वाणिज्यिक व्यवस्था और संचालन कक्षा 12 पाठ 8 वित्तीय संचालन Solutions In Hindi

 स्वाध्याय ( exercise ) 

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर योग्य उचित विकल्प चुनकर दीजिए । 

प्रश्न 1. महत्तम सम्पत्ति का हेतु/उद्देश्य दूसरे किस नाम से पहचाना जाता है?

(A) सामाजिक कल्याण  

(B) पूँजी विनियोग  

(C) शुद्ध वर्तमान मूल्य  

(D) इक्विटी पर का व्यापार  


उत्तर: (C) शुद्ध वर्तमान मूल्य  


स्पष्टीकरण: शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPV) एक वित्तीय मापदंड है जिसका उपयोग किसी निवेश या परियोजना के संभावित लाभ को मापने के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य किसी निवेश की वर्तमान स्थिति को निर्धारित करना होता है, जो भविष्य में उत्पन्न होने वाले नकदी प्रवाह का समायोजित मूल्य होता है, जिस पर पूंजी लागत घटाई जाती है। इसलिए, महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य निवेश के शुद्ध वर्तमान मूल्य को बढ़ाना होता है ताकि कुल संपत्ति में वृद्धि हो सके।


प्रश्न 2 महत्तम सम्पत्ति के मापदण्ड का ख्याल किस पर आधारित है?  

(A) लाभदायकता  

(B) सामाजिक दायित्व  

(C) सम्पत्ति का कुल वर्तमान मूल्य  

(D) नकद प्रवाह  


उत्तर:  (D) नकद प्रवाह  


स्पष्टीकरण: महत्तम सम्पत्ति का मापदंड नकद प्रवाह पर आधारित होता है क्योंकि यह किसी निवेश की वास्तविक वित्तीय स्थिति को दर्शाता है। नकद प्रवाह वह मात्रा होती है जो एक व्यवसाय में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है और विभिन्न खर्चों के बाद शेष रहती है। इस मापदंड के माध्यम से यह निर्धारित किया जाता है कि किसी निवेश से उत्पन्न होने वाली कुल नकद राशि कितनी है और यह व्यवसाय के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।


प्रश्न 3 वित्तीय संचालन का किसके साथ सम्बन्ध होता है?


(A) वित्त कार्य  

(B) वित्त बाजार  

(C) पूँजी बाजार  

(D) शेयर बाजार  


उत्तर: (A) वित्त कार्य  


स्पष्टीकरण: वित्तीय संचालन का सीधा संबंध वित्त कार्य से होता है। वित्त कार्य में वे सभी क्रियाएं शामिल होती हैं जिनका मुख्य उद्देश्य धन का प्रबंधन, निवेश, और वित्तीय योजना बनाना होता है। इसमें विभिन्न वित्तीय स्रोतों से धन प्राप्त करना, उनका उचित उपयोग करना और निवेश संबंधी निर्णय लेना शामिल होता है।


प्रश्न 4. निवेश (विनियोग) के बारे में निर्णय …………

(A) पूँजी लागत  

(B) पूँजी बजेटिंग  

(C) पूँजी ढाँचा  

(D) लाभ का पुनः विनियोग  


उत्तर:  (B) पूँजी बजेटिंग  


स्पष्टीकरण: पूँजी बजेटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी निवेश या परियोजना के लिए पूँजी का नियोजन और वितरण किया जाता है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि उपलब्ध पूँजी का सही उपयोग किया जाए और निवेश से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके। इसमें निवेश के संभावित लाभ और लागत का विश्लेषण करके उचित निर्णय लिया जाता है।


प्रश्न 5 इक्विटी और ऋण का योग्य प्रमाण वाला ढाँचा और पूँजी ढाँचा अर्थात् ……………

(A) अधिकतम पूँजी ढाँचा  

(B) सरल पूँजी ढाँचा  

(C) कार्यशील पूँजी ढाँचा  

(D) प्रमाणसर/विधिवत ढाँचा  


उत्तर: (A) अधिकतम पूँजी ढाँचा  


स्पष्टीकरण:अधिकतम पूँजी ढाँचा वह वित्तीय संरचना है जिसमें इक्विटी और ऋण का एक संतुलित और उपयुक्त मिश्रण होता है। इसका मुख्य उद्देश्य वित्तीय स्थिरता और पूँजी की लागत को न्यूनतम करना होता है। इस ढाँचे में यह सुनिश्चित किया जाता है कि व्यवसाय की वित्तीय स्थिति मजबूत रहे और वह अपने दीर्घकालिक उद्देश्यों को पूरा कर सके।


प्रश्न 6. शद्ध कार्यशील पूँजी का ख्याल के संदर्भ में इनमें से कौनसा कथन सही नहीं है? 

(A) चालू दायित्व पर चालू सम्पत्ति में वृद्धि  

(B) धन्धाकीय इकाई की तरलता की स्थिति नहीं दर्शाती  

(C) कार्यशील पूँजी के लिए योग्य मापदण्ड प्रदान करते हैं  

(D) चालू दायित्व में वृद्धि शुद्ध कार्यशील पूँजी में वृद्धि नहीं होती  


उत्तर:  ( A) चालू दायित्व पर चालू सम्पत्ति में वृद्धि  


स्पष्टीकरण: चालू दायित्व पर चालू सम्पत्ति में वृद्धि का अर्थ है कि जब चालू सम्पत्ति बढ़ती है, तो चालू दायित्व भी बढ़ते हैं। यह कथन गलत है क्योंकि शुद्ध कार्यशील पूँजी चालू सम्पत्तियों और चालू दायित्वों के अंतर को दर्शाती है। अगर चालू सम्पत्ति बढ़ती है और चालू दायित्व नहीं बढ़ते, तो शुद्ध कार्यशील पूँजी में वृद्धि होगी। अतः, यह कथन सही नहीं है।


प्रश्न 7. पूँजी ढाँचे के कितने प्रकार हैं?

(A) दो  

(B) तीन  

(C) चार  

(D) पाँच  


उत्तर:  (C) चार  


स्पष्टीकरण: पूँजी ढाँचे के चार प्रमुख प्रकार होते हैं जिनमें सम्मिलित हैं:  

1. इक्विटी पूँजी  

2. ऋण पूँजी  

3. संकर पूँजी  

4. रिजर्व और अधिशेष  

इन प्रकारों के माध्यम से व्यवसाय अपने वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन करता है और विभिन्न स्रोतों से पूँजी प्राप्त करता है।


प्रश्न 8 डिविडण्ड कौन-सी पूँजी पर चुकाया जाता है?

(A) भरी हुई पूँजी  

(B) अधिकृत पूँजी  

(C) मंगाई गई पूँजी  

(D) कार्यशील पूंजी  


उत्तर:  (A) भरी हुई पूँजी  


स्पष्टीकरण: डिविडण्ड का भुगतान भरी हुई पूँजी पर किया जाता है। भरी हुई पूँजी वह पूँजी होती है जो शेयरधारकों द्वारा पूरी तरह से भुगतान की गई होती है। अधिकृत पूँजी वह होती है जिसे कम्पनी कानूनी रूप से जारी कर सकती है, जबकि भरी हुई पूँजी वास्तव में प्राप्त की गई पूँजी को दर्शाती है। अतः, डिविडण्ड का भुगतान भरी हुई पूँजी पर किया जाता है।


प्रश्न 9. स्थिर पूँजी के सन्दर्भ में कौनसा कथन सत्य है?

(A) 5 वर्ष तक ही धन्धे में रूकी रहती है  

(B) देनदार, लेनी हुण्डी, बैंक शेष आदि घटक हैं  

(C) तरलता का प्रमाण थोडा होता है  

(D) निवेश सरलता से वापस प्राप्त किया जा सकता है  


उत्तर: (C) तरलता का प्रमाण थोडा होता है  


स्पष्टीकरण: स्थिर पूँजी वह पूँजी होती है जो व्यवसाय में लंबे समय तक निवेशित रहती है और जिसका तरलता का प्रमाण बहुत कम होता है। इसका अर्थ यह है कि इसे जल्दी से नकदी में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। स्थिर पूँजी में भूमि, भवन, मशीनरी आदि शामिल होते हैं, जिन्हें बेचना या नकदी में बदलना कठिन होता है।


प्रश्न 10. विदेशी निवेश संस्थाओं को उनका पंजियन किसके समक्ष करना पड़ता है

(A) कम्पनी रजिस्ट्रार  

(B) न्यायालय  

(C) शेयर बाजार  

(D) सेबी  


उत्तर: (D) सेबी  


स्पष्टीकरण: विदेशी निवेश संस्थाओं को अपने पंजियन के लिए सेबी (Securities and Exchange Board of India) के समक्ष प्रस्तुत होना पड़ता है। सेबी भारतीय पूँजी बाजार का नियामक संगठन है जो निवेशकों के हितों की रक्षा करता है और बाजार की स्थिरता बनाए रखता है। विदेशी निवेश संस्थाओं को सेबी के नियमों और दिशानिर्देशों का पालन करना होता है।


2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देकर उसके कारण समझाइए । 


प्रश्न 1. वित्तीय संचालन कौनसे वित्तीय निर्णय लेने के साथ सम्बन्ध रखते हैं?

उत्तर: वित्तीय संचालन का संबंध प्रमुख तीन प्रकार के वित्तीय निर्णयों के साथ होता है: निवेश के निर्णय, पूँजी ढाँचे के निर्णय, और डिविडेंड नीति के निर्णय।


स्पष्टीकरण:  

1.निवेश के निर्णय (Investment Decisions):

निवेश के निर्णय वह प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यवसाय द्वारा विभिन्न परियोजनाओं या संपत्तियों में पूँजी लगाने का निर्णय लिया जाता है। यह निर्णय प्रमुखता से इस पर आधारित होता है कि कौन-सी परियोजना भविष्य में अधिकतम लाभ उत्पन्न करेगी और व्यवसाय के लिए दीर्घकालिक लाभकारी होगी। उदाहरण के तौर पर, किसी नए प्लांट का निर्माण, मशीनरी की खरीद, या किसी नए बाजार में विस्तार करना। ये निर्णय महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि यह व्यवसाय की वृद्धि और विकास को सीधे प्रभावित करते हैं। 


2. पूँजी ढाँचे के निर्णय (Capital Structure Decisions):  पूँजी ढाँचे के निर्णय वह प्रक्रिया है जिसमें व्यवसाय द्वारा अपने वित्तपोषण स्रोतों का मिश्रण निर्धारित किया जाता है। इसमें यह निर्णय लिया जाता है कि कितनी पूँजी इक्विटी शेयरों, प्रेफरेंस शेयरों, ऋण पत्रों, अनामत, और लोन से प्राप्त की जाएगी। यह निर्णय महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह व्यवसाय की वित्तीय स्थिरता और जोखिम को प्रभावित करता है। एक संतुलित पूँजी ढाँचा वह होता है जिसमें इक्विटी और ऋण का उपयुक्त अनुपात होता है, जिससे पूँजी की लागत न्यूनतम होती है और व्यवसाय की वित्तीय स्थिति मजबूत रहती है।


3. डिविडेंड नीति के निर्णय (Dividend Policy Decisions): डिविडेंड नीति के निर्णय वह प्रक्रिया है जिसमें व्यवसाय द्वारा अपने लाभांश वितरण की योजना बनाई जाती है। इसमें यह निर्णय लिया जाता है कि कितनी राशि लाभांश के रूप में शेयरधारकों को वितरित की जाएगी और कितनी राशि पुनः निवेश के लिए रखी जाएगी। यह निर्णय महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह निवेशकों की संतुष्टि और व्यवसाय की भविष्य की निवेश आवश्यकताओं को संतुलित करता है। एक उचित डिविडेंड नीति वह होती है जो शेयरधारकों की अपेक्षाओं को पूरा करती है और व्यवसाय की विकासशील आवश्यकताओं के लिए भी पर्याप्त निधि सुरक्षित रखती है।


प्रश्न 2. मालिक के महत्तम आर्थिक कल्याण का हेतु सिद्ध करने के लिए वित्तीय संचालन कौन से अभिगम अपनाते हैं? 

उत्तर: मालिक के महत्तम आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संचालन दो प्रमुख अभिगम या मापदंड अपनाते हैं: महत्तम लाभ का उद्देश्य और महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य।


स्पष्टीकरण: 

1. महत्तम लाभ का उद्देश्य (Profit Maximization Objective):  

महत्तम लाभ का उद्देश्य वह दृष्टिकोण है जिसमें किसी व्यवसाय का मुख्य लक्ष्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। इस अभिगम के तहत, व्यवसाय अपने उत्पादों और सेवाओं को इस तरह से तैयार करता है कि वे बाजार में अधिकतम राजस्व उत्पन्न करें और उत्पादन लागत को न्यूनतम रखें। यह अभिगम अल्पकालिक लाभ पर केंद्रित होता है और निवेशकों को तत्काल उच्च लाभांश प्रदान करने का प्रयास करता है। हालांकि, यह अभिगम दीर्घकालिक स्थिरता और विकास को नजरअंदाज कर सकता है, क्योंकि इसमें केवल तात्कालिक लाभ पर ध्यान दिया जाता है। 


2. महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य (Wealth Maximization Objective):  

महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य वह दृष्टिकोण है जिसमें व्यवसाय का मुख्य लक्ष्य दीर्घकालिक आर्थिक कल्याण और सम्पत्ति का निर्माण होता है। इस अभिगम के तहत, व्यवसाय विभिन्न वित्तीय मापदंडों जैसे कि शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPV), आंतरिक दर (IRR), और नकद प्रवाह का उपयोग करके अपने निवेश निर्णयों का मूल्यांकन करता है। इसका मुख्य उद्देश्य व्यवसाय की कुल संपत्ति को अधिकतम करना होता है, जिससे दीर्घकालिक लाभ और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित हो सके। यह दृष्टिकोण अधिक संतुलित और व्यावहारिक होता है क्योंकि यह व्यवसाय की दीर्घकालिक लाभप्रदता और विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।


प्रश्न 3. वित्तीय संचालन का कौन-सा उद्देश्य स्वीकार्य माना जाता है? 

उत्तर: वित्तीय संचालन का महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य योग्य और सार्वत्रिक रूप से स्वीकार्य माना जाता है। अर्थात्, वित्तीय संचालन का मुख्य उद्देश्य मालिक के महत्तम आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करना होता है।


स्पष्टीकरण: महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य (Wealth Maximization Objective) वित्तीय संचालन का सबसे उपयुक्त और व्यापक रूप से स्वीकार्य उद्देश्य माना जाता है। यह उद्देश्य व्यवसाय की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और लाभप्रदता पर केंद्रित होता है। 


1. वित्तीय स्थिरता: महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य व्यवसाय की कुल संपत्ति को अधिकतम करने का प्रयास करता है, जिससे वित्तीय स्थिरता और मजबूती सुनिश्चित हो सके। यह व्यवसाय के विभिन्न निवेश निर्णयों का मूल्यांकन करके उनकी दीर्घकालिक लाभप्रदता और जोखिम का आकलन करता है।


2. दीर्घकालिक लाभ: इस उद्देश्य के तहत, व्यवसाय अपने निवेश निर्णयों को दीर्घकालिक लाभ और विकास की दृष्टि से लेता है। यह व्यवसाय को वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है और उसे दीर्घकालिक विकास के पथ पर अग्रसर करता है।


3. शेयरधारकों का संतोष: महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य शेयरधारकों के हितों की सुरक्षा और उनके दीर्घकालिक आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करता है। यह दृष्टिकोण व्यवसाय की कुल संपत्ति को बढ़ाने का प्रयास करता है, जिससे शेयरधारकों को अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके।


4. व्यावहारिक दृष्टिकोण: यह उद्देश्य व्यावहारिक और संतुलित दृष्टिकोण को अपनाता है, जिसमें व्यवसाय की दीर्घकालिक और अल्पकालिक वित्तीय आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है। यह व्यवसाय को वित्तीय रूप से स्थिर और लाभप्रद बनाए रखने में मदद करता है।


प्रश्न 4 पूँजी ढाँचा किसका बना हुआ होता है?  

उत्तर: पूँजी ढाँचा अर्थात् पूँजी प्राप्ति के विविध स्रोतों का मिश्रण जैसे कि इक्विटी शेयर, प्रेफरेंस शेयर, ऋण पत्र, अनामत और लोन कोष से बना हुआ होता है।


स्पष्टीकरण:  पूँजी ढाँचा (Capital Structure) व्यवसाय के वित्तपोषण के लिए विभिन्न स्रोतों के संयोजन को दर्शाता है। इसमें विभिन्न वित्तीय साधनों और स्रोतों का मिश्रण शामिल होता है, जो व्यवसाय को आवश्यक पूँजी प्राप्त करने में मदद करते हैं। 


1. इक्विटी शेयर (Equity Shares): इक्विटी शेयर वह वित्तीय साधन हैं जिनके माध्यम से व्यवसाय अपनी पूँजी जुटाता है। यह शेयरधारकों को व्यवसाय में स्वामित्व का अधिकार प्रदान करता है और उन्हें व्यवसाय के लाभ और हानि में हिस्सेदारी का अधिकार देता है। इक्विटी शेयरों के माध्यम से प्राप्त पूँजी व्यवसाय की स्थायी पूँजी होती है और इसका पुनर्भुगतान नहीं किया जाता।


2. प्रेफरेंस शेयर (Preference Shares): प्रेफरेंस शेयर वह वित्तीय साधन हैं जो इक्विटी शेयरधारकों के बाद प्राथमिकता के आधार पर लाभांश और परिसमापन में प्राथमिकता प्राप्त करते हैं। यह शेयरधारकों को निश्चित दर से लाभांश प्रदान करता है और उन्हें व्यवसाय के नियंत्रण में हिस्सा नहीं मिलता।


3. ऋण पत्र (Debentures): ऋण पत्र वह वित्तीय साधन हैं जिनके माध्यम से व्यवसाय दीर्घकालिक ऋण प्राप्त करता है। यह निवेशकों को निश्चित ब्याज दर के साथ निवेश की गई राशि के पुनर्भुगतान का वादा करता है। ऋण पत्र व्यवसाय की देनदारी होते हैं और इन्हें निर्धारित अवधि के बाद पुनर्भुगत करना होता है।


4. अनामत और लोन (Reserves and Loans): अनामत वह आंतरिक स्रोत हैं जिनमें व्यवसाय के संचालित लाभों का एक हिस्सा सुरक्षित रखा जाता है। लोन वह बाहरी स्रोत हैं जिनके माध्यम से व्यवसाय बैंक और वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करता है। यह स्रोत व्यवसाय की दीर्घकालिक और अल्पकालिक वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करते हैं।


प्रश्न 5: शेयरधारकों को डिविडेंड कौन से स्वरूप में चुकाया जाता है?


उत्तर: कंपनी कानून के अनुसार, डिविडेंड केवल नकद में ही चुकाया जाता है। यह वितरण व्यवसाय के लाभ पर आधारित होता है और निम्नलिखित पहलुओं को ध्यान में रखता है:


1.  कानूनी प्रावधान: डिविडेंड का भुगतान कंपनी कानून के तहत निर्धारित नियमों और प्रावधानों के अनुसार किया जाता है। इसमें नकद में भुगतान करने की आवश्यकता होती है।


2. पूंजी पर दर: शेयर की भरपाई हुई पूँजी पर एक निश्चित दर से डिविडेंड चुकाया जाता है। इसका मतलब यह है कि डिविडेंड की दर पहले से तय होती है और इसे कंपनी की पूंजी पर लागू किया जाता है।


3. भुगतान का आधार: डिविडेंड भुगतान का आधार प्राप्त रोकड़ (कैश) पर होता है। यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी के पास पर्याप्त नकद हो ताकि डिविडेंड का भुगतान किया जा सके।


4. लाभ का वितरण: डिविडेंड वह राशि है जो व्यवसाय अपने लाभांश के रूप में अपने शेयरधारकों को वितरित करता है। यह वितरण कंपनी के अर्जित लाभ पर आधारित होता है और केवल नकद के रूप में किया जाता है।


5. निवेशकों का प्रतिफल: डिविडेंड निवेशकों को उनके निवेश पर मिलने वाला प्रतिफल होता है। यह कंपनी के लाभ का हिस्सा होता है जो उनके बीच वितरित किया जाता है।


इस प्रकार, डिविडेंड का भुगतान कंपनी के लाभ और नकद स्थिति पर निर्भर करता है और इसे केवल नकद में ही किया जा सकता है।


प्रश्न 6. जामिनगीरी (प्रतिभूति) निर्गमित करके पूँजीकोष प्राप्त करती कम्पनियों को किस प्रकार के शेयर निर्गमित करना ही पड़ता है?

उत्तर: जब कंपनियाँ जामिनगीरी (प्रतिभूति) निर्गमित करके पूँजी कोष प्राप्त करती हैं, तो वे प्रमुखतः तीन प्रकार की वित्तीय साधनों का उपयोग करती हैं: इक्विटी शेयर, प्रेफरन्स शेयर, और ऋण-पत्र। कंपनियाँ जब पूँजी कोष जुटाने का निर्णय लेती हैं, तो वे विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों का सहारा लेती हैं जो निवेशकों को विभिन्न लाभ और सुरक्षा प्रदान करते हैं। इनमें प्रमुखतः शामिल हैं:


1. इक्विटी शेयर (Equity Shares): इक्विटी शेयर कंपनी के स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हें जारी करके कंपनी अपने स्वामित्व को विभाजित करती है और निवेशकों को एक हिस्सा देती है। इक्विटी शेयरधारकों को कंपनी के लाभ और हानि दोनों में हिस्सा मिलता है। इसके अलावा, ये शेयरधारक कंपनी के प्रबंधन में भी भाग ले सकते हैं, जैसे कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चुनाव में।


2. प्रेफरन्स शेयर (Preference Shares): प्रेफरन्स शेयर वे वित्तीय साधन हैं जिनमें निवेशकों को इक्विटी शेयरधारकों की तुलना में कुछ प्राथमिकताएं मिलती हैं, जैसे कि लाभांश का भुगतान पहले और परिसमापन की स्थिति में प्राथमिकता। हालांकि, इन्हें प्रबंधन में हिस्सा नहीं मिलता और इनका लाभांश दर निश्चित होती है।


3. ऋण-पत्र (Debentures): ऋण-पत्र वे वित्तीय साधन हैं जिनके माध्यम से कंपनियाँ कर्ज प्राप्त करती हैं। ये निवेशकों को निश्चित ब्याज दर पर निर्धारित अवधि के लिए निवेश की गई राशि के पुनर्भुगतान का वादा करते हैं। ऋण-पत्रधारकों को कंपनी के स्वामित्व में हिस्सा नहीं मिलता, लेकिन वे कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन पर ध्यान रखते हैं, क्योंकि उन्हें नियमित ब्याज भुगतान प्राप्त होते हैं।


प्रश्न 7: यदि कम्पनी का धन्धा जोखिम वाला हो और धन्धा में लाभ का प्रमाण निश्चित हो तो ऐसी कम्पनी के लिए कौन सी पूँजी का ढाँचा अनुकूल माना जाता है?


उत्तर: यदि कंपनी का व्यवसाय जोखिमपूर्ण हो और उसमें लाभ का प्रमाण अनिश्चित हो, तो ऐसी कंपनी के लिए इक्विटी शेयर पूँजी का ढाँचा सबसे उपयुक्त माना जाता है।


1. धन्धा का जोखिम (Business Risk):

जो कंपनियाँ उच्च जोखिम वाले व्यवसाय में संलग्न होती हैं, उन्हें अपने वित्तीय ढाँचे में अधिक सावधानी बरतनी होती है। ऐसे व्यवसायों में लाभ का प्रमाण अनिश्चित होता है, जिससे कर्ज का भुगतान एक चुनौती बन सकता है।


2. इक्विटी शेयर का लाभ (Advantages of Equity Shares): इक्विटी शेयरधारक व्यवसाय के स्वामित्व में भागीदार होते हैं और उनके निवेश पर मिलने वाला लाभ सीधे व्यवसाय के लाभ पर निर्भर करता है। उच्च जोखिम वाले व्यवसायों के लिए यह फायदेमंद होता है, क्योंकि व्यवसाय को लाभ में न होने पर इन्हें ब्याज या मूलधन चुकाने की बाध्यता नहीं होती।


3. आर्थिक दबाव का न्यूनकरण (Reduction of Financial Pressure): इक्विटी शेयर पूँजी ढाँचे का एक बड़ा लाभ यह है कि यह कंपनी पर ब्याज भुगतान और मूलधन की पुनर्भुगतान का आर्थिक दबाव कम करता है, जो कि ऋण-पत्र या अन्य कर्ज साधनों में अधिक होता है। इससे कंपनी अपने नकद प्रवाह को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सकती है।


प्रश्न 8 विदेशी निवेश संस्थाओं को किसके समक्ष उनका पंजियन कराना पड़ता है?

उत्तर: विदेशी निवेश संस्थाओं को सेबी (SEBI) अर्थात् Securities and Exchange Board of India के समक्ष उनका पंजियन कराना पड़ता है।


  

I. सेबी का महत्व (Importance of SEBI): 

SEBI भारतीय प्रतिभूति बाजार की सर्वोच्च नियामक संस्था है, जो सभी प्रकार के प्रतिभूति और निवेश गतिविधियों को नियमन और निगरानी करती है। इसका मुख्य उद्देश्य निवेशकों के हितों की सुरक्षा करना और वित्तीय बाजार की पारदर्शिता और अखंडता को बनाए रखना है।


II. विदेशी निवेश संस्थाओं का पंजियन (Registration of Foreign Investment Institutions): 

विदेशी निवेश संस्थाओं को SEBI के समक्ष पंजियन कराना अनिवार्य होता है ताकि वे भारतीय प्रतिभूति बाजार में निवेश कर सकें। यह पंजियन प्रक्रिया इन संस्थाओं को भारतीय बाजार में निवेश करने की अनुमति प्रदान करती है और SEBI के नियमों और विनियमों का पालन सुनिश्चित करती है।


III. नियामक आवश्यकताएँ (Regulatory Requirements): 

SEBI के समक्ष पंजियन कराने से विदेशी निवेश संस्थाएँ भारतीय प्रतिभूति बाजार की नियामक आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। इसमें विभिन्न दस्तावेजों और जानकारी का प्रस्तुतिकरण शामिल होता है, जिससे SEBI इन संस्थाओं की विश्वसनीयता और वित्तीय स्थिति का आकलन कर सके।


प्रश्न 9 कौन सी जामिनगीरी निर्गमित करने का खर्च प्रमाण में कम आता है?  

उत्तर: ऋण-पत्र (Debenture) निर्गमित करने का खर्च अन्य जामिनगीरी निर्गमित करने के खर्च के प्रमाण में कम आता है।

 

1. ऋण-पत्र का खर्च (Cost of Issuing Debentures):  ऋण-पत्र निर्गमित करने का खर्च अन्य वित्तीय साधनों की तुलना में कम होता है। इसका कारण यह है कि ऋण-पत्रधारकों को ब्याज दर निश्चित होती है और उन्हें स्वामित्व का हिस्सा नहीं मिलता, जिससे वित्तीय प्रबंधन में सरलता होती है।


2. तुलनात्मक लाभ (Comparative Advantage): अन्य वित्तीय साधनों, जैसे कि इक्विटी शेयर और प्रेफरन्स शेयर के निर्गम के मुकाबले, ऋण-पत्र निर्गम की प्रक्रिया सरल और सस्ती होती है। इक्विटी और प्रेफरन्स शेयर के निर्गम में अधिक कागजी कार्यवाही और नियामक अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जिससे खर्च और समय दोनों अधिक होते हैं।


3. निवेशकों के लिए आकर्षण (Attractiveness to Investors): ऋण-पत्र निवेशकों के लिए एक सुरक्षित निवेश विकल्प होता है क्योंकि इसमें निश्चित ब्याज दर और परिपक्वता की तारीख होती है। निवेशक इसे पसंद करते हैं क्योंकि यह उनके निवेश पर स्थिर और सुरक्षित रिटर्न प्रदान करता है।


प्रश्न 10. कार्यशील पूँजी के घटक कौन-से हैं?  

उत्तर: कार्यशील पूँजी इकाई के दैनिक खर्च चुकाने हेतु रहती हैं, जो सामान्यत: धन्धा की चालू सम्पत्तियाँ जैसे कि कच्चा माल, देनदार, लेनी हुण्डी आदि में रुकी हुई होती है।


1. कच्चा माल (Raw Materials): कार्यशील पूँजी का एक महत्वपूर्ण घटक कच्चा माल होता है, जिसका उपयोग उत्पादन प्रक्रिया में किया जाता है। कच्चे माल की उपलब्धता से उत्पादन की निरंतरता सुनिश्चित होती है।


2. देय खातें (Accounts Receivable): ये वे धनराशियाँ होती हैं जो ग्राहकों से वसूल की जानी हैं। ये कार्यशील पूँजी का हिस्सा होती हैं क्योंकि इनसे प्राप्त धनराशि से व्यवसाय के दैनिक संचालन खर्चों का भुगतान किया जाता है।


3. लेनी हुण्डी (Bills Receivable): लेनी हुण्डी वे वित्तीय उपकरण होते हैं जिनमें व्यवसाय अपने ग्राहकों से भविष्य की एक निर्धारित तारीख पर भुगतान प्राप्त करने का अधिकार रखता है। ये कार्यशील पूँजी का हिस्सा होती हैं क्योंकि इनसे व्यापार में नकदी प्रवाह सुनिश्चित होता है।


4. चालू सम्पत्तियाँ (Current Assets): चालू सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ होती हैं जिन्हें एक वर्ष के भीतर नकद में परिवर्तित किया जा सकता है। इनमें नकद, बैंक शेष, और अन्य तरल सम्पत्तियाँ शामिल होती हैं जो व्यवसाय के दैनिक संचालन खर्चों को पूरा करने में मदद करती हैं।


प्रश्न 11. कार्यशील पूँजी जिसमें लगी हुई होती है उस सम्पत्ति पर घिसाई क्यों नहीं गिनी जाती? 

उत्तर: कार्यशील पूँजी धन्धे में घूमती हुई पूँजी है और इसका स्वरूप निरन्तर बदलता रहता है, जिससे इस पूँजी की घिसाई नहीं गिनी जाती।


  

1. घूमती पूँजी (Circulating Capital): कार्यशील पूँजी को घूमती हुई पूँजी भी कहा जाता है क्योंकि यह व्यवसाय में निरंतर प्रवाहित होती रहती है। यह कच्चे माल से


3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में लिखिए :


प्रश्न 1. मालिक का महत्तम आर्थिक कल्याण का हेतु अर्थात् क्या?  

उत्तर: मालिक का महत्तम आर्थिक कल्याण का हेतु, वित्तीय संचालन के माध्यम से कंपनी के शेयरधारकों के आर्थिक लाभ को अधिकतम करने का प्रयास होता है। यह लक्ष्य वित्तीय संसाधनों का प्रभावी उपयोग करके हासिल किया जाता है, जिससे कंपनी के शेयरधारकों को अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। इस हेतु को प्राप्त करने के लिए दो प्रमुख मापदंडों का पालन किया जाता है:


1. महत्तम लाभ उद्देश्य (Profit Maximization Objective): यह मापदंड कंपनी के कुल लाभ को अधिकतम करने पर केंद्रित होता है। इसके अंतर्गत, कंपनी विभिन्न निवेश अवसरों का विश्लेषण करती है और उन परियोजनाओं में निवेश करती है जो उच्चतम संभावित लाभ प्रदान कर सकती हैं। इससे कंपनी की लाभप्रदता और शेयरधारकों की संपत्ति में वृद्धि होती है।


2. महत्तम सम्पत्ति उद्देश्य (Wealth Maximization Objective): यह मापदंड शेयरधारकों की कुल संपत्ति को अधिकतम करने पर केंद्रित होता है। इसमें कंपनी की बाजार मूल्य को बढ़ाने पर जोर दिया जाता है, ताकि शेयरधारकों की संपत्ति में वृद्धि हो सके। यह मापदंड कंपनी के दीर्घकालिक वित्तीय स्वास्थ्य और स्थिरता को सुनिश्चित करने में मदद करता है।


प्रश्न 2. निवेश (विनियोग) के बारे में निर्णय को प्रभावित करने वाले परिबल कौन-कौन से हैं?  

उत्तर: निवेश के बारे में निर्णय लेने के समय कई परिबल प्रभाव डालते हैं। ये परिबल निवेश की संभावनाओं का मूल्यांकन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निम्नलिखित परिबल निवेश निर्णयों को प्रभावित करते हैं:


1. कुल पूँजी की आवश्यकता (Total Capital Requirement): यह परिबल निवेश के लिए आवश्यक कुल पूंजी की मात्रा का आकलन करता है। यह समझना आवश्यक है कि परियोजना को पूरा करने के लिए कितनी पूंजी की आवश्यकता होगी।


2. भविष्य में मिलने वाला अन्दाजित प्रतिफल और लाभदायकता (Estimated Future Return and Profitability): इस परिबल के तहत निवेश से भविष्य में मिलने वाले संभावित प्रतिफल और लाभ की दर का मूल्यांकन किया जाता है। निवेश का निर्णय लेते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि परियोजना कितनी लाभदायक हो सकती है।


3. मिलने योग्य अन्दाजित शुद्ध नकद प्रवाह (Estimated Net Cash Flow): यह परिबल निवेश से प्राप्त होने वाले शुद्ध नकद प्रवाह का अनुमान लगाता है। यह महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह परियोजना की वित्तीय व्यवहार्यता को दर्शाता है।


4. निवेश में जोखिम का तत्त्व (Risk Factor in Investment): इस परिबल के तहत निवेश में शामिल जोखिम का मूल्यांकन किया जाता है। उच्च जोखिम वाले निवेशों में अधिक सावधानी बरतनी होती है।


5. कार्यशील पूंजी की आवश्यकता (Working Capital Requirement): निवेश के बाद परियोजना को चलाने के लिए आवश्यक कार्यशील पूंजी का अनुमान लगाया जाता है। यह परिबल परियोजना के संचालन के लिए आवश्यक नकदी प्रवाह को सुनिश्चित करने में मदद करता है।


6. निवेश की आर्थिक उपयोगिता और अन्दाजित आयुष्य (Economic Utility and Estimated Lifespan of Investment): यह परिबल निवेश की आर्थिक उपयोगिता और उसकी आयु का मूल्यांकन करता है। यह समझना आवश्यक है कि निवेश कितनी अवधि तक लाभदायक रहेगा।


7. निवेश का महत्त्व (Importance of Investment): इस परिबल के तहत निवेश की सामरिक और आर्थिक महत्वता का मूल्यांकन किया जाता है।


8. पूँजी की मापबन्दी (Capital Budgeting): यह परिबल विभिन्न निवेश परियोजनाओं का मूल्यांकन और तुलना करता है, ताकि सर्वोत्तम परियोजना का चयन किया जा सके।


9. भविष्य में आय की निश्चितता या अनिश्चितता (Certainty or Uncertainty of Future Income): 

इस परिबल के तहत भविष्य में मिलने वाली आय की निश्चितता या अनिश्चितता का मूल्यांकन किया जाता है। इससे निवेश के जोखिम और संभावित लाभ का बेहतर आकलन किया जा सकता है।


प्रश्न 3. पूँजी ढाँचा यह मालिकी की पूँजी और उधार पूँजी (ऋण) का मिश्रण है।’ समझाइए। 

उत्तर: पूँजी ढाँचा वास्तव में मालिकी की पूँजी और उधार पूँजी का संयोजन होता है। पूँजी ढाँचे में दोनों प्रकार की पूंजी शामिल होती है जो कंपनी की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयोग की जाती हैं। इसमें निम्नलिखित तत्व शामिल होते हैं:


1. मालिकी की पूँजी (Equity Capital): यह पूंजी कंपनी के मालिकों द्वारा प्रदान की जाती है और इसमें इक्विटी शेयर और प्रेफरन्स शेयर शामिल होते हैं। इक्विटी शेयरधारक कंपनी के स्वामित्व में हिस्सेदार होते हैं और उन्हें लाभांश और कंपनी की संपत्ति पर अधिकार मिलता है।

2. उधार पूँजी (Debt Capital): यह पूंजी बाहरी स्रोतों से ली जाती है और इसमें ऋण-पत्र, डिबेन्चर और अन्य ऋण साधन शामिल होते हैं। उधार पूंजी कंपनी के वित्तीय संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है और इसे ब्याज सहित वापस चुकाना होता है। पूँजी ढाँचा का सही संतुलन बनाना कंपनी के वित्तीय प्रबंधन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित करके कंपनी अपनी वित्तीय स्थिरता और विकास को सुनिश्चित कर सकती है।


प्रश्न 4. ईष्टतम (श्रेष्ठ) पूँजी ढाँचा किसे कहते हैं?

उत्तर: ईष्टतम पूँजी ढाँचा वह होता है जिसमें इक्विटी पूँजी और ऋण (उधार पूँजी) का उचित संतुलन होता है। यह संतुलन कंपनी के लिए निम्नलिखित फायदे प्रदान करता है:


1. लागत की न्यूनता (Minimization of Cost):  ईष्टतम पूँजी ढाँचा लागत को न्यूनतम रखने में मदद करता है। ऋण पूंजी पर ब्याज दर कम होती है, जबकि इक्विटी पूंजी पर लाभांश देने की आवश्यकता नहीं होती।


2. वित्तीय स्थिरता (Financial Stability): यह ढाँचा कंपनी की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने में मदद करता है। उचित संतुलन के कारण कंपनी को वित्तीय संकट का सामना नहीं करना पड़ता और उसका नकदी प्रवाह स्थिर रहता है।


3. लाभप्रदता में वृद्धि (Increase in Profitability):

ईष्टतम पूँजी ढाँचा कंपनी की लाभप्रदता को बढ़ाने में मदद करता है। उचित संतुलन के कारण कंपनी अपने वित्तीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर सकती है।


प्रश्न 5 ‘कार्यशील पूँजी अर्थात् धन्धे में चक्राकार रूप से घूमती हुई पूँजी।’ समझाइए।  

उत्तर: कार्यशील पूँजी का तात्पर्य उस पूंजी से है जो धन्धे में निरंतर रूप से चक्राकार रूप में घूमती रहती है। यह पूंजी व्यवसाय के दैनिक संचालन खर्चों को पूरा करने के लिए उपयोग की जाती है। कार्यशील पूँजी के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:


1. कच्चा माल (Raw Materials): कच्चा माल का उपयोग उत्पादन प्रक्रिया में किया जाता है और इसे तैयार माल में परिवर्तित किया जाता है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है, जिससे कच्चा माल कार्यशील पूँजी का हिस्सा बना रहता है।


2. अर्ध तैयार माल (Work-in-Progress): अर्ध तैयार माल वह सामग्री होती है जो उत्पादन प्रक्रिया में होती है, लेकिन अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हुई होती। यह भी कार्यशील पूँजी का हिस्सा होती है।


3. तैयार माल (Finished Goods): तैयार माल वह उत्पाद होता है जो बिक्री के लिए तैयार होता है। तैयार माल का विक्रय होने पर यह नकदी में परिवर्तित हो जाता है, जिससे कार्यशील पूँजी का चक्र पूरा होता है।


4. देनदार (Accounts Receivable): देनदार वह राशि होती है जो ग्राहकों से वसूल की जानी होती है। यह नकद में परिवर्तित होकर व्यवसाय की दैनिक संचालन खर्चों को पूरा करने में मदद करती है।


5. नकद (Cash): नकद व्यवसाय के दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक होता है। नकद का उपयोग वेतन, वेतनभोगी, और अन्य छोटे-मोटे खर्चों के भुगतान में किया जाता है।


कार्यशील पूँजी का निरंतर चक्राकार रूप में घूमना व्यवसाय की निरंतरता और स्थिरता को बनाए रखने में मदद करता है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यवसाय के पास हमेशा पर्याप्त नकदी प्रवाह हो ताकि वह अपने दैनिक संचालन खर्चों को पूरा कर सके।


4. निम्न प्रश्नों पर विस्तार से चर्चा कीजिए । 


प्रश्न 1: उत्पादन चक्र किसे कहते हैं?  

उत्तर: उत्पादन चक्र उस समयावधि को कहा जाता है जो कच्चे माल के क्रय और तैयार माल के उत्पादन के बीच होती है। यह वह समय है जब कच्चा माल विभिन्न उत्पादन प्रक्रियाओं से गुजरकर अंतिम उत्पाद के रूप में तैयार होता है। उत्पादन चक्र जितना लंबा होता है, उतनी ही अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है, क्योंकि अधिक समय तक संसाधनों को बनाए रखने और संचालन के लिए धन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, एक लंबा उत्पादन चक्र कच्चे माल, अर्ध-तैयार माल, और तैयार माल के रूप में अधिक निवेश की मांग करता है। इसके विपरीत, यदि उत्पादन चक्र छोटा है, तो कार्यशील पूँजी की आवश्यकता कम होती है, क्योंकि संसाधनों को तेजी से रूपांतरित करके बेचा जा सकता है और नकदी प्रवाह में तेजी से परिवर्तित किया जा सकता है। यह चक्र उत्पादन प्रक्रिया की दक्षता, उत्पादन प्रबंधन, और संसाधन उपयोग को भी दर्शाता है, जो व्यवसाय की समग्र वित्तीय स्वास्थ्य और संचालन के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसलिए, उत्पादन चक्र का कुशल प्रबंधन कार्यशील पूँजी के उपयोग और नकदी प्रवाह के नियंत्रण के लिए अत्यंत आवश्यक है।


प्रश्न 2. यदि पूँजी की आवश्यकता स्थायी रूप से हो तो कौन-से शेयर द्वारा पूँजी प्राप्त की जाती है?

उत्तर: जब किसी कंपनी को पूँजी की आवश्यकता स्थायी रूप से होती है, तो इसे पूरा करने के लिए इक्विटी शेयर जारी करके पूँजी प्राप्त की जाती है। इक्विटी शेयर कंपनी के स्वामित्व का एक हिस्सा होते हैं और उन्हें जारी करने से कंपनी को स्थायी आधार पर पूँजी मिलती है। इक्विटी शेयरधारकों को कंपनी के लाभांश में हिस्सेदारी मिलती है और वे कंपनी के निदेशक मंडल में मतदान करने का अधिकार रखते हैं। इक्विटी पूँजी स्थायी होती है क्योंकि इसे कंपनी के जीवनकाल के दौरान वापस नहीं करना होता, जिससे यह दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, इक्विटी शेयरों से प्राप्त पूँजी का उपयोग कंपनी के विस्तार, नई परियोजनाओं, अनुसंधान और विकास, और अन्य दीर्घकालिक निवेशों के लिए किया जा सकता है। इक्विटी शेयरधारकों का निवेश कंपनी के विकास और लाभप्रदता पर आधारित होता है, और वे कंपनी के प्रदर्शन में वृद्धि के साथ अपने निवेश पर लाभ प्राप्त करते हैं। इसलिए, स्थायी पूँजी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए इक्विटी शेयर एक उपयुक्त विकल्प होते हैं, जो कंपनी को वित्तीय लचीलेपन और विकास के अवसर प्रदान करते हैं।


प्रश्न 3: यदि कम्पनी को अल्पकालीन पूँजी की आवश्यकता हो तो किसके द्वारा भी पूँजी प्राप्त की जा सकती है?  

उत्तर: यदि किसी कंपनी को अल्पकालीन पूँजी की आवश्यकता होती है, तो इसे डिबेंचर या प्रेफरेंस शेयर जारी करके भी प्राप्त किया जा सकता है। डिबेंचर एक प्रकार का ऋण साधन है जो कंपनी द्वारा निवेशकों से धन उधार लेने के लिए जारी किया जाता है। यह अल्पकालीन पूँजी आवश्यकताओं को पूरा करने का एक प्रभावी तरीका है क्योंकि डिबेंचर पर निश्चित ब्याज दर होती है और यह एक निर्दिष्ट अवधि के बाद वापस भुगतान किया जाता है। दूसरी ओर, प्रेफरेंस शेयर भी अल्पकालीन पूँजी जुटाने का एक विकल्प होते हैं। प्रेफरेंस शेयरधारकों को निश्चित लाभांश मिलता है और उन्हें कंपनी की संपत्ति में प्राथमिकता प्राप्त होती है, लेकिन वे कंपनी के निदेशक मंडल में मतदान के अधिकार नहीं रखते। प्रेफरेंस शेयरधारकों का निवेश कंपनी की लाभप्रदता और वित्तीय प्रदर्शन पर आधारित होता है। इन साधनों का उपयोग करके कंपनी अपनी अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, जैसे कि संचालन खर्च, ऋण पुनर्भुगतान, और अन्य अस्थायी वित्तीय आवश्यकताएं। इसके अतिरिक्त, अल्पकालीन पूँजी जुटाने के ये तरीके कंपनी को वित्तीय लचीलापन और तत्काल नकदी प्रवाह सुनिश्चित करते हैं, जिससे कंपनी अपनी संचालन क्षमताओं को बनाए रख सकती है और व्यावसायिक अवसरों का लाभ उठा सकती है।

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