12 Economics Chapter 3 मुद्रा एवं मुद्रास्फीति : solution (समाधान)

 स्वाध्याय ( exercise ) 

प्रश्न 1. स्वाध्याय निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :


1. ‘वस्तुओं और सेवाओं के बदले में जो सर्वस्वीकृत है वह मुद्रा है ।’ मुद्रा की यह परिभाषा किसने दी है।

(A) मार्शल

(B) केइन्स

(C) पिगु

(D) रोबर्टसन

उत्तर :

(D) रोबर्टसन


2. मांग में वृद्धि होने के कारण हुई भाववृद्धि को कैसी मुद्रास्फीति कहते हैं ?

(A) मांग प्रेरित

(B) खर्च प्रेरित

(C) वेतन प्रेरित

(D) लाभप्रेरित

उत्तर :

(A) मांग प्रेरित


3. सतत और सर्वग्राही भाववृद्धि की स्थिति में मुद्रा का मूल्य ………………………

(A) घटता है ।

(B) बढ़ता है ।

(C) स्थिर रहता है ।

(D) बदलता नहीं है ।

उत्तर :

(A) घटता है ।


4. सरकार ने कानून द्वारा बढ़ते हुये भावों को रोका हो, वह भाववृद्धि किस प्रकार की मुद्रास्फीति है ?

(A) दबी हुयी मुद्रास्फीति

(B) खुली मुद्रास्फीति

(C) दौड़ती मुद्रास्फीति

(D) छिपी मुद्रास्फीति

उत्तर :

(A) दबी हुयी मुद्रास्फीति


5. मुद्रास्फीति की सही स्थिति में अर्थतंत्र में साधनों के पूर्ण रोजगार के बाद भाव बढ़ते है, तब सर्जित होती है । यह किस अर्थशास्त्री का विचार है ?

(A) मार्शल

(B) क्राउथर

(C) केईन्स

(D) पिगु

उत्तर :

(C) केईन्स


6. चावल देकर कपड़ा प्राप्त करने की आर्थिक व्यवस्था किस नाम से जानी जाती है ?

(A) मुद्रापद्धति

(B) बैंकिंग व्यवस्था

(C) वस्तु-विनिमय प्रथा

(D) उधार पद्धति

उत्तर :

(C) वस्तु-विनिमय प्रथा


7. निम्न में से मुद्रा के किस विकल्प में विनिमय मूल्य सबसे सुरक्षित रूप में संग्रह हो सकता है ?

(A) अनाज

(B) पशु

(C) पत्थर

(D) सिक्का

उत्तर :

(D) सिक्का


8. आधुनिक आर्थिक संसार में आर्थिक प्रवृत्तियों के केन्द्र में कौन है ?

(A) मुद्रा

(B) ग्राहक

(C) बाज़ार

(D) सरकार

उत्तर :

(A) मुद्रा


9. मुद्रा किसका माध्यम है ?

(A) खर्च का

(B) विनिमय का

(C) आय का

(D) ग्राहक का

उत्तर :

(B) विनिमय का


प्रश्न 2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए :


1. वस्तु विनिमय प्रथा का अर्थ दीजिए ।

उत्तर:जब मुद्रा का प्रचलन नहीं था, तब एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को वस्तु विनिमय प्रथा कहते हैं। यह प्रणाली तब काम आती थी जब लोगों के पास मुद्रा उपलब्ध नहीं होती थी, और वे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वस्तुओं का सीधे आदान-प्रदान करते थे।


2. मार्शल द्वारा दी गयी मुद्रा की परिभाषा दीजिए।

उत्तर:मार्शल के अनुसार, मुद्रा वह माध्यम है जिसे किसी भी समय और स्थान पर, बिना किसी संशय या विशेष जांच के, वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय के लिए स्वीकार किया जा सकता है। यह परिभाषा बताती है कि मुद्रा का उपयोग किसी भी प्रकार के लेन-देन के लिए सहज और विश्वसनीय होना चाहिए।


3. मुद्रास्फीति अर्थात् क्या?

उत्तर:मुद्रास्फीति का सामान्य अर्थ वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि से है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब वस्त्रों और सेवाओं की कीमतें सामान्य स्तर से ऊपर चली जाती हैं, जिससे मुद्रा की क्रय शक्ति घट जाती है।


4. खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति किसे कहते हैं?

उत्तर:जब उत्पादन की लागत में वृद्धि होती है, जैसे कि मजदूरी, कच्चे माल, और अन्य उत्पादन खर्चों में बढ़ोतरी, तब यह मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है। इसे खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं क्योंकि इसमें खर्चों की वृद्धि मुख्य कारण होती है।


5. मांगप्रेरित मुद्रास्फीति किसे कहते हैं?

उत्तर: जब किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की मांग उनकी आपूर्ति से अधिक हो जाती है, तब वस्त्रों और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। इस प्रकार की मुद्रास्फीति को मांगप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं, क्योंकि इसमें बढ़ती हुई मांग मुख्य कारण होती है।


6. लोग मुद्रा की बचत क्यों करते हैं?

उत्तर: लोग अपनी भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मुद्रा की बचत करते हैं। इससे वे अनपेक्षित घटनाओं, आपात स्थितियों, और बड़े खर्चों के लिए तैयार रहते हैं। इसके अलावा, बचत उन्हें आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है।


7. प्राचीन समय में वस्तु विनिमय पद्धति क्यों प्रभावशाली थी?

उत्तर:प्राचीन समय में समाज की संरचना ग्रामीण और कृषि आधारित थी। लोग साधारण और सीमित आवश्यकताओं वाला जीवन जीते थे और उनके बीच आपसी व्यवहार अधिकतर कृषि उत्पादों पर आधारित होता था। इसलिए, वस्तु विनिमय पद्धति उस समय प्रभावशाली और उपयोगी थी।


8. किसके कारण वस्तु विनिमय प्रथा मर्यादावाली बनी?

उत्तर: औद्योगिकरण, शहरीकरण, और श्रमविभाजन तथा विशिष्टीकरण के कारण वस्तु विनिमय प्रथा सीमित हो गई। इन प्रक्रियाओं ने समाज को जटिल और विविध बना दिया, जिससे वस्तु विनिमय प्रथा का उपयोग कठिन हो गया और मुद्रा का प्रचलन शुरू हो गया।


9. वस्तु विनिमय प्रथा में विनिमय को सरल बनाने के लिए किसका उपयोग शुरू हुआ?

उत्तर: वस्तु विनिमय प्रथा में विनिमय को अधिक सरल और सुविधाजनक बनाने के लिए पशुओं का उपयोग शुरू हुआ। पशुओं का विनिमय में उपयोग उनके मूल्य के कारण किया जाता था, जिससे लेन-देन आसान हो जाता था।


10. भारत में विशेष रूप से किस पशु को धन के रूप में देखा गया?

उत्तर:भारत में गाय को विशेष रूप से धन के रूप में देखा गया। प्राचीन समय में गायों का उपयोग न केवल कृषि कार्यों में होता था, बल्कि उन्हें संपत्ति और आर्थिक स्थिति का प्रतीक भी माना जाता था।


11. पशुओं में मूल्यसंग्रह का प्रश्न क्यों कठिन बना?

उत्तर: पशुओं में मूल्यसंग्रह कठिन हो गया क्योंकि वे बीमार हो सकते थे, उनकी मृत्यु हो सकती थी, और वे दीर्घकाल तक जीवित नहीं रहते थे। इस कारण, पशुओं में निवेश या मूल्य संग्रह करना जोखिम भरा था।


12. रोबर्ट्स के द्वारा दी गयी मुद्रा की परिभाषा लिखो।

उत्तर: रोबर्ट्स के अनुसार, मुद्रा वह माध्यम है जो वस्तुओं और सेवाओं के बदले में सर्वस्वीकृत है। यह परिभाषा बताती है कि मुद्रा का उपयोग लेन-देन के लिए सामान्य और स्वीकार्य होना चाहिए, जिससे यह वस्त्रों और सेवाओं की खरीदी और बिक्री में सहायक हो सके।


प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में लिखिए।


1. विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के कार्य की चर्चा कीजिए।

उत्तर: मुद्रा विनिमय का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। व्यक्ति वर्तमान में वस्त्रों और सेवाओं को खरीदने के लिए मुद्रा खर्च करता है। इसके साथ ही, भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यक्ति मुद्रा की बचत भी करता है। इस प्रकार, मुद्रा का उपयोग आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए वस्त्रों और सेवाओं की खरीद के रूप में किया जाता है।


2. मुद्रा के कार्य की चर्चा मूल्य के संग्राहक के रूप में कीजिए।

उत्तर: प्राचीन समय में मूल्य का संग्रह वस्त्रों या सेवाओं के माध्यम से करना कठिन था, क्योंकि पशुओं और अनाजों में मूल्य संग्रह दीर्घकाल तक नहीं टिकता था। मुद्रा ने इस समस्या को हल कर दिया। अब, व्यक्ति वस्त्रों या सेवाओं को बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है, जिससे मूल्य का संग्रह करना आसान हो गया। यह मुद्रा भविष्य में वस्त्रों और सेवाओं की प्राप्ति में भी सहायक होती है।


3. मुद्रास्फीति के लक्षण बताइए।

उत्तर: मुद्रास्फीति के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:

1. वस्त्रों और सेवाओं के भावस्तर में सतत वृद्धि होती है।

2. अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में कीमतें बढ़ती हैं।

3. मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो जाती है।

4. पूर्ण रोजगार की स्थिति के बाद भी भावस्तर में वृद्धि होना मुद्रास्फीति का लक्षण है।


4. वस्तु विनिमय में परस्पर सामंजस्य की क्या समस्या है?

उत्तर: वस्तु विनिमय में परस्पर सामंजस्य की समस्या यह है कि दोनों पक्षों को एक-दूसरे की वस्तुओं की समान आवश्यकता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि किसी को गेहूँ के बदले गाय चाहिए और दूसरे को शिक्षा के बदले अनाज चाहिए, तो यह विनिमय तब ही संभव है जब दोनों की आवश्यकताएँ मेल खाती हों। यदि किसी को अनाज की आवश्यकता नहीं है या किसी को कपड़े की आवश्यकता नहीं है, तो यह सामंजस्य स्थापित करना मुश्किल हो जाता है और विनिमय असंभव हो जाता है।


5. वस्तु या सेवा में मूल्य संग्रह की क्या समस्या है?

उत्तर: वस्तु या सेवा में मूल्य संग्रह की समस्या यह है कि वस्त्रों या सेवाओं को लंबे समय तक सुरक्षित रखना कठिन होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी के पास बड़ी मात्रा में गेहूँ है, तो उसे लंबे समय तक सुरक्षित रखना मुश्किल हो सकता है क्योंकि यह खराब हो सकता है। इसी तरह, अन्य वस्त्रों या सेवाओं का संग्रहण भी समस्याग्रस्त हो सकता है क्योंकि उनके मूल्य में समय के साथ गिरावट आ सकती है। इस प्रकार, मूल्य संग्रह की समस्या उत्पन्न होती है।


6. वस्तु के मूल्य मापदण्ड की समस्या क्या है?

उत्तर: औद्योगिक और आर्थिक जगत में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का मापदण्ड तय करना कठिन है। पहले, वस्त्रों का विनिमय जैसे गेहूँ के बदले चावल सरल था। लेकिन जैसे-जैसे वस्त्रों की विविधता बढ़ी, उनका विनिमय दर याद रखना और तय करना कठिन हो गया। उदाहरण के लिए, एक मन गेहूँ के बदले दो मन चावल, या एक मन गेहूँ के बदले दस मीटर कपड़ा, या पाँच किलो घी। यह सभी विनिमय दर याद रखना और तय करना मुश्किल था। इससे मूल्य मापदण्ड की समस्या उत्पन्न होती है।


7. मुद्रा का मूल्य मापदण्ड के रूप में कार्य बताइए।

उत्तर: वस्तु विनिमय प्रथा में वस्त्रों का विनिमय मूल्य याद रखना कठिन था, जैसे एक मन गेहूँ के बदले कितना चावल या कपड़ा मिलेगा। मुद्रा ने इस कठिनाई को हल कर दिया। मुद्रा के उपयोग से वस्त्रों और सेवाओं का मूल्य निर्धारण सरल हो गया। यह मूल्य मापदण्ड को आसान और सटीक बनाता है, जिससे वस्त्रों और सेवाओं की कीमत तय करना और उनका तुलनात्मक अध्ययन करना सरल हो जाता है।


8. मुद्रा के प्रकार बताइए।

उत्तर: विभिन्न समयों में मुद्रा के रूप में उपयोग की जाने वाली वस्त्रों का विवरण निम्नलिखित है:


1. वस्तु मुद्रा: वस्त्रों जैसे अनाज, धातुएँ आदि का उपयोग।

2. पशु मुद्रा: पशुओं का उपयोग विनिमय और मूल्य संग्रह के रूप में।

3. धातु मुद्रा: सोने, चाँदी आदि के सिक्कों का उपयोग।

4. कागजी मुद्रा: सरकार द्वारा जारी कागजी नोट।

5. प्लास्टिक मुद्रा: क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड।

6. बैंक मुद्रा: बैंकिंग प्रणाली के तहत चेक और ड्राफ्ट।

7. अदृश्य या ई-मनी: डिजिटल ट्रांजैक्शन और ई-बैंकिंग।


9. मुद्रास्फीति किस प्रकार से आर्थिक विकास को अवरोधित करती है?

उत्तर: जब अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार की स्थिति में होती है और इसके बावजूद सभी क्षेत्रों में कीमतों में निरंतर वृद्धि होती है, तो यह मुद्रास्फीति कहलाती है। ऐसी स्थिति में, मुद्रास्फीति आर्थिक विकास को अवरोधित करती है क्योंकि इससे वस्त्रों और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे आर्थिक अस्थिरता और अनिश्चितता उत्पन्न होती है।


प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्देसर लिखिए :


1. मुद्रा का कार्य देकर उसके कार्यों को संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।

उत्तर: मार्शल के अनुसार, मुद्रा वह है जो किसी भी समय और स्थान पर बिना संदेह और जाँच के वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय कर सके। रोबर्ट्स के अनुसार, मुद्रा वह है जो वस्तुओं और सेवाओं के बदले में सर्वस्वीकृत हो। एक उपयुक्त परिभाषा के अनुसार, मुद्रा वह वस्तु है जिसे व्यापक रूप से विनिमय के माध्यम, मूल्य मापदण्ड, ऋण भुगतान और मूल्य संग्रह के रूप में स्वीकृति प्राप्त हो। मुद्रा के चार प्रमुख कार्य हैं:


1. विनिमय का माध्यम: मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य विनिमय का माध्यम के रूप में होता है। इससे आर्थिक व्यवहार सरल हो जाता है और वस्तु विनिमय पद्धति में आने वाली समस्याओं को हल किया जा सकता है।

2. मूल्य का मापदण्ड: मुद्रा मूल्य का मापदण्ड के रूप में कार्य करती है। इससे वस्त्रों और सेवाओं की कीमत तय करना और मूल्य की गणना करना आसान हो जाता है।

3. मूल्य के संग्रह के रूप में: मुद्रा मूल्य संग्रह को सरल बनाती है। नाशवान वस्त्रों को लंबे समय तक सुरक्षित रखना कठिन होता है, लेकिन मुद्रा को संग्रहित और स्थानांतरित करना आसान होता है।

4. दीर्घकालीन भुगतान का साधन: मुद्रा दीर्घकालीन लेन-देन के लिए उपयोगी है। इससे दीर्घकालीन भुगतान आसान और विश्वसनीय हो जाता है।


इन कार्यों के कारण, मुद्रा अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


2. मुद्रा का उद्भव और विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर: वस्तु विनिमय प्रथा के समय में विनिमय और मूल्य संग्रह को सरल बनाने के लिए पशुओं का उपयोग होता था। भारत में गाय को धन के रूप में माना जाता था। कृषि प्रधान समाज में अनाज के बदले पशु खरीदे जाते थे और आवश्यकतानुसार पशुओं को बेचकर अनाज प्राप्त किया जाता था। लेकिन पशुओं की बीमारियों, मृत्यु और दीर्घकालीन संग्रहण की समस्याओं के कारण कीमती पत्थरों का उपयोग होने लगा। राजशाही युग में सिक्कों का चलन शुरू हुआ और औद्योगिकीकरण तथा लोकतंत्र के उद्भव के साथ आधुनिक मुद्रा का विकास हुआ। केन्द्रीय सत्ता द्वारा समर्थित मुद्रा को सर्वस्वीकृति मिली और बैंकिंग प्रणाली के विकास ने मूल्य संग्रह और स्थानांतरण को सरल बना दिया।


3. ‘अधिक मात्रा में मुद्रा कम वस्तु को पकड़ने को दोड़े तब मुद्रास्फीति सर्जित होती है।’ विधान समझाइए।

उत्तर: मुद्रास्फीति एक मुद्राकीय घटना है जो तब सर्जित होती है जब देश में मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होती है और नागरिकों की आय बढ़ती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि होती है। यदि मुद्रा आपूर्ति के अनुपात में वस्त्रों और सेवाओं की आपूर्ति नहीं बढ़ती और स्थिर रहती है, तो मांग और पूर्ति में अंतर के कारण वस्त्रों और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि होती है। इस प्रकार, अधिक मात्रा में मुद्रा के कम वस्त्रों को पकड़ने के प्रयास से मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है। मेचलेप के अनुसार, जब अधिक मात्रा में मुद्रा कम वस्त्रों को पकड़ने के लिए दौड़ती है, तो यह मुद्रास्फीति को जन्म देती है।


4. मांगप्रेरित मुद्रास्फीति किसे कहते हैं? उसके कारणों को संक्षिप्त में समझाइए।


उत्तर: जब अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ने के कारण मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है, तो इसे मांगप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:


1. मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि: मुद्रास्फीति एक मुद्राकीय घटना है। जब देश में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ती है, तो लोगों की आय में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप, वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ जाती है। यदि वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति स्थिर रहती है, तो उनकी कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है।


2. सरकार के सार्वजनिक खर्च में वृद्धि: विकासशील देशों में सरकारें आर्थिक विकास के लिए सार्वजनिक खर्च करती हैं। आंतरिक ढांचे का निर्माण, आवश्यक आधारभूत सेवाओं की उपलब्धता, और रोजगार सृजन के लिए सरकारें बड़े पैमाने पर खर्च करती हैं। इससे देश में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ती है, लोगों की आय में वृद्धि होती है, और मांग में वृद्धि होती है। यदि सरकारें उत्पादन के अनुपात से अधिक मुद्रा आपूर्ति करती हैं, तो मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ सकती है।


3.जनसंख्या में वृद्धि: भारत में औसत जनसंख्या वृद्धि दर लगभग 2 प्रतिशत है। जनसंख्या वृद्धि से दैनिक उपभोग की वस्तुओं की मांग बढ़ती है। यदि बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग पूरी नहीं हो पाती, तो वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। इसके अलावा, अगर जनसंख्या स्थिर रहे पर लोगों की आय बढ़े, तो भी मांग बढ़ती है और मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।


इस प्रकार, मांगप्रेरित मुद्रास्फीति तब होती है जब मांग की वृद्धि आपूर्ति की वृद्धि से अधिक हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में बढ़ोतरी होती है।


5. खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति किसे कहते हैं? उसके कारणों को संक्षिप्त में समझाइए।


उत्तर: जब उत्पादन और अन्य खर्चों में वृद्धि के कारण मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है, तो उसे खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के खर्च शामिल होते हैं जो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को बढ़ाते हैं। खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:


1. कच्चे माल की कीमत में वृद्धि: जब उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की कीमतें बढ़ जाती हैं, तो उत्पादकों को इन उच्च लागतों को अपनी अंतिम उत्पाद कीमतों में जोड़ना पड़ता है।


2. बिजली की दर में वृद्धि: उत्पादन प्रक्रिया में बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बिजली की दरों में वृद्धि से उत्पादन लागत बढ़ती है, जिससे उत्पाद की कीमतें बढ़ जाती हैं।


3. पानी की दर में वृद्धि: कई उद्योगों में पानी का उपयोग महत्वपूर्ण होता है। पानी की दरों में वृद्धि से उत्पादन की कुल लागत बढ़ जाती है।


4. श्रमिकों के वेतन में वृद्धि: जब श्रमिकों के वेतन में वृद्धि होती है, तो उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।


5. परिवहन खर्च में वृद्धि: वस्तुओं और कच्चे माल के परिवहन की लागत में वृद्धि होने से भी उत्पादन लागत बढ़ती है। परिवहन खर्च में वृद्धि का असर विशेषकर तब होता है जब पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ती हैं।


इन सभी कारणों के मिलकर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि होती है, जिससे खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है।


6. मुद्रास्फीति के अन्य कारणों की चर्चा कीजिए।


उत्तर: मुद्रास्फीति के प्रमुख कारण मांग में वृद्धि और खर्च में वृद्धि हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त अन्य कारण भी मुद्रास्फीति में योगदान करते हैं:


1. करनीति: जब सरकार अपनी टैक्स नीति में बदलाव करती है और वस्तुओं एवं सेवाओं पर उच्च दर से कर लगाती है, तो उत्पादन खर्च और कीमतें बढ़ जाती हैं। ऊँचे कर दरों के कारण वस्तुओं और सेवाओं की लागत बढ़ने से मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है।


2. आयातित वस्तुओं की कीमत में वृद्धि: भारत में कई वस्तुओं का आयात होता है। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो इसका सीधा असर घरेलू बाजार पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, पेट्रोलियम उत्पादों का भारत में 70% आयात होता है। यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें बढ़ती हैं, तो पेट्रोल और डीजल की कीमतें भी बढ़ जाती हैं, जिससे अन्य वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें भी प्रभावित होती हैं।


3. अभाव: उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल, बिजली, या अन्य संसाधनों की कमी होने पर कीमतें बढ़ जाती हैं। उत्पादन प्रक्रिया में किसी भी आवश्यक घटक की दीर्घकालीन कमी मुद्रास्फीति को बढ़ावा देती है।


इन कारणों के मिलकर मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है और आर्थिक स्थिरता को चुनौती मिलती है।


प्रश्न 5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :


प्रश्न 1: वस्तु विनिमय प्रथा का अर्थ देकर वस्तुविनिमय प्रथा की मर्यादाओं को समझाइए


उत्तर: मुद्रा की अनुपस्थिति में एक वस्तु या दूसरी वस्तु के साथ विनिमय या अदलाबदली को वस्तुविनिमय प्रथा कहते हैं। प्राचीन समय में इसे अदला-बदली प्रथा (Barter System) कहते थे। वस्तु विनिमय प्रथा की मर्यादाएँ निम्नलिखित थीं, जिनके कारण मुद्रा विनिमय प्रथा अस्तित्व में आयी:


1. आवश्यकताओं के परस्पर सामंजस्य का अभाव: सट्टा पद्धति अथवा वस्तुविनिमय प्रथा में दो व्यक्तियों के बीच विनिमय तभी संभव होता है जब दोनों व्यक्तियों को एक-दूसरे की वस्तुओं की आवश्यकता हो। उदाहरण के लिए:

   - A के पास गेहूँ है और उसे कपड़ा चाहिए।

   - B के पास कपड़ा है पर उसे कुर्सी चाहिए।

   - C के पास कुर्सी है पर उसे घड़ा चाहिए।

   - D के पास घड़ा है पर उसे गेहूँ चाहिए।


इस प्रकार, A व्यक्ति सीधे कपड़ा नहीं ले सकता क्योंकि B को कपड़े के बदले गेहूँ नहीं चाहिए। इस समस्या का समाधान मुद्रा के माध्यम से हो सकता है।


2. मूल्य के संग्रह की कठिनाई: वस्तुविनिमय प्रथा में मूल्य संग्रह की कठिनाई थी। उदाहरणार्थ, अनाज, दूध, घी, सब्जियाँ, फल आदि को लंबे समय तक संग्रहित नहीं किया जा सकता था, क्योंकि ये सड़ जाती थीं। इसी प्रकार, गाय, भैंस, हाथी, ऊँट आदि की अदला-बदली और उनके संग्रह में कठिनाई होती थी।


3. मूल्य के मापदंड का प्रश्न: वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य मापने का प्रश्न महत्त्वपूर्ण था। उदाहरण के लिए, एक मन गेहूँ के बदले कितने चावल, कपड़े, या घी मिल सकते हैं, यह तय करना कठिन था। इसलिए एक सर्व-सामान्य मापदण्ड की आवश्यकता पड़ी।


4. विभाजन की कठिनाई: कुछ वस्तुओं को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित नहीं किया जा सकता था। उदाहरण के लिए, मकान, स्कूटर, मोटर साइकिल, गाय, भैंस, बकरी आदि। परिणामस्वरूप, विनिमय की प्रक्रिया में कठिनाई आती थी।


5. दीर्घकाल के लेन-देन में कठिनाई: वस्तुविनिमय प्रथा में दीर्घकालीन लेन-देन में कठिनाई आती थी। उदाहरण के लिए, किसी किसान ने बैल दिए और पाँच साल बाद लौटाने पर बैलों की कार्यक्षमता कम हो जाती थी। इसी प्रकार, लहसुन या अन्य वस्तुओं के मूल्य में समय के साथ बदलाव होने से दीर्घकालीन लेन-देन में कठिनाई होती थी।


6. मुआवजा चुकाने का प्रश्न: वस्तुविनिमय प्रथा में सेवाओं के मूल्य निर्धारण की समस्या थी। उदाहरण के लिए, डॉक्टर, वकील, नर्स, शिक्षक, धोबी, नाई आदि की सेवाओं के बदले कितना मुआवजा दिया जाए, यह तय करना कठिन था।


संक्षेप में, वस्तुविनिमय प्रथा की उपरोक्त कमियों के कारण यह प्रथा लंबे अरसे तक नहीं चल सकी और वैकल्पिक व्यवस्था का आरंभ हुआ।


प्रश्न 2: मुद्रास्फीति का अर्थ बताकर उसके कारणों की चर्चा कीजिए


उत्तर: सामान्य रूप से वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में लगातार वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं। यह एक आर्थिक समस्या और मौद्रिक घटना है। अर्थशास्त्र में मुद्रास्फीति का अर्थ निम्नानुसार है:


- लर्नर के अनुसार: "वस्तु की पूर्ति की अपेक्षा मांग अधिक हो तो इस स्थिति को मुद्रास्फीति कहते हैं।"

- मिल्टन फ्रीडमेन के अनुसार: "मुद्रास्फीति एक मौद्रिक घटना है जिसमें स्थिर और चालू गति से भाव सतत बढ़ते रहते हैं।"

- डॉ. पिगु के अनुसार: "वास्तविक आय की अपेक्षा मुद्राकीय आय अधिक तेजी से बढ़े तो उसे मुद्रास्फीति कहते हैं।"


मुद्रास्फीति में मुद्रा की क्रयशक्ति घटती है और अर्थतंत्र पर प्रतिकूल असर डालती है।


मुद्रास्फीति के कारण:


1. मांग में वृद्धि: जब अर्थतंत्र में वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है, लेकिन उनकी आपूर्ति स्थिर रहती है, तो कीमतों में वृद्धि होती है। इसे मांग प्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं। इसके कारण निम्नलिखित हैं:


  - मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि: जब मुद्रा की आपूर्ति बढ़ती है, तो लोगों की आय बढ़ती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है। आपूर्ति स्थिर रहने पर कीमतें बढ़ती हैं, जिससे मुद्रास्फीति होती है।


   - सरकार के सार्वजनिक खर्च में वृद्धि: विकासशील देशों में सरकार आर्थिक विकास के लिए सार्वजनिक खर्च करती है, जिससे मुद्रा की आपूर्ति और मांग दोनों बढ़ती हैं। यदि सरकार बड़े पैमाने पर मुद्रा आपूर्ति करे तो मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ती है।

   - जनसंख्या में वृद्धि: जनसंख्या वृद्धि के कारण दैनिक उपभोग की वस्तुओं की मांग बढ़ती है। यदि बढ़ती जनसंख्या की मांग पूरी नहीं हो पाती, तो कीमतें बढ़ती हैं, जिससे मुद्रास्फीति होती है।


2. खर्च में वृद्धि: खर्च में वृद्धि के कारण सर्जित मुद्रास्फीति को खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं। उत्पादन खर्च में वृद्धि से वस्तुओं की कीमत बढ़ती है। इसके कारण निम्नलिखित हैं:


   - कच्चे माल की कीमत में वृद्धि

   - बिजली की दर में वृद्धि

   - पानी की दर में वृद्धि

   - श्रमिकों के वेतन में वृद्धि

   - परिवहन खर्च में वृद्धि


3. अन्य कारण: मुद्रास्फीति के मूल में मांग और खर्च में वृद्धि के अतिरिक्त अन्य कारण भी होते हैं:


   - करनीति: सरकार की कर नीति में परिवर्तन, जैसे ऊँची दर से कर वृद्धि, उत्पादन खर्च और कीमतों में वृद्धि करती है।

   - आयातित वस्तुओं की कीमत में वृद्धि: भारत में कई वस्तुओं का आयात होता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने से मुद्रास्फीति सर्जित होती है। उदाहरण के लिए, पेट्रोलियम उत्पादन का 70% आयात द्वारा होता है, और क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ने पर पेट्रोल-डीज़ल के भाव भी बढ़ते हैं।

   - अभाव: कच्चे माल, बिजली या उत्पादन के लिए आवश्यक किसी भी वस्तु की कमी से कीमतें बढ़ती हैं। उत्पादन प्रक्रिया में दीर्घकालीन कमी मुद्रास्फीति के लिए जिम्मेदार होती है।


प्रश्न 3: मुद्रा की मांग और मुद्रा की आपूर्ति की संकल्पना समझाइए । उनके मुख्य घटक कौन-कौन से हैं? 


उत्तर:


मुद्रा की मांग:- मुद्रा की मांग का तात्पर्य उस मात्रा से है, जिसे लोग अपने पास नकद के रूप में रखना चाहते हैं ताकि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। मुद्रा का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं की खरीदी में होता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कीन्स ने मुद्रा की मांग के तीन मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख किया है:


1. विनिमय का उद्देश्य:- लोग अपनी आय को समय-समय पर प्राप्त करते हैं, जबकि खर्चों का सामना रोजाना करना पड़ता है। इस अंतराल को पाटने के लिए लोग नकद मुद्रा अपने पास रखते हैं। व्यापारिक संस्थाएं भी अपने दैनिक लेन-देन के लिए नकद मुद्रा रखती हैं। इसे विनिमय के उद्देश्य से मुद्रा की मांग कहा जाता है।


2. सावधानी का उद्देश्य:- भविष्य की अनिश्चितताओं और आकस्मिकताओं का सामना करने के लिए लोग नकद मुद्रा रखते हैं। उदाहरण के रूप में, अचानक बीमारी या दुर्घटना के समय खर्चों को पूरा करने के लिए लोग नकद मुद्रा की मांग करते हैं। व्यापारिक संस्थाएं भी आकस्मिक खर्चों का सामना करने के लिए नकद मुद्रा रखती हैं।


3. सट्टाकीय उद्देश्य:- यह उद्देश्य प्रतिभूतियों के संदर्भ में है। भविष्य में कीमतों में संभावित परिवर्तन का लाभ लेने के लिए लोग प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री करते हैं। इस क्रय-विक्रय से लाभ कमाने के लिए सटोरिये नकद मुद्रा अपने पास रखते हैं। ब्याज दर और प्रतिभूतियों के भावों के बीच संबंध को ध्यान में रखते हुए लोग नकद मुद्रा की मांग करते हैं।


मुद्रा की आपूर्ति:- मुद्रा की आपूर्ति का अर्थ उस मात्रा से है, जो अर्थव्यवस्था में लोगों के पास मौजूद होती है। यह मुद्रा उनके पास नकद रूप में, तिजोरी में, या बैंक में जमा के रूप में हो सकती है। मुद्रा की आपूर्ति के दो मुख्य घटक होते हैं:


1. चलन मुद्रा (Currency in Circulation):

   - यह मध्यस्थ बैंक द्वारा और ट्रेजरी द्वारा निर्गमित चलनी नोटों से मिलकर बनती है। भारत में यह अधिकार सिर्फ रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया को है। रिजर्व बैंक द्वारा चलनी नोटों का निर्गमन किया जाता है, जो उसका ऋण और उत्तरदायित्व होता है।


2. बैंक जमाराशियाँ (Bank Deposits):- इसमें लोगों की बैंक में चालू जमाराशियाँ शामिल होती हैं, जो मांगने पर निकाली जा सकती हैं। 


मुद्रा की आपूर्ति की विस्तृत व्याख्या में उन आर्थिक सम्पत्तियों का समावेश भी किया जाता है, जिनका रूपान्तरण मुद्रा में हो सकता है। बैंक की सावधि जमा को मुद्रा की आपूर्ति में शामिल नहीं किया जाता। मुद्रा की आपूर्ति में परिवर्तन चलन मुद्रा और बैंक जमाराशियों के भंडार में वृद्धि या कमी से होता है।


चलन नोटों के निर्गमन का अधिकार:- भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को चलन नोटों के निर्गमन का अधिकार है। इन नोटों पर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं और उतने अंशों की मान्य सम्पत्ति उसके पास होती है, जिसमें स्वर्ण, विदेशी मुद्रा, सरकारी प्रतिभूतियाँ और बॉण्ड शामिल होते हैं।


मुद्रा की आपूर्ति का प्रमाण हर देश में उसके आर्थिक विकास और मुद्रा पद्धति के विकास पर निर्भर करता है। विकासशील देशों में चलन मुद्रा का प्रमाण अधिक होता है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बैंक में जमा राशि का प्रमाण अधिक होता है।

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