आयोजन से होता है। इसके पश्चात ही अन्य कार्य होते हैं। जब तक योजनाएँ नहीं बनती, तब तक व्यवस्थातंत्र की रचना नहीं होती। आयोजन के साथ संचालन के सभी कार्य जुड़े होते हैं।


3. आयोजन चैतन्य एवं बौद्धिक प्रक्रिया है: आयोजन एक जागरूक और बौद्धिक प्रक्रिया होती है, जिसमें धन्धाकीय इकाई के उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए विचार किया जाता है। आयोजन करते समय विभिन्न कारकों, जैसे ग्राहक, कर्मचारी, मुद्रा आदि, पर होने वाली असरों को ध्यान में रखा जाता है।


4. आयोजन सतत प्रक्रिया है: इकाई की स्थापना के समय आयोजन किया जाता है और इसका अंत नहीं होता। उद्देश्य निर्धारित करने के बाद इसे पूर्ण करने के लिए आयोजन तैयार करना, उद्देश्य पूर्ण होने के बाद पुनः उद्देश्य निर्धारित करना और पुनः आयोजन तैयार करना आवश्यक होता है।


5. आयोजन परिवर्तनशील है: आयोजन तैयार करते समय भविष्य के आंतरिक एवं बाहरी परिबलों में परिवर्तन होते रहते हैं। जैसे विक्री बढ़ने पर उत्पादन बढ़ेगा, और उत्पादन बढ़ने पर कच्चामाल अधिक खरीदना होगा। ऐसे परिवर्तनों के कारण आयोजन में भी परिवर्तन करना पड़ता है।


6. आयोजन में निश्चयात्मकता होती है: आयोजन में निश्चितता होनी चाहिए। आयोजन करते समय बुद्धिपूर्वक एवं भविष्य के निश्चित अनुमानों पर विचार किया जाता है। यह मात्र स्वप्न एवं इच्छाओं की सूची नहीं होती, बल्कि एकत्र की गई सूचनाओं का निर्णय बुद्धिपूर्वक एवं निश्चितता के अनुसार किया जाता है।


7. आयोजन के लिए पूर्वानुमान अनिवार्य है: भविष्य में क्या होगा और उसकी संभावना क्या है, इस पर विचार करना आवश्यक होता है। हेनरी फेयोल ने भविष्य के पूर्वानुमान पर विचार करने के पश्चात ही भविष्य के विकास की रूपरेखा तैयार की है।


8. आयोजन का भविष्य के साथ संबंध है: आयोजन में भविष्य की प्रवृत्तियों पर वर्तमान में विचार किया जाता है। भविष्य में क्या होगा और इसके क्या परिणाम होंगे, इसकी धन्धे पर क्या असर होगी, इसका आयोजन में विचार किया जाता है।


9. आयोजन विकल्पों की सूची है: किसी भी क्षेत्र में आयोजन के लिए विविध प्रकार की योजनाएँ होती हैं। इन योजनाओं के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार किया जाता है और योग्य विकल्प को अपनाया जाता है। यह संचालकों की निर्णय शक्ति की कसौटी होती है।


10. आयोजन ध्येयलक्षी प्रवृत्ति है: आयोजन के द्वारा इकाई का उद्देश्य निश्चित होता है। विविध गतिविधियों के लिए योजनाएँ बनाई जाती हैं और उद्देश्य की सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों की पहचान की जाती है।


11. आयोजन में निर्णय प्रक्रिया आवश्यक है: आयोजन पर उद्देश्य की सफलता निर्भर करती है। भविष्य के अनेकों अनुमानों पर विचार करने से विकल्पों की जानकारी होती है और उनमें से योग्य विकल्प पसंद करने का निर्णय लिया जाता है। निर्णय का कार्य कठिन होता है क्योंकि इसे भविष्य में लागू करना होता है।


उपसंहार:


उपरोक्त लक्षणों से यह ज्ञात होता है कि आयोजन भविष्य के साथ गहराई से संबंधित होता है। यह संचालन का महत्वपूर्ण कार्य है और आधुनिक समय में इस पर विशेष ध्यान दिया जाता है।


प्रश्न 2: आयोजन की व्याख्या और इसकी विधि/प्रक्रिया समझाइए।


उत्तर: आयोजन की व्याख्या:


डॉ. बीली गोऐट्ज: "आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य।"


डॉ. ज्योर्ज टेरी: "कार्य की योजना अर्थात् परिणामों की पूर्व विचारणा, कार्य का अनुसरण करने की नीति, प्रक्रिया और उपयोग में ली जाने वाली पद्धति निश्चित करना।"


डॉ. उर्विक डेविड: "आयोजन मुख्य रूप से ऐसी बौद्धिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यवस्थित कार्य करने के लिए पूर्व विचारणा की जाती है, और केवल अनुमानों के स्थान पर सचोट वास्तविकताओं पर कदम उठाए जाते हैं।"


एम. एस. हर्ले: "आयोजन अर्थात् क्या करना है? यह पहले से ही निश्चित करना, इसमें उद्देश्य, नीति, कार्यवाहियाँ और कार्यक्रम के विविध विकल्पों की पसंदगी सम्मलित है।"


हेनरी फेयोल: "कार्य का आयोजन करना अर्थात् परिणामों की पूर्ण विचारणा करना और कार्य करने की योग्य पद्धतियाँ निर्धारित करना।"


मेरी कुशिंग नाइल्स: "आयोजन अर्थात् निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए योग्य कार्यक्रम की पसंदगी करना। इसके आधार पर संचालकीय प्रक्रिया में उत्साह एवं तीव्रता आती है।"


आयोजन प्रक्रिया के विविध पहलू:


आयोजन भविष्य के लिए वर्तमान में तैयार किया गया विशिष्ट स्वरूप है। यह बौद्धिक प्रक्रिया है और इसकी निष्फलता इकाई के लिए हानिकारक हो सकती है। आयोजन की प्रक्रिया निम्नलिखित पहलुओं पर आधारित होती है:


1. उद्देश्य निश्चित करना:- आयोजन प्रक्रिया का प्रथम पहलू उद्देश्य को निश्चित करना है। सर्वप्रथम यह स्पष्ट होना चाहिए कि किन उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए आयोजन किया जा रहा है। उद्देश्य स्पष्ट, व्यवस्थित, और सुसंकलित होना चाहिए ताकि विभिन्न विभागों के उद्देश्य निर्धारित किए जा सकें।


2. आयोजन का आधार स्पष्ट करना:- आयोजन की रचना भविष्य के अनुमानों और भूतकाल के अनुभवों पर आधारित होती है। आयोजन तैयार करते समय भविष्य की परिस्थिति का अनुमान, बाजार की स्थिति, विक्रय का प्रमाण, वस्तु की कीमत आदि को ध्यान में रखना चाहिए।


3. सूचनाओं का एकत्रीकरण और विश्लेषण:- आयोजन का आधार निश्चित होने के बाद संबंधित सूचनाओं का एकत्रीकरण किया जाता है। एकत्रित सूचनाओं का वर्गीकरण और विश्लेषण करना आवश्यक है ताकि भविष्य के अनुमानों पर स्पष्ट विचार किया जा सके।


4. वैकल्पिक योग्यता तैयार करना:- आयोजन के लिए तैयार की गई योजनाओं का आधार सूचनाओं के वर्गीकरण और विश्लेषण के साथ-साथ वैकल्पिक योग्यता पर भी होता है। उद्देश्य की सफलता के लिए कई वैकल्पिक मार्ग अपनाए जाते हैं।


5. विकल्पों पर विचार करना:- आयोजन का मुख्य कार्य अनेकों विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद करना है। इसके लिए बौद्धिक प्रक्रिया और संशोधन लेख एवं सेमिनार के माध्यम से विकल्पों पर विचार किया जाता है।


6. योजना की पसंदगी: आयोजन अनिश्चितता को दूर करता है और विकल्पों की पसंदगी के लिए गणितिक और आंकड़ाशास्त्र के उपयोग द्वारा संस्था कार्यात्मक संशोधन का कार्य करती है। योग्य विकल्प की पसंदगी विकल्पों के अभ्यास में की जाती है।


7. गौण (सहायक) योजना का गठन और जाँच: योजना की पसंदगी के बाद इस योजना को सफल बनाने के लिए सहायक योजनाएँ बनाई जाती हैं। इकाई के विभिन्न विभागों या खातों के लिए योजना का चयन किया जाता है।


8. गौण योजना का मूल्यांकन करना: आयोजन सतत सर्वव्यापी एवं बौद्धिक प्रक्रिया होनी चाहिए। आयोजन तैयार करते समय विभिन्न योजनाओं का विचार और चिंतन किया जाता है। इसके लिए कंपनियाँ सलाहकारों की सहायता लेती हैं जिससे सही निर्णय लिया जा सके और नुकसान घटे।


सारांश:


आयोजन एक प्रक्रिया है जिसे कई पहलुओं से विस्तारित होना पड़ता है। यह बौद्धिक व्यायाम है जिसमें अनेकों विकल्पों पर विचारणा करने के बाद ही योग्य विकल्प पसंद करके निश्चित योजनाएँ तैयार की जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप आयोजन के कारण लाभकारकता और उत्पादन में वृद्धि होती है।




प्रश्न 3. आयोजन के घटक (Elements of Planning) समझाइए । 


उत्तर :


1. हेतु (Objective) :

हेतु आयोजन का मुख्य घटक है जो एक ध्येय को तय करता है और उसे सफल बनाने के लिए ध्यान देता है। यह ध्येय ऐसा होना चाहिए जो व्यापक होकर भी वास्तविक और प्रायोजनिक हो, ताकि संगठन के सभी परिपरिणाम इसे प्राप्त कर सकें। एक अच्छा हेतु उस समय का निर्धारण करता है जब इकाई विभिन्न प्राधिकृतियों के प्रति प्रभावी रूप से प्रतिक्रिया करती है।


2. व्यूहरचना (Strategy) :

व्यूहरचना उन युक्तियों का उपयोग करती है जो आयोजन में निर्धारित किए गए उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक होती हैं। यह उन प्रतिस्पर्धी परिस्थितियों के सामने एक इकाई को स्थापित करती है जो बाजार में अपनी जगह बना सके और अन्य प्रतिबंधित परिस्थितियों का सम्मुक्त कर सके। एक प्रभावी व्यूहरचना संगठन को अपने विचारों के साथ बाजार में स्थिर बनाती है।


3. नीति (Policy) :

नीति एक आयोजन का निर्माण करती है और उसे पूरा करने के लिए निर्णय और व्यूहरचना तय करती है। इसके माध्यम से संगठन की क्षमता और कार्य पद्धति का परिचय प्रदान किया जाता है, जैसे कि एक विशिष्ट विपणन नीति। नीति को अनुशासन और वास्तविकता से अपनाया जाना चाहिए, जिससे कि इसका अनुपालन आसान हो और इसे प्राक्तिक बनाया जा सके।


4. पद्धति/विधि (Method/Procedure) :

पद्धति यह दिखाती है कि आयोजन के कार्यक्रम को पूरा करने के लिए कैसे व्यवस्था की गई है। जबकि व्यूहरचना संगठन को प्रतिस्पर्धा के सामने स्थायी बनाए रखने की योजना बनाती है, नीति उद्देश्यों को कैसे पूरा किया जाए इसकी जानकारी प्रदान करती है, विधि उन निर्धारित किए गए उद्देश्यों को कैसे पूरा किया जाएगा यह दर्शाती है। उदाहरण के लिए, एक संगठन वार्षिक बिक्री लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उत्पादकता और विपणन के नियम द्वारा निर्दिष्ट मार्गदर्शन प्रदान करता है।


5. नियम (Rules) :

नियम विधि को निर्धारित करते हैं जो आयोजन के कार्यक्रम को पूरा करने में आवश्यक होते हैं। ये नियम स्पष्टता और अनुशासन को स्थापित करते हैं और ध्येय प्राप्ति और निरीक्षण को सरल बनाते हैं। उदाहरण के लिए, कर्मचारियों के बीच मोबाइल फोन का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाना, या इकाई में धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाना आदि।


6. अन्दाज-पत्र (Budget) :

अन्दाज-पत्र एक संगठन में निर्धारित किए गए उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक नियंत्रण माध्यम के रूप में प्रयोग होता है। यह विभिन्न प्रकार के होते हैं जैसे कि पूँजी व्यय अन्दाज-पत्र, उत्पादन व्यय अन्दाज । 


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